नये कृषि कानूनोंके खिलाफ आन्दोलन कर रहे किसानोंको सर्वोच्च न्यायालयने बुधवारको एक उपयोगी और व्यावहारिक सुझाव देते हुए कहा है कि हम हालातको समझते हैं और चाहते हैं कि बातचीतसे मामलेको सुलझाया जाय। किसानोंके प्रदर्शनपर शीर्ष न्यायालयने गम्भीर चिन्ता भी जतायी है। कृषि कानूनोंको रद करनेके खिलाफ एक याचिका भी दाखिल की गयी है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़ेने याचिकाकर्तासे ही सवाल किया कि आपको पता है न्यायालयमें किसान प्रदर्शनको लेकर क्या चल रहा है? प्रधान न्यायाधीशने कहा कि हम दूसरे मामलोंके साथ इसे भी इसलिए सुनना चाहते हैं क्योंकि प्रदर्शनको लेकर अभीतक कोई हल नहीं निकला है। न्यायालय चाहता है कि बातचीतसे हल निकाला जाय। उन्होंने कहा कि किसानोंके विरोधके बारेमें स्थितिमें कोई सुधार नहीं हुआ है। एटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपालने आशा व्यक्त की है कि पार्टियां निकट भविष्यमें किसी नतीजेपर पहुंच सकती हैं। इसे अच्छा संकेत माना जा सकता है। केन्द्र सरकार और किसानोंके बीच चार जनवरीको सातवें दौरकी वार्तामें कोई परिणाम नहीं निकला। आठ जनवरीको बिगड़ी बातको बनानेके लिए कोशिशें जारी हैं, लेकिन आन्दोलनकारी किसानोंका रवैया कुछ अलग ही है। वे आन्दोलनको और तेज करनेपर अड़े हुए हैं। इसके लिए तैयारी भी चल रही है। गुरुवारको ट्रैक्टर मार्चको धार देनेकी कोशिश की जा रही है। केन्द्रीय कृषिमंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर आश्वस्त हैं कि वार्तासे हम समाधानतक अवश्य पहुंच जायंगे। अब प्रश्न यह है कि जबतक दोनों पक्ष नरम और लचीला रवैया नहीं अपनायेंगे तबतक कोई परिणाम नहीं निकलनेवाला है। किसान नेता कानून रद करनेसे कम किसी बातपर तैयार नहीं है, जबकि केन्द्र सरकार सभी आवश्यक संशोधन करनेके पक्षमें है। वस्तुत: किसानोंके आन्दोलनमें राजनीतिके प्रवेशसे स्थिति जटिल हो गयी है। आन्दोलनका लम्बा चलना ठीक नहीं है। कड़ाकेकी ठण्ड और कोरोना तथा बर्डफ्लूके कहरसे खतरे भी बढ़ गये हैं। ऐसी स्थितिमें सर्वोच्च न्यायालयका सुझाव व्यावहारिक और उपयोगी है। वार्ताके माध्यमसे ही मामलेका समाधान निकालना होगा। इसे प्रतिष्ठाका प्रश्न नहीं बनाया जाना चाहिए। यह सभी लोग चाहते हैं कि किसानोंके हितोंकी रक्षा होनी चाहिए इसलिए जरूरी है कि शीर्ष न्यायालयकी चिन्ता और सुझावोंको ध्यानमें रखते हुए इस प्रकरणका शीघ्र समाधान निकाला जाय।
न्यायकी जीत
पाकिस्तान अपनी करनीसे कई बार विश्व बिरादरीमें शर्मसार हुआ है। पाकिस्तानमें हिन्दुओंके आस्था स्थलोंपर हमलेपर वहांकी सर्वोच्च न्यायालयने न्यायसंगत आदेश देकर इमरान सरकारको सख्त सन्देश दिया है। यह पहला अवसर है जब वहांकी सर्वोच्च न्यायालयने माना है कि इस तरहकी घटनासे अन्तरराष्ट्रीय बिरादरीमें पाकिस्तानको शर्मसार होना पड़ता है। पाकिस्तानके प्रधान मंत्री इमरान खानके गृह राज्य खैबर पख्तूनख्वाके करक जिलेमें अवस्थित एक सदी पुराने कृष्ण मन्दिर और संत परमहंसजी महाराजकी समाधिको वहांके मौलवियोंके नेतृत्वमें भारी भीडऩे जमकर तोड़-फोड़कर आग लगा दी थी। इस घटनाको लेकर स्थानीयसे लेकर अन्तरराष्टï्रीय बिरादरीमें जबरदस्त आक्रोशके कारण वहांकी सर्वोच्च न्यायालयको इस मामलेको स्वत: संज्ञानमें लेना पड़ा। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुलजार अहमदकी अध्यक्षतावाली तीन न्यायमूर्तियोंकी पीठने इवैन्यू प्रापर्टी ट्रस्ट बोर्ड (ईपीटीबी) को मन्दिर और समाधि स्थलका पुनर्निर्माण करनेका आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्टने पाकिस्तानमें अवस्थित हिन्दू मन्दिरोंकी पूरी जानकारी मांगी है। ईपीटीबी एक स्वायत्तशासी बोर्ड है जो विभाजनके बाद भारत चले गये हिन्दुओं और सिखोंकी धार्मिक सम्पत्तियों और मन्दिरों, गुरुद्वारोंका प्रबन्धन करता है लेकिन वह हिन्दुओंके धार्मिक स्थलोंकी रक्षा नहीं कर पा रहा है। पाकिस्तानके अत्याचारसे वहांसे हिन्दुओंका पलायन लगातार जारी है। १९४७ में पाकिस्तानमें जहां ४२८ हिन्दू मन्दिर थे, लेकिन वर्तमानमें मात्र बीस हिन्दू मन्दिर बचे हैं। जबसे पाकिस्तानमें इमरान खानकी सरकार आयी है तबसे कट्टरपंथियोंका दबाव बढ़ गया है। वे आये दिन हिन्दुओं और उनके आस्था स्थलोंको निशाना बना रहे हैं। ऐसेमें वहांकी सर्वोच्च न्यायालयका मामलेको स्वत: संज्ञामें लेना न्यायकी जीतका भरोसा बढ़ानेवाला है। इमरान सरकारको न्यायपालिकाके आदेशका सम्मान करते हुए हिन्दुओंके आस्था स्थलोंकी सुरक्षा चौकस करनी चाहिए। पाकिस्तानके सर्वोच्च न्यायालयका आदेश स्वागतयोग्य है और इसका शीघ्रतिशीघ्र अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए।