सम्पादकीय

संवैधानिक मर्यादाको तिलांजलि


आनन्द उपाध्याय ‘सरसÓ

बीते दिनों विनाशकारी चक्रवाती तूफान यासके चलते उड़ीसा और पश्चिम बंगालमें हुई व्यापक तबाहीसे हुए नुकसानका फौरी आंकलन करनेके संवेदनशील मुद्देपर प्रभावित इलाकोंका बारीकीसे हवाई सर्वेक्षण करनेके बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कलकत्ताके कलाईकुण्डा एयर फोर्स बेसपर पूर्व सूचित सुनिश्चित महत्वपूर्ण बैठकमें ३० मिनटोंके विलम्बसे पहुंचने और बैठकमें औपचारिक रूपसे शामिल हुए बिना ही तूफानसे हुए नुकसानसे सम्बंधित कागजात प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीको सौंप कर सूबेकी मुख्य मंत्री ममता बनर्जी बैठक छोड़कर तुरन्त नौ दो ग्यारह हो गयीं। कदाचित स्वतंत्र भारतके लोकतंत्रीय कालमें इस तरहकी उच्छृंखलता किसी सूबेके मुख्य मंत्रीके द्वारा इससे पहले कभी बरती गयी हो। यह असामान्य घटना भारतके संघीय ढांचेके अन्तर्गत विधिसम्मत संसूचित और हर राज्यके अपने निर्धारित प्रोटोकोलकी धज्जियां उड़ानेके साथ सामान्य  राजनीतिक शिष्टाचारको भी खुलेआम अंगूठा दिखाती नजर आयी। निश्चय ही लगातार तीसरी बार बड़े राज्यकी मुख्य मंत्री चुनी गयीं ममता बनर्जीने यह कृत्य कर मोदीको नीचा दिखानेकी ईष्र्यापरक पराकाष्ठाके चलते अपने अपरिपक्वताका ही प्रदर्शन किया है, जो कि नितान्त दुर्भाग्यपूर्ण कदम ही कहा जायगा। उल्लेखनीय है कि दूसरी ओर तूफानसे गम्भीर रूपसे प्रभावित हुए अन्य राज्य उड़ीसामें हवाई सर्वेके बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यके मुख्य मंत्री नवीन पटनायक सहित राज्यके वरिष्ठतम अधिकारियोंके साथ गहन समीक्षा बैठक कर व्यापक तबाहीसे हुए नुकसानके पूरे ब्यौरेसे रूबरू हुए। सर्वथा निर्विवाद और शालीन राजनीतिज्ञकी छवि रखनेवाले नवीन पटनायककी परिपक्वता तब और हैरान कर गयी जब अपने राज्यमें मची भीषण तबाहीकी भरपाईके एवजमें भारत सरकारसे भारी आर्थिक पैकेजकी मांग करनेकी जगह उन्होंने कहा कि कोरोना महामारीकी विभीषिकाके कारण भारत सरकार खुद संसाधनोंकी उपलब्धतासे दो-चार हो रही है, अत: हमने सहायता मांगनेकी जरूरतको गौण कर राज्यमें उपलब्ध संसाधनोंसे राहत कार्य शुरू कर दिये हैं। हालांकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने तत्काल प्रभावसे पांच सौ करोड़ रुपयेका राहत पैकेज उड़ीसा सरकारको मुहैया करानेका आदेश निर्गत किया है।

वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगालकी मुख्य मंत्री ममता बनर्जीने इस जनहितसे जुड़े अति संवेदनशील मुद्देपर प्रभावित गरीब जनताकी पीड़ाकी उपेक्षा कर समीक्षा बैठकका खुद तो बहाना बनाकर त्याग किया ही परन्तु अपने साथ आये सूबेके प्रशासनिक मुखिया यानी चीफ सेक्रेटरी अलपन वन्दोपाद्यायको भी वापस लेती गयीं। ज्ञातव्य है कि चीफ सेक्रेटरीको ही प्रधान मंत्रीके सम्मुख राज्यमें इलाके वार हुई जन-धनकी तबाहीकी विस्तृत रिपोर्टको प्रेजेण्टेशनके जरिये बताना व्यवहारिकताका पारम्परिक तकाजा था। मुख्य मंत्रीने तो जो कुछ अपने विवेकसे कृत्य किया वह उनका निहित राजनीतिक पूर्व नियोजित एजेण्डा कहा जा सकता है, परन्तु भारतीय प्रशासनिक सेवाके सूबेमें पदासीन अधिकारीका यह व्यवहार संघ लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित आईएएस अधिकारीकी डीओपीटी अर्थात्ï भारत सरकारके कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभागकी नियमावली एवं निर्धारित सेवा नियमोंके अन्तर्गत न तो विधिसम्मत और न ही व्यवहारिक दृष्टिकोणसे उचित कहा जा सकता है। बीते दिनों सीबीआईके कोलकाता कार्यालयमें अपने मंत्रियों, विधायक एवं मेयरकी सारदा स्टिंग केसमें हुई गिरफ्तारीके खिलाफ अपने मंत्रिमंडलके कई सहयोगियों एवं अधिकारियोंके साथ छह घंटे धरनेपर बैठी रहीं। टीएमसीके कथित समर्थकोंकी भीड़ जुटा कर सीबीआई आफिसके गेटपर सुरक्षारत सीआरपीएफ जवानों पर पथराव कराकर अपना चिर-परिचित अंदाज दिखा चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय लोकतंत्रकी मौजूदा  प्रणालीमें  प्रत्येक राज्यमें विधानसभामें सबसे ज्यादा चुने गये सदस्योंवाली मुख्य विपक्षी पार्टीके चयनित नेता विशेषको कैबिनेटमंत्रीका वैधानिक दर्जा अनुमन्य करते हुए नेता अपोजीशन नामित किया जाना प्रावधानित होता है। इस आपत्तिपर कि उड़ीसाकी समीक्षा बैठकमें लीडर अपोजीशन यूं नहीं शामिल हुएके सम्बन्धमें वस्तु स्थिति कथित रूपसे यह बतायी जा रही है कि वहांके नेता विपक्ष कोरोना महामारीमें अपनी अस्वस्थताके कारण सम्मिलित नहीं हो पाये।

प्रख्यात विचारक एचडब्ल्यू बीचरका कथन था कि अहंकारी मनुष्यमें कृतज्ञता बहुत कम होती है, क्योंकि वह यही समझता है कि मैं जितना पाने योग्य हूं उतना मुझे कभी प्राप्त नहीं होता। निश्चय ही ममता बनर्जीने अपने पदकी गरिमाको चोट पहुंचानेके साथ ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओंकी तुष्टीके लिए सूबेके वरिष्ठतम नौकरशाहोंको भी आगे करके विवादका वितंडा खड़ा करनेकी जो परिपाटी शुरू की है, वह भारतीय  लोकतंत्रकी गरिमाक धूल-धूसरित कर रही है। भारतके संविधानसम्मत संघीय ढांचेकी जड़ोंमें म_ा डालनेका कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। पहले भी पश्चिम बंगालकी सियासतमें टीएमसीकी सरकारमें राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक प्रतीकोंके अपमानकी घटनाएं उजागर होती रही हैं, परन्तु अब संवैधानिक प्रतीकोंपर भी हल्लाबोलका नया शिगूफा शुरू कर विकृत मानसिकताका परिचय दिया जा रहा है, जो कि खेदजनक स्थिति है। बीते दिनों इसी पार्टीके मौजूदा सांसद द्वारा खुलेआम सूबेके संविधानिक मुखिया माने जानेवाले महामहिम राज्यपालको अपशब्द कहना और जनताको उनके खिलाफ एफआईआर करवानेका आह्वïान करते हुए कार्यकाल खत्म होनेके दिन अरेस्ट करनेकी धमकी देना क्या सूबेकी नकचढ़ी मुख्य मंत्रीकी सहमतिके वगैरह सम्भव नजर आता है। एक अन्य मामला नयी दिल्लीमें कोरोना महामारी जैसे संवेदनशील मसलेपर मोदी द्वारा देशके मुख्य मंत्रियोंकी आहूत बैठककी डिजिटल  काररवाईको चुपकेसे आनलाइन प्रसारित करनेका सुनियोजित षडय़ंत्र एक भारतीय राजस्व सेवाकी सर्विसमें रह चुके दिल्लीके मुख्य मंत्री द्वारा किया जाना शर्मनाक स्थितिकी ओर इंगित करता दीखता है और फिर चोरी पकड़ी जानेपर मासूमियतसे खेद जताकर मामलेपर लीपा-पोती कर खुद सहानुभूति हासिल करनेका प्रयास करना सर्वथा हास्यास्पद एवं विस्मयकारी ही नजर आता है। भारत सरकारको अपने-अपने निजी एजेण्डेकी आढ़में नीचा दिखानेकी जो अंधी दौड़ शुरू की गयी है वह देशके लोकतंत्रके लिए कालान्तरमें कितनी घातक सिद्ध होगी क्या अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे स्वेच्छाचारी मनोवृत्तिके नेताओंको किंचित रंचमात्र भी इसका आभास है। प्रधान मंत्री द्वारा समय-समयपर कोरोना संकटपर केन्द्रित बैठकोंमें जानबूझकर अनुपस्थित दर्ज कराकर ममता बनर्जी क्या संदेश देना चाहती हैं। बीस हजार करोड़का राहत पैकेज भी चाहिए और बैठकमें औपचारिक उपस्थिति भी दर्ज नहीं करायंगी। अधिकारी भी अपने सीएमका अंधानुकरण कर अपना लोकसेवकका दायित्व निभानेसे परहेज करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ रहे, आखिर तूफानसे हुए नुकसानके कारण घरविहीन, खेती-बाड़ी तहस-नहस होनेसे भुखमरीकी कगारपर जा पहुंची गरीब निरीह जनता राजनीतिक रोटियां सेंकनेवाली अपनी सीएमसे क्या आस करे। आये दिन देशमें लोकतंत्र खतरेमें पडऩे, तानाशाही अपनानेका कथित आरोप बयान जारी कर या ट्विटर और डिजिटल मीडियाके विविध प्लेटफार्मपर नियमित तौरपर जारी करनेका सतत् अभियान चलानेवाली कांग्रेसके स्वनाम धन्य युवा राहुल गांधी और उनके सिपहसालार सहित पार्टीकी मुखिया सोनिया गांधीकी ममता बनर्जीके इस अलोकतान्त्रिक हरकतपर बरती गयी रहस्यमयी चुपी प्रश्न खड़ा करती है।

भारतमें डर लगता है कहनेवालोंकी चौकड़ी आज पश्चिम बंगालकी मुख्य मंत्रीके अलोकतान्त्रिक हरकतपर खामोश होकर तमाशा देख रही है। दिल्लीसे लेकर यूएनओतक विदेशी मीडियाको बाइट देनेवाले नेताओं और स्वयंसेवी संघटनों एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओंका चोला ओढ़कर विदेशी चंदेसे पुष्पित पल्लवित यह पूरी लांबी भी सन्निपातमें है। यह करतूत कदाचित किसी भाजपाशासित राज्यमें की गयी होती तो मामलेकी ऐसीकी तैसी की जा रही होती। यह सलेक्टिव होती स्वार्थपरक राजनीति भारतीय लोकतंत्रकी गरिमाको वैश्विक पटलपर कितनी कलंकित कर रही है, काश हमारे राजनीतिज्ञोंको यह सचाई अब भी नजर आ जाती तो अच्छा होता! ममता बनर्जी और उनकी शहपर सूबेकी नौकरशाहीका केन्द्र सरकारके साथ बरता जा रहा यह असहयोगात्मक रवैया संवैधानिक  मानदण्डों और सहकारी संघवादकी गौरवशाली परम्पराओंको खोखला करनेके लिए ही उत्तरदायी माना जायगा, जो कि राष्ट्रीय सम्प्रभुता और प्रगतिके नवनूतन सोपानके मार्गमें  रोड़ा ही सिद्ध होगा।