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रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध से कच्चे तेल की बढ़ती कीमत बिगाड़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था की चाल


 मशहूर शायर साहिर लुधियानवी ने कभी लिखा था-‘टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें/कोख धरती की बांझ होती है, फतह का जश्न हो कि हार का सोग जिंदगी मय्यतों पे रोती है, जंग तो खुद ही एक मसला है/जंग क्या मसलों का हल देगी।।’ रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग को देखें तो लगता है कि साहिर का कहा आज भी पूरी तरह सच है। यह जंग आने वाले वक्त में तमाम समस्याएं पैदा करेगी। कुछ मामलों में तो यह नजर भी आने लगी है। जैसे कि कच्चे तेल की कीमत। फिलहाल हालत यह है कि तेल की कीमत जून, 2014 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर जा पहुंची है। कच्चे तेल (क्रूड आयल) की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 130 डालर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है। हमारे देश के लिए यह चिंताजनक है। भारत में हर दिन 55.50 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत होती है।

तथ्य यह है कि अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है। हम अपनी इस जरूरत की पूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं। हमारा देश अपनी आवश्यकताओं का 85 प्रतिशत कच्चा तेल दुनिया के 40 देशों से आयात से पूरा करता है। इसमें सबसे ज्यादा आपूर्ति मध्य-पूर्व देशों (विशेषत: ईरान) और अमेरिका से होती है, जबकि युद्ध में उलझे रूस से भी दो प्रतिशत कच्चा तेल मंगाया जाता है। इस कच्चे तेल को भारत की रिफाइनरी कंपनियां शोधन करने के बाद पेट्रोलियम पदार्थों (पेट्रोलडीजल) में बदलती हैं। यहां से इन उत्पादों को 100 से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है, जो देश के कुल निर्यात का 13 प्रतिशत है। वाहनों को सड़कों पर दौड़ाने से लेकर उद्योगों में लगने वाले पेट्रोलियम पदार्थों की हमारी मांग सालाना तीन-चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अनुमान है कि अगले एक दशक में भारत में प्रतिदिन कच्चे तेल की खपत 70 लाख बैरल की मात्रा को पार कर लेगी।