सम्पादकीय

विकृत मानसिकता


विश्वके अनेक छोटे-बड़े राष्टï्रोंने जहां कोरोना महामारीके खिलाफ मजबूत जंगमें भारतका हरसम्भव सहयोग करनेके लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है वहीं दो पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तानका रवैया कितना अमानवीय और शर्मनाक है, इसका ताजा दृष्टïान्त सामने आया है। यह उनकी विकृत मानसिकता और संवेदनहीनताका प्रमाण है। चीनके सरकारी सिचुआन एयरलाइंसने भारतके लिए अपने सभी माल वाहक (कार्गो) उड़ानोंको १५ दिनोंतकके लिए स्थगित कर दिया है। इससे निजी कारोबारियोंकी ओरसे चीनसे आक्सीजन कांसट्रेटर और अन्य चिकित्सा आपूर्ति करनेमें बड़ा व्यवधान उत्पन्न हो गया है। सिचुआन एयरलाइंसके विपणन एजेण्टने अपने पत्रमें कहा है कि विमानन कम्पनी शियान-दिल्ली सहित छह मार्गोंपर अपनी कार्गो सेवा स्थगित कर रही है। यह निर्णय ऐसे समय आया है जब चीनसे आक्सीजन कंसटे्रटर खरीदनेके प्रयास किये जा रहे हैं। कम्पनीका कहना है कि भारतमें महामारीकी स्थितिमें अचानक आये बदलावके कारण ही आयातकी संख्यामें कमी आयी है। दूसरी ओर चीनी उत्पादक कम्पनियोंने आक्सीजन सम्बन्धी उपकरणोंकी कीमतोंमें ३५ से ४० प्रतिशततककी वृद्धि कर दी है। साथ ही माल ढुलाई भी २० प्रतिशत महंगा कर दिया है। सिचुआन एयरलाइंस मुख्य रणनीतिक मार्ग है। कार्गो विमानोंको स्थगित किये जानेसे कम्पनीको काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ेगी। कार्गो विमानोंकी उड़ानोंको रोकना अनुचित निर्णय है। आपदाके समय जहां सहयोगका रवैया होना चाहिए वहां शोषणका रास्ता अपनाना पूरी तरह निन्दनीय है। इससे अति आवश्यक सामानकी आपूर्ति बाधित होगी और कोरोनाके खिलाफ जंगमें कमजोरी आयगी। चीनको इस निर्णयपर पुन:विचार करते हुए कार्गो विमानोंकी उड़ानोंकी अनुमति देनी चाहिए। दूसरी ओर पाकिस्तानने असमय प्रलाप शुरू कर दिया है। वहांके विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशीने कहा है कि हम भारतसे सशर्त वार्ता करनेको तैयार है। यदि भारत जम्मू-कश्मीरपर ५ अगस्त, २०१९ के फैसलेपर दोबारा विचार करे तो हम भारतसे वार्ता कर सकते हैं। पाकिस्तानका यह दुस्साहस है। कश्मीरके मामलेमें इस तरहकी बयानबाजीका कोई मतलब नहीं है। भारतके आन्तरिक मामलेमें उसे हस्तक्षेप करनेका अधिकार नहीं है। पाकिस्तानका यह रवैया निन्दनीय है, उसे अपनी सीमामें रहनेकी जरूरत है।

अदालतकी सख्त चेतावनी

कोविड प्रोटोकालकी अनदेखीसे नाराज मद्रास हाईकोर्टने सोमवारको भारतीय चुनाव आयोगकी तीखी आलोचना करते हुए कोरोना महामारीकी दूसरी लहरके लिए आयोगको सबसे बड़ा इकलौता दोषी ठहराया है। एक जनहित याचिकाकी सुनवाईके दौरान हाईकोर्टने आयोगको सबसे गैर-जिम्मेदार संस्था बताया और कहा कि इसके अधिकारियोंके खिलाफ हत्याके आरोपमें मुकदमा चलाना चाहिए। देशके पांच राज्योंमें विधानसभाका चुनाव हो रहा है जिसमें प्रचारके लिए राजनीतिक दलोंने कोरोना प्रोटोकालको ताकपर रखकर सत्ता हथियानेके लिए सारी शक्तियां झोंक दी है। कोर्टने कहा कि निर्वाचन आयोगने राजनीतिक दलोंको रैलियां और सभाएं करनेकी अनुमति देकर महामारीको फैलनेका मौका दिया। कोरोना गाइडलाइनके पालनको लेकर आयोगको फटकार लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी एवं न्यायमूर्ति संथिल कुमार राममूर्तिकी पीठने चेतावनी दी कि जरूरी हुआ तो दो मईको होने जा रही मतगणना रोकनेका आदेश देनेमें भी नहीं हिचकिचायंगे। अदालतकी यह तल्ख टिप्पणी उचित है। इसके निहितार्थको समझनेकी जरूरत है। बड़ा प्रश्न यह है कि प्राणरक्षा और चुनावमें कौन महत्वपूर्ण और आवश्यक है। निश्चित रूपसे जवाब प्राणरक्षाके ही पक्षमें आयगा। नागरिक बचेंगे तभी लोकतांत्रिक गणतंत्रमें अपने अधिकारोंका उपयोग कर पायेंगे। प्राणघातक कोरोना वायरसके तेजीसे फैलते संकटके दौरमें प्राथमिकता अपनी जान बचाने और जीवित रहनेका है। चुनावी रैलियों, रोडशो, और सभाओंमें जिस तरह कोरोना गाइडलाइनकी धज्जियां उड़ायी गयीं वह हताश करनेवाली हैं। चुनाव आयोगके साथ राजनीतिक दलोंकी जिम्मेदारी बनती है कि वे जनजीवनको ध्यानमें रखकर अपने कर्तव्योंका ईमानदारीसे निर्वहन करें।