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राज्यपाल रमेश बैस का सफरनामा -.


रायपुर। पूर्व. सांसद-विधायक और मंत्री रमेश बैस का राजनीतिक सफर निर्विवाद रहा, लेकिन झारखंड के राज्यपाल के तौर पर एक साल आठ महीने का कार्यकाल राजनीतिक विवादों की वजह से हमेशा चर्चा में बना रहा. उनके महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर नियुक्ति से निश्चित तौर पर हेमंत सोरेन सरकार ने सुकून की लंबी सांस ली होगी.

रमेश बैस का सक्रिय राजनीति का सफर भाजपा से वर्ष 1978 में शुरू हुआ था, जब वे रायपुर नगर निगम के लिए चुने गए थे. 1980 से 1984 तक मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे. 1989 में पहली बार रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद वे केंद्र की राजनीति में कदम रखा. इसके बाद 11वीं, 12वीं, 13वीं, 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए थे. उन्होंने भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में भी कार्य किया है.

सक्रिय राजनीति में लंबे समय पर बने रहने के बाद रायपुर से सुनील सोनी को लोकसभा चुनाव के लिए उतारे जाने के साथ रमेश बैस को 20 जुलाई 2019 में त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया गया. इसके बाद 6 जुलाई 2021 को उन्हें झारखंड में राज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया गया. झारखंड में बतौर राज्यपाल एक साल आठ महीने के कार्यकाल में रमेश बैस की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने से पटरी नहीं बैठी, और ऐसे करीबन दर्जनभर मामले रहे, जिनमें विवाद, टकराव और परस्पर असहमति के हालात बनते रहे.

एक तरफ जहां राज्यपाल ने झारखंड में ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी के गठन के मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण की शिकायत केंद्र तक पहुंचाई, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन ने उनपर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने और राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल पैदा करने के आरोप लगाए.

बीते साल फरवरी में सीएम के खदान की लीज लेने पर इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए भाजपा राज्यपाल रमेश बैस के पास पहुंची थी. राज्यपाल ने भाजपा की शिकायत पर केंद्रीय चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था. इस पर आयोग ने दोनों के पक्ष सुनने के बाद बीते साल 25 अगस्त को राजभवन को सीलबंद लिफाफे में अपना मंतव्य भेज दिया था.

अनधिकृत तौर पर ऐसी खबरें थी कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को दोषी मानते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है. लेकिन राज्यपाल रमेश बैस ने चुनाव आयोग से आए सीलबंद लिफाफे पर चुप्पी साधे रखी और इससे राज्य में सियासी सस्पेंस और भ्रम की ऐसी स्थिति बनी कि सत्तारूढ़ गठबंधन को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति एकजुटता जताने के लिए डिनर डिप्लोमेसी और रिजॉर्ट प्रवास तक के उपक्रमों से गुजरना पड़ा.

यही नहीं बीते साल फरवरी महीने में उन्होंने राज्य में ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नियमावली पर सवाल उठाये थे. उन्होंने इस नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी. इस मसले पर राजभवन और सरकार का गतिरोध आज तक दूर नहीं हुआ.

इसके अलावा राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड विधानसभा में सरकार द्वारा पारित विधेयकों को विभिन्न वजहों से सरकार को लौटाने के मामले में भी रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित नौ बिल अलग-अलग वजहों से लौटाए.

यह नहीं रमेश बैस ने पिछले साल मई में रांची में हुई सांप्रदायिक हिंसा, जेपीएससी के रिजल्ट से जुड़े विवादों और कानून-व्यवस्था में गिरावट जैसे प्रकरणों पर भी हस्तक्षेप किया था. अलग-अलग विभागों की समीक्षा बैठकों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी उन्होंने राज्य सरकार के विजन से लेकर उसके निर्णयों पर सवाल उठाए थे.