सम्पादकीय

वर्षा-बाढ़का कहर


कोरोना संक्रमणकी रफ्तार थमने लगी है जो राहतकारी है लेकिन इसी बीच देशके आधेसे अधिक हिस्सोंमें मानसून पूर्व पहली ही आफतकी बारिश बाढ़ और भूस्खलनका कहर परेशानीको और बढ़ानेका संकेत है। उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखण्ड समेत कई राज्योंमें भारी बारिश कहर बरपा रही है। बाढ़से प्रभावित तटवर्ती क्षेत्रोंके लोग दहशतमें हैं। अनवरत बारिशसे हो रही धन, जनकी हानि दुर्भाग्यपूर्ण और दुश्वारियां बढ़ानेवाली हैं। रुक-रुककर हो रही मूसलधार बारिशसे पहाड़ोंसे लेकर मैदानतककी नदियां उफानपर हैं। कई गांव बाढ़की चपेटमें हैं। इन बाढ़प्रभावित क्षेत्रोंके लोग सुरक्षित स्थानपर शरण लिये हुए हैं। बाढ़ और भूस्खलनसे कई गांवोंका सम्पर्क पूरी तरह कट गया है। बाढ़की स्थिति यह है कि नदियोंका पानी घरोंतक पहुंच गया है। लोग ऊंचे स्थानोंपर मवेशियोंके साथ शरण लेनेके लिए बाध्य हैं। उत्तराखण्डके नैनीतालमें भूस्खलनका खतरा बढ़ा है। कुमाऊंमें बाढ़से १४० सड़कें बंद हैं। सौसे अधिक गांवोंका जिला तहसील मुख्यालयोंसे सम्पर्क भंग होनेसे ३० हजारसे अधिक आबादी प्रभावित हैं, जबकि सामरिक दृष्टिïसे महत्वपूर्ण चीन सीमाको जोडऩेवाली मुनस्यारी-मिलम सड़क मलबाके अम्बार और पुल टूटनेसे बंद हो गया है। सीमापर स्थित सेनाकी चौकियों और माइग्रेशनवाले गांवोंकी आपूर्ति रुक गयी है जिससे हिमालयकी तलहटीमें बसे ग्रामीणोंकी दुश्वारियां बढ़ गयी हैं। सेना और ग्रामीणोंतक आवश्यक वस्तुओंकी आपूर्ति सरकारके समक्ष बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेशके बिजनौरमें गंगा खतरेके निशानसे ऊपर बह रही है। यहां रविवारको रेस्क्यू अभियान चलाकर ११ लोगोंको पानीसे बाहर निकाला गया, जबकि शामलीमें यमुनामें स्नान करते दो युवक डूब गये। इसी तरह बरेलीमें गंगा, रामगंगा, बहगुल और शारदाका जलस्तर उफानपर है। बिहारमें पिछले २४ घण्टेमें भारी बारिशके कारण गंडक समेत कई नदियां खतरेके लाल निशानको पार कर गयी हैं। यहां १६ हजारसे अधिक आबादी बाढ़से प्रभावित है। बाढ़की उत्पन्न विकट परिस्थितिसे निबटना राज्य सरकारोंकी जिम्मेदारी है। केन्द्र और राज्य सरकारोंका दायित्व है कि जहां नदियां बढ़ावपर हैं और गांव टापू बने हुए हैं वहां लोगोंकी सुरक्षाकी समुचित व्यवस्था करें। साथ ही इस प्राकृतिक आपदासे हुई क्षतिका आकलन करके पीडि़तोंको क्षतिपूर्ति करें। प्रभावित क्षेत्रोंमें बीमारी बढऩेका भी खतरा उत्पन्न हो गया है, जिसके लिए हरसम्भव कदम उठानेकी जरूरत है।

कश्मीरमें सार्थक पहल

जम्मू-कश्मीरमें विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रोंके लिए परिसीमनकी प्रक्रियामें तेजी निकट भविष्यमें वहां चुनावकी सम्भावनाओंका संकेत है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम २०१९ के तहत केन्द्र सरकारने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना देसाईके नेतृत्वमें परिसीमन आयोगका गठन किया था जिससे कि विभिन्न क्षेत्रोंकी भौगोलिक परिस्थितियों और अन्य बिन्दुओंको ध्यानमें रखते हुए परिसीमन किया जा सके। यह कार्य एक वर्षके अन्दर पूरा होना था लेकिन कोरोना महामारीके कारण इसमें विलम्ब हो गया। आयोगका कार्यकाल भी एक वर्षके लिए बढ़ा दिया गया है। परिसीमन आयोग इस कार्यको अब शीघ्र पूरा करनेके पक्षमें है और अधिक सक्रिय हो गया है। आयोग सभी पहलुओंपर विचार कर रहा है। जिला उपायुक्तोंके साथ भी बैठकें की जायंगी। वैसे सभी उपायुक्तोंने आवश्यक सूचनाएं आयोगको पहले ही उपलब्ध करा दिया है। परिसीमनकी प्रक्रिया तेज होनेसे विभिन्न राजनीतिक दलोंकी सक्रियता बढ़ गयी है। केन्द्र सरकारकी यह अच्छी पहल है और इससे राज्यमें यथासम्भव शीघ्र चुनाव करानेकी सम्भावनाएं भी बढ़ गयी हैं। इसी सन्दर्भमें प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने जम्मू-कश्मीरके मामलेमें एक सर्वदलीय बैठक बुलायी है, जो २४ जूनको प्रस्तावित है। यह बैठक भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसमें सभी आमंत्रित दलोंके प्रतिनिधियोंको अवश्य भाग लेना चाहिए जिससे कि उनके विचार सामने आ सकें। ऐसे विचार केन्द्र सरकारके लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। इस बैठकको लेकर क्षेत्रीय दलोंके राजनीति करनेका कोई औचित्य नहीं है। कुछ दल बहिष्कारकी निरर्थक सोचसे ग्रसित हैं। उन्हें इस मानसिकतासे ऊपर उठकर खुले मनसे सहभागिता करनी चाहिए। परिसीमनके सन्दर्भमें यदि सार्थक और रचनात्मक सुझाव आते हैं तो उनका सम्मान होना चाहिए। जम्मू-कश्मीरमें धारा ३७० समाप्त होनेके बाद वहां स्थितियां तेजीसे बदली हैं। आतंकी और पृथकतावादी गतिविधियोंमें कमी आयी है और विकासका लाभ ९० प्रतिशतसे अधिक लोगोंको मिलना शुरू हो गया है। अब वहां चुनाव करानेका भी मार्ग प्रशस्त होना चाहिए। निर्वाचन क्षेत्रोंका परिसीमन इसी दिशामें सार्थक कदम है। इसमें सभी राजनीतिक दलोंको सहयोग करनेकी जरूरत है जिससे कि चुनाव सम्पन्न कराये जा सकें।