सम्पादकीय

सद्गुरुकी महिमा


बाबा हरदेव
एक-एक धड़कन उसकी अपनी है। जरा-सी आंच भी उसको आती है, तो उसको पीड़ा शुरू हो जाती है। वह एक निष्काम भावसे की हुई देखभाल है। वह निष्काम भावसे किया हुआ प्रेम है। इसी तरहसे इस प्रभुके साथ भी यह भक्त निष्काम भावसे प्रेम करता है और कोई कामना रखे बिना करता है। कहा भी है।
कामी क्रोधी लालची, इनते भक्ति न होय। भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वर्णकूल खोय॥
यानी भक्त लालसाके बिना प्रेम किया करते हैं। वह प्रेम इसलिए करते हैं कि यह आनन्दका स्रोत होता है। इस दिव्य चक्षु या ज्ञान दृष्टिको प्राप्त करनेके लिए गृहस्थ छोडऩेकी जरूरत नहीं। इसी तरहसे प्रभुको जब हम याद करते हैं, इसकी प्राप्तिकी इच्छा यदि हमारे मनमें है तो फिर इस इच्छाकी पूर्ति भी करनी आवश्यक है, इस मालिकके साथ अपना नाता जोड़ लेना है, जिसका जिक्र हुआ कि ये हर जगह मौजूद है। यह पत्ते-पत्तेमें है, डाली-डालीमें है। कोई भी ऐसा स्थान नहीं जहांपर मालिक मौजूद नहीं। इसे देखनेके लिए केवल दिव्य चक्षुकी जरूरत है और दिव्य चक्षु या ज्ञान दृष्टिको प्राप्त करनेके लिए न तो गृहस्थ छोडऩेकी आवश्यकता है, न जंगलों, पर्वतों, वीरनों आदिमें जाकर डेरा डालनेकी जरूरत है और न ही अपने कर्तव्योंका त्याग करनेकी आवश्यकता है। जिस तरह अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण जीके साथ कई वर्ष रहे, लेकिन वह अनेक वर्ष अज्ञानतामें ही व्यतीत हुए। अर्जुनने जब जिज्ञासा प्रकट की, तब भगवान श्रीकृष्णने दिव्य चक्षु प्रदान कर उसकी अज्ञानताको दूर किया। यदि कोई कहे कि हम इस गृहस्थी, इस मायाजालको छोड़ दें, कहींपर वीरानोंमें डेरे लगा लें, तब इस प्रभुकी प्राप्ति की जा सकती है, लेकिन श्रीकृष्णका उपदेश तो रणके मैदानमें, कुरुक्षेत्रमें दिया गया था। यदि हम ऐसा भी मान लें कि कुरुक्षेत्र कोई मैदान नहीं था, यह तो कर्मके क्षेत्रका जिक्र हो रहा है। इससे भी यही सिद्ध है कि कृष्ण भी अर्जुनको तब ज्ञान दे रहे हैं, जब वह कर्म क्षेत्रमें है। कर्मसे दूर रहकर, उन फर्जोंसे दूर भागनेपर वह अपने इस विराट स्वरूपका ज्ञान नहीं करा रहे हैं। आज यहांपर भी यही बात कही जा रही है कि आप इस निरंकारको जान सकते हैं, इस आत्माको इस निरंकारके साथ जोड़ सकते हैं। अपने निज घरको प्राप्त करके आपका भवसागरका बंधन टूट सकता है तथा आवागमनसे छुटकारा मिल सकता है। साधसंगत जैसे दुनियामें कोई इनसान किसी कामको करनेका दावा करता है तो हम कहते हैं यह करके दिखाओ। जब निरंकारी मिशनसे यह आवाज मिलती है कि प्रभु परमात्माकी पहचान हो सकती है, इसकी प्राप्ति हो सकती है। यदि हम यही कहते रहें कि नहीं हो सकती और हम घरोंको लौट आयें तो यह हमारी भूल होगी।