सम्पादकीय

समाधि


जग्गी वासुदेव

समाधि किसे कहते हैं। समाधि शब्दको ज्यादातर गलत समझा गया है। लोग समाधिको मौत जैसी कोई परिस्थिति मान लेते हैं। समाधि शब्द दो शब्दोंसे मिलकर बना है ‘समÓ और ‘धीÓ। ‘समÓ का मतलब है एक जैसा होना और ‘धीÓ का मतलब बुद्धि है। यदि आप बुद्धिके एक समान स्तरपर पहुंच जायं, जहां आप बुद्धिसे कोई फर्क नहीं करते, प्रत्येक चीजको एक जैसा देखते हैं तो उसे समाधि कहते हैं। बुद्धिका मूल स्वभाव है अंतर बनाना। आप एक व्यक्ति और एक पेड़में इसीलिए फर्क कर सकते हैं क्योंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है। यह फर्क करनेका गुण हमारे जीवित रहनेके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आपको कोई पत्थर तोडऩा है तो आपको उस पत्थर और अपनी अंगुलीमें फर्क समझना होगा, नहीं तो आप अपनी अंगुली तोड़ लेंगे। फर्क करनेका गुण वह साधन है जो आपके शरीरकी हर कोशिकामें मौजूद जीवित रहनेकी इच्छाको सहयोग देता है और उसे चलाता है। यदि आप इस बुद्धिके परे चले जाते हैं तो आप समबुद्धिवाले हो जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी फर्क करनेकी काबिलियत खत्म हो जाती है। यदि यह खत्म हो जाय तो आप पागल हो जायंगे। समाधिकी अवस्थामें भी आपकी फर्क करनेवाली बुद्धि अपनी सही अवस्थामें होती है। आप कोई फर्क, कोई अंतर नहीं कर रहे, आप बस वहां हैं और जीवनको उसका सही काम करते हुए देखते हैं। जिस पलमें आप बुद्धिको छोड़ देते हैं या उससे परे चले जाते हैं तो फिर कोई फर्क नहीं रह जाता। हर चीज एक हो जाती है, पूर्ण बन जाती है, जो एक वास्तविकता है। इस तरहकी अवस्था आपको अस्तित्वकी एकात्मकताका, यानी हर चीजके एकीकरणका अनुभव देती है। आध्यात्मिकताका पूरा पहलू मात्र जीवित रहनेके भावके परे जाना है, जो सिर्फ जीवनकी भौतिकताके लिए ही मायने रखता है। समाधि, सम होनेकी, हर चीजको एक जैसा देखनेकी वह अवस्था है, जिसमें बुद्धि अपने फर्क करनेके समान्य कामके परे चली जाती है। इसके कारण व्यक्ति अपने शरीरसे थोड़ा छूटा हुआ है। आपका शरीर और आप जो हैं, उसमें अंतर आ जाता है। इस अवस्थामें कोई समय या स्थान नहीं रहता। समय और स्थान यह आपके मनकी रचनाएं हैं। जब आप मनकी सीमितताके परे चले जाते हैं तो समय और स्थान, आपके लिए अस्तित्वमें ही नहीं रहते। जो अब है, वह तब भी था। आपके लिए कोई भूत या भविष्य नहीं रह जाता। आपको लग सकता है कि कोई व्यक्ति तीन दिनोंसे समाधिमें है, परन्तु उनके लिए यह बस कुछ ही पलोंकी बात है, यह इसी तरहसे गुजर जाता है। जो है और जो नहीं है, यह उनके लिए दो बातें नहीं रह जातीं, वह इससे परे चले जाते हैं। वह सीमासे परे चले गये हैं और उन्होंने उस स्थितिका अनुभव कर लिया है जो नहीं है जिसका कोई आकार, रूप, परिचय, गुण नहीं है, कुछ भी नहीं है।