सम्पादकीय

सख्ती ही एकमात्र विकल्प


डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा  

देशमें कोरोनाके पीक समय सितंबरमें भी एक दिनमें अधिकतम ९७ हजार ८६० कोरोना संक्रमित एक दिनमें देशमें सामने आये थे। कोरोनाकी दूसरी लहरकी सूचना जब इंग्लैण्ड सहित योरोपीय देशोंसे आने लगी थी तो हम उत्साहित थे कि हमारे यहां दूसरी लहर इसलिए नहीं आयगी कि सरकार द्वारा अहतियाती कदम उठाये जाने लगे हैं। लंबे लाकडाउन और कोरानाके कारण पटरीसे उतरी आर्थिक गतिविधियोंके ठप होनेसे आम आदमी भी रुबरु हो गया था। रोजगारपर संकट आ रहा था तो कारोबार सिमट रहा था। ऐसेमें यह माना जाने लगा था कि आम इससे सबक लेगा। फिर सबसे बड़ा हथियार हमारा वैक्सीनेशन कार्यक्रम था और लगने लगा था कि ज्यों-ज्यों वैक्सीनेशनका दायरा बढ़ता जायगा कोरोना संक्रमण स्वत: ही अंतिम सांस ले लेगा। परन्तु परिणाम इससे इतर सामने आने लगे हैं जिससे केन्द्र एवं राज्योंकी सरकारें चिंतीत हो गयी है। हैं भी चिन्ताकी बात। कोरोनाका असर सबसे ज्यादा महाराष्ट्र सहित दस राज्योंमें देखा जा रहा है। हालांकि देशके २३ राज्योंमें कोरोनाकी दूसरी लहर आनेकी बात सरकार स्वयं मान रही है। अकेले महाराष्ट्रमें रविवारको ५७०७४ नये मामले सामने आये हैं। देशमें कोरोनासे मौतके मामलें भी बढ़ रहे हैं। हालांकि इस बातपर संतोष किया जा सकता है कि देशमें कोरोना वैक्सीनेशनमें तेजी आयी है और लोग वैक्सीनेशनको लेकर अवेयर होने लगे हैं।

कोरोनाके नये दौरको देखते हुए महाराष्ट्रमें कई स्थानोंपर लाकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देशकी कई राज्य सरकारोंने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिये है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मोनेटरिंग कर रहे हैं तो राज्योंकी सरकारें भी गम्भीर हुई है। राजस्थान सरकार शुरूसे ही गम्भीर रहनेके साथ ही हम सतर्क है कि टेगलाईनके साथ काम कर रही हैं वहीं राजस्थानमें १९ अप्रैलतक आंशिक लाकडाउन लगा दिया गया है। मुख्य मंत्री अशोक गहलोत नियमित समीक्षा कर रहे हैं और आवश्यक निर्देश दिये जा रहे हैं। कोरोना प्रोटोकालकी पालनाके लिए सख्तीका सहारा लेनेके साथ ही ९वींतक स्कूल, जिम, सिनेमा, स्विमिंग पूल आदि बंद करनेके आदेश जारी किये जा चुके हैं। हालांकि इस बातपर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकालकी पालनाको लेकर राज्योंकी सरकारें सजग रही है परन्तु सख्तीके अभावमें लापरवाहीके कारण कोरोनाके नये मामले तेजीसे बढऩे लगे हैं। कोरोनाके बढ़ते संक्रमण और वैक्सीनेशनके बीच देशमें करवाये गये एक सर्वेंमें सामने आया है कि कोरोना प्रोटोकालकी पालना नहीं होती तो शायद देशमें प्रतिदिन दोसे ढाई लाखतक मामले सामने आते। हालांकि यह भी दावा किया गया है कि कोरोनाकी रोकथामके लिए दवाके स्थानपर बचावके उपाय अधिक कारगर साबित हो रहे हैं। सरकारोंके अवेयरनेस कार्यक्रमोंमें भी बचावको ही बेहतर उपाय बताया जा रहा है। सवाल यह है कि सरकारोंके सख्त प्रावधानोंके बावजूद कोरोनाकी रफ्तारमें एकाएक तेजी किस कारणसे आ रही है। आज दुनियाके देशोंमें कोरोना संक्रमणके एक दिनी मामलोंमें हम शीर्षपर पहुंच गये हैं। यह गम्भीर चिन्ताका कारण है।

एक बात साफ हो जानी चाहिए कि कोरोनासे लड़ाई केवल और केवल लाकडाउनसे नहीं लड़ी जा सकती। लाकडाउनको तो अंतिम विकल्पके रूपमें ही देखा जाना चाहिए। लाकडाउनके कारण बहुत कुछ खो चुके हैं। थोड़ी-सी सावधानी ही हमें इससे बचा सकती है। यही कारण है कि अब सरकार पांच सूत्री रणनीति लागू करने जा रही है। इसमें टेस्टिंग, ट्रिसंग और ट्रीटमेंटके साथ ही कोविड बचाव संबंधी सावधानियां और टीकाकरणमें तेजी लाना शामिल है। सरकारकी रणनीति अपनी जगह सही है परन्तु नये संक्रमणको रोकनेमें सबसे ज्यादा जो कारगर हो सकती है वह है आम नागरिकों द्वारा कोरोना प्रोटोकालकी सख्तीसे पालना। सरकारको भी कोरोना प्रोटोकालकी पालनाके लिए सख्ती करनी ही होगी। एक सख्तीसे काफी कुछ ठीक किया जा सकता है तो फिर लोगोंको घरोंमें बंद कर सबकुछ ठप करना ठीक नहीं हो सकता। दो गजकी दूरी, मास्क जरूरी और बार-बार हाथ धोनेकी पालना ही तो करनी और करानी है। इसमें भी सरकारके जिम्मे मास्क जरूरीकी पालना कराना है। कोई भी हो कितना भी प्रभावी हो मास्क नहीं पहने हो तो जुर्माना और सजा जो भी हो उसकी सख्तीसे पालना करवायी जाय। इसमें किसी तरहकी रियायत नहीं होनी चाहिए।

पिछले एक सालके कोरोना कालका विश्लेषण किया जाय तो जिस जिस देशकी सरकारने कोरोना कालमें सख्ती की है उसे वहांकी जनताने सराहा है और कड़े फैसलोंका समर्थन किया है। जहां डिलमिल रवैया रहा वहां राजनीतिक अस्थिरता भी देखनेको मिल रही है। ऐसेमें कोरोना प्रोटोकालकी पालनामें किसी तरहकी रियायत नहीं होनी चाहिए। एक और सरकारोंको सार्वजनिक परिवहन वाहनों यातायातके साधनों और बाजारों, माल्स आदिमें सख्तीसे पालना करानी होगी तो राहगीरों, स्ट्रीट वेंडरो, ठेलों-खोमचोंवालोंपर भी मास्क पहननेकी सख्ती करनी ही होगी। सबसे बड़ी बात यह कि मानवताको बचानेके लिए यदि कोरोना संक्रमण कालके लिए सार्वजनिक आयोजनोंपर कार्यक्रमोंपर सख्तीसे पाबंदी लगा दी जाय तो यह कारगर उपाय हो सकता है। आखिर किसी एककी नासमझीका खामियाजा अन्य लोगोंको क्यों भुगतना पड़े। हालांकि इसपर दो राय हो सकती है परन्तु मेरा मानना है कि देशमें नीचले स्तरसे लेकर विधानसभाओं और अन्य उपचुनावोंको स्थगित रख दिया जाय तो कोरोना संक्रमणपर प्रभावी रोक लगायी जा सकती है। यदि पुराने चुने हुए लोग साल दो साल ज्यादा भी काम कर लें तो इससे कोई खास फर्क नहीं पडऩेवाला है जबकि चुनावोंके कारण चुनावी रैलियां एवं अन्य गतिविधियां बढऩेसे प्रोटोकालकी पालनाकी बात करना बेमानी ही है। इसी तरहसे सभी तरहके प्रदर्शनोंपर भी सख्तीसे रोक लगा देनी चाहिए। धारा १४४ की सही मायनेमें पालना यानी कि पांचसे अधिक लोग एकत्रित न हो, मास्क नहीं लगानेपर सख्तीसे वसूली और सोशल डिस्टेसिंगकी पालनामें सख्ती होगी तभी कोरोनाके खिलाफ जंग जीती जा सकती है।