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लोकसभा चुनाव 2024: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आखिरी उम्मीद,


 लखनऊ। पिछला लोकसभा चुनाव हार चुके कांग्रेस नेता राहुल गांधी दो दशक बाद फिर गांधी परिवार का इतिहास दोहराते हुए अमेठी छोड़कर रायबरेली की सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2004 में सोनिया गांधी ने उनके लिए अमेठी की सीट छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ा था। राहुल की चुनावी यात्रा अमेठी से शुरू हुई थी। बीस वर्षों बाद मां सोनिया गांधी के रायबरेली छोड़ने पर वह इस सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं।

 

इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उनके दादा फिरोज गांधी और दादी इंदिरा गांधी ने किया था। अमेठी की तुलना में रायबरेली सीट कांग्रेस के लिए उप्र में सबसे ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है। इस सीट पर अभी तक हुए 20 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 17 बार जीत दर्ज की है। उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन करके कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 15 सीटों पर पहले ही प्रत्याशियों की घोषणा की जा चुकी थी।

केवल रायबरेली और अमेठी से प्रत्याशियों की घोषणा का इंतजार था। उम्मीद की जा रही थी कि रायबरेली से प्रियंका गांधी को पहला चुनाव लड़ाया जाएगा और राहुल अमेठी से ही उतरेंगे। चुनाव लड़ने के लिए प्रियंका के राजी न होने पर यह खींचतान लंबी चली और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को प्रियंका को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

सोनिया ने भी मनाने के प्रयास किए, लेकिन प्रियंका यह समझाने में कामयाब रही कि वह पार्टी के लिए प्रचार करके ज्यादा लाभ पहुंचा सकती हैं। उधर, अमेठी से चुनावी मैदान में उतरने वाले किशोरी लाल शर्मा 40 वर्षों की गांधी परिवार की सेवा का पुरस्कार मिला है।

पंजाब के लुधियाना निवासी शर्मा को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1983 में पहली बार अपने प्रतिनिधि के रूप में अमेठी लेकर आए थे। इसके बाद से वह अमेठी और रायबरेली में गांधी परिवार के दूत के रूप में सक्रिय रहे हैं। स्मृति इरानी को शर्मा कितनी चुनौती दे पाएंगे यह तो परिणाम से ही स्पष्ट होगा। यह भी रणनीति है कि स्मृति इरानी अगर दोबारा चुनाव जीतती हैं तो वह यह प्रचार न कर सकें कि राहुल को हराकर जीती हैं।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आखिरी उम्मीद

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए यह लोकसभा चुनाव आखिरी उम्मीद बन गया है। 1984 के लोस चुनाव में उप्र में 85 में 83 सीटें जीतकर सबसे शानदार प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस 40 वर्षों के अंदर 2019 के चुनाव में रायबरेली की एक सीट पर सिमट कर रह गई थी। 1984 के चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के पीछे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या बड़ी वजह बनी थी। लोगों ने कांग्रेस को 51.03 प्रतिशत वोट दिए थे।

इसके बाद भाजपा, सपा और बसपा ने अपना-अपना जनाधार बढ़ाया और 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद मुस्लिमों का वोट बैंक कांग्रेस का साथ छोड़कर सपा के साथ चला गया। बसपा ने भी वंचित समाज के वोट बैंक पर कब्जा कर लिया। भाजपा कांग्रेस के अमेठी के किले को पिछले चुनाव में ही ध्वस्त कर चुकी है। अगर राहुल रायबरेली से चुनाव हार जाते हैं तो उत्तर प्रदेश की राजनीति से गांधी परिवार का बोरिया-बिस्तर सिमट जाएगा। 1977 और 1998 में कांग्रेस एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी थी।

कांग्रेस का सफाया करने के लिए भाजपा की रणनीति तैयार

भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को बुलंद करते हुए उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के सफाए की पूरी रणनीति तैयार कर ली है। एक तरफ जहां भाजपा ने 1.6 लाख बूथों पर मजबूत प्रबंधन किया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस केवल 70 हजार बूथों पर ही प्रभारियों की तैनाती कर सकी है। भाजपा ने पूर्व कांग्रेसी नेता व सोनिया गांधी के खास रहे दिनेश प्रताप को फिर से टिकट देकर लड़ाई को और रोचक बना दिया है। वहीं, बसपा ने भी अपना प्रत्याशी रायबरेली से उतार दिया है। इस बार सपा के भरोसे पर निर्भर होने के बाद भी राहुल की राह इतनी आसान होने वाली नहीं दिख रही है।