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वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला, कहा- सांसद-विधायक को छूट नही


नई दिल्ली। वोट के बदले नोट के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। बेंच ने 26 साल पुराने अपने पिछले फैसले को पलट दिया है। सीजेआई ने सांसदों को राहत देने पर असहमति जाहिर की है।

 

सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है। अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी को घूसखोरी की कोई छूट नहीं है। रिश्वत लेकर वोट देने पर अभियोजन को छूट नहीं दी जाएगी।

कोर्ट के पिछले फैसले को खारिज किया

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,”हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं। वहीं, कोर्ट के पिछले फैसले को खारिज किया जा रहा है। ‘पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले’ में पिछले 25 साल यानी 1998 में सदन में ‘वोट के बदले नोट’ मामले में सांसदों को मुकदमे से छूट की बात कही थी।

कोर्ट ने अनुच्छेद 105 का किया जिक्र

बहुमत के फैसले में पांच जजों की पीठ ने तब पाया कि सांसदों को अनुच्छेद 105 (2) और 194(2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों और विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।

रिश्वतखोरी भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा,”आज सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर कोई सांसद राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेता है, तो वे अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट देने के लिए पैसे लेना या प्रश्न पूछना भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगा।”