सम्पादकीय

सिरदर्द बनता अंतरिक्षका कचरा


भारत डोगरा
अंतरिक्षके सैन्यीकरणकी ओर कदम निरंतर बढ़ते जा रहे हैं जिससे अलग तरहकी समस्याएं पैदा हो रही हैं। वर्ष १९५७ से अबतक लगभग ८५०० सैटेलाइट अंतरिक्षमें भेजे गये हैं। इन तमाम सैटेलाइटोंने निश्चित रूपसे अनेक उपयोगी भूमिकाएं निभायी हैं। उदाहरणके लिए इन्होंने संचार व्यवस्थाको बढ़ावा दिया और मौसम विज्ञानके लिए भी खासे मददगार साबित हुए। लेकिन इसके साथ ही अनुपयोगी हो चुके सैटेलाइटों और उनमें हुई टूट-फूटका मलबा भी अंतरिक्षमें एकत्र होता रहा। यह मलबा हमारे लिए कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। जैसे भविष्यमें रॉकेट या सैटेलाइटसे मलबा टकरानेकी घटनाएं सामने आ सकती हैं। अंतरिक्षमें इन तीनों ही चीजोंकी रफ्तार बहुत तेज होती है, इसलिए एक कंचे या टॉफीके साइजका मलबा भी बड़े नुकसानका कारण बन सकता है। अंतरिक्षके मलबेके बारेमें बढ़ती चिंताका प्रमुख कारण यह है कि समय बीतनेके साथ वहां घूमनेवाले सैटेलाइटोंकी संख्या बहुत तेजीसे बढ़ती जा रही है। पिछले ६३ वर्षोंमें सभी देशोंने अंतरिक्षमें लगभग ८५०० सैटेलाइट भेजे हैं, लेकिन अब संयुक्त राज्य अमेरिकाकी केवल एक कम्पनी स्पेस एक्सने अगले कुछ वर्षोंमें १२००० सैटेलाइट भेजनेकी अनुमति प्राप्त की है। इसके आगे और भी सैटेलाइटोंके लिए स्वीकृति प्राप्त करनेकी उसकी योजना है। यह अपेक्षाकृत छोटे सैटेलाइट हैं लेकिन जरूरी बात यह है कि अन्य प्रतिस्पर्धी कम्पनियां भी इस क्षेत्रमें अपनी सक्रियता बढ़ानेकी तैयारी कर रही हैं। सैटेलाइटोंको लेकर होड़ बढऩेका एक कारण यह है कि संचार क्षेत्रमें ५जीके आगमनकी तैयारी हो रही है और अन्य क्षेत्रोंमें भी सैटेलाइट तकनीकके उपयोग बढ़ रहे हैं। इन दोनोंके अलावा एक अन्य मुद्दा यह है कि इन तमाम सैटेलाइटोंके सिविलके साथ सैन्य उपयोग भी संभव हैं। संचार क्षेत्रकी कंपनियोंके अपने देशके सुरक्षा तंत्रसे नजदीकी संबंध हो सकते हैं। फिलहाल इतना निश्चित है कि सैटेलाइटोंकी बढ़ती उपस्थितिके साथ अंतरिक्षमें मलबा तेजीसे बढ़ेगा और वहांसे इसे हटानेकी किसी तकनीकके बारेमें अभी सोचा भी नहीं गया है। अंतरिक्षीय मलबेके लगभग १८००० बड़े टुकड़ोंपर तो वैज्ञानिकोंकी नजर है परन्तु छोटे टुकड़ोंकी संख्या कहीं अधिक है, जिनपर नजर रखना मुमकिन नहीं है। इनकी अनुमानित संख्या १२ करोड़के आसपास बतायी जाती है।
हालमें जो बड़ी संख्यामें सैटेलाइट एक साथ भेजे गये तो अनेक खगोल वैज्ञानिकोंने कहा कि इससे अंतरिक्षमें प्रकाश प्रदूषण इतना बढ़ रहा है कि उनके लिए अपना कार्य करना कठिन हो गया है। यही नहीं, ५जीकी संचार तकनीकोंमें इस्तेमाल होनेवाले सैटेलाइटोंके साथ तो पर्यावरणकी और भी गंभीर समस्याएं जुड़ी हैं। अंतरिक्षका सैन्यीकरण भी कोई कम गंभीर समस्या नहीं है। इसके सामान्यत: तीन पक्ष माने जाते हैं। पहला पक्ष तो यह है कि अंतरिक्षमें एक सैटेलाइट द्वारा दूसरे सैटेलाइटपर आक्रामक या क्षति पंहुचानेकी काररवाई हो। उदाहरणके लिए सैटेलाइटकी किसी क्षमताको कम या निष्क्रिय किया जा सकता है या उसे तबाह भी किया जा सकता है। दूसरा पक्ष यह है कि धरतीसे दुश्मन देशके सैटेलाइटको मिसाइल द्वारा नष्ट करनेकी काररवाई की जाय। कुछ देशोंने अपने ही निष्क्रिय सैटेलाइटोंपर ऐसे टेस्ट किये हैं। किसी दुश्मन देशके सैटेलाइटपर हमला अबतक नहीं किया गया है। तीसरी संभावना यह है कि अंतरिक्षसे धरतीके सैन्य निशानेपर आक्रामक काररवाई की जाय। अभीतक इस तरहकी कोई आक्रामक काररवाई किसी दुश्मन देशके विरुद्ध अंतरिक्षमें नहीं हुई है, लेकिन इस आधारपर यह नहीं कहा जा सकता कि भविष्यमें भी ऐसा नहीं होगा। इन तीनों संभावनाओंके बारेमें चर्चा होती रही है। चूंकि इन सभी तकनीकोंमें अमेरिका इस समय सबसे आगे है, इसलिए आशंका जतायी जाती है कि वह अपनी इस तकनीकी दक्षताका उपयोग विश्वपर अपना प्रभुत्व बढ़ानेके लिए कर सकता है।
अमेरिकामें रहनेवाले कार्ल ग्रासमैन पत्रकारिताके प्रोफेसर हैं और वे अंतरिक्षके सैन्यीकरणके विरुद्ध एक प्रमुख आवाजके रूपमें उभरे हैं। अनेक दस्तावेजोंके आधारपर इस मामलेमें चर्चा करते हुए उन्होंने चेतावनी दी है कि इसमें मौजूदा प्रभुत्व अमेरिकाका है, जिसे रूस और चीन चुनौती अवश्य देना चाहेंगे। इस तरह अंतरिक्षके सैन्यीकरणकी होड़ आरंभ होगी। उनका कहना है कि यह संभावना मनुष्य ही नहीं, तमाम जीव जंतुओंके लिए बेहद खतरनाक है। इसलिए अंतरिक्षके सैन्यीकरणके विरुद्ध एक बड़ा अभियान शुरू होना चाहिए। ग्रासमैनने कुछ शांति संघटनोंके साथ मिलकर एक ऐसा अभियान आरंभ भी कर दिया है। अंतरिक्ष युद्धकी चर्चा अब किस्से-कहानी और विडियो-फिल्मकी परिधिसे बाहर निकलकर वास्तविकताकी ओर जा रही है तो यह निश्चय ही गहरी चिंताका विषय है। अंतरिक्ष युद्ध हो या न हो, यदि अंतरिक्षका उपयोग सैन्य दृष्टिसे होने लगा तो यह भी अपने आपमें बहुत खतरनाक होगा। वैज्ञानिकोंने बहुत मेहनतसे विकास संबंधी उद्देश्योंके लिए सैटेलाइट तकनीकको आगे बढ़ाया है। यदि कुछ बड़ी ताकतोंने अंतरिक्षके सैन्यीकरणपर जोर देनेकी कोशिश की तो छोटे-बड़े सभी देशोंको विकासकी संभावनाओंकी क्षतिके रूपमें नुकसान झेलना पड़ सकता है। ऐसेमें बहुत जरूरी हो गया है कि अंतरिक्षका उपयोग सभी मनुष्यों और जीवन रूपोंकी भलाईके लिए किया जाय। इसे कुछ देशों और कंपनियोंकी होड़का क्षेत्र न बनाया जाय। जनहितको समर्पित वैज्ञानिक संघटनों और विश्व शांति आंदोलनको आनेवाले दिनोंमें अधिक ध्यान इस ओर देना होगा कि अंतरिक्ष विकासका क्षेत्र बना रहे, विनाशका क्षेत्र न बने।