सम्पादकीय

सीमापर पूरी तैयारी


भारतीय सेनाकी क्षमता और दक्षता जहां भारतके लिए गर्वका विषय है वहीं चीनके लिए यह परेशानीका सबब है। गलवान घाटीमें भारतीय सेनाका शौर्य और पराक्रम इसका दृष्टïान्त है। इससे चीन सैनिकोंके छक्के छूट गये। इस परिप्रेक्ष्यमें चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल विपिन रावतका एक महत्वपूर्ण बयान आया है, जिसमें कहा गया है कि चीनको अपनी सेनाके लिए बेहतर प्रशिक्षणकी आवश्यकता महसूस होने लगी है। पिछले वर्ष गलवान घाटी और अन्य स्थानोंपर हुई झड़पोंके बाद चीनको आभास हुआ कि उसे अब बेहतर तैयारीकी जरूरत है। एक समाचार एजेंसीके साथ भेंटवार्तामें जनरल रावतने यह भी कहा कि चीनके सैनिकोंकी भर्ती कम अवधिके लिए होती है। इसके अतिरिक्त उनके पास हिमालय जैसी पहाडिय़ोंपर लडऩेका कोई विशेष अनुभव भी नहीं है। हिंसक झड़पोंके बाद चीनको सीमापर अपनी तैनातीमें बदलाव करनेको विवश होना पड़ा। चीनके सैनिक मुख्य रूपसे मैदानी इलाकोंसे छोटी अवधिके लिए भर्ती किये जाते हैं जिसके कारण उनके पास पहाड़ी इलाकोंमें लड़ाई और तैयारीका अनुभव नहीं है, जबकि भारतीय सैनिक ऐसे क्षेत्रोंमें रहने और लडऩेमें दक्ष माने जाते हैं। भारतीय सेना ऐसे इलाकोंके लिए पूरी तरह तैयार है। पहाड़ोंके बीच कार्य करनेका उन्हें अच्छा प्रशिक्षण दिया जाता है। हम पहाड़ोंपर काम करते हैं और अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि सीमापर चीनकी हर गतिविधिपर हमारी सतर्क और सजग दृष्टिï है। सेनाकी बढ़ती तैनातीको देखते हुए उत्तरी मोर्चा भी पश्चिमी मोर्चाकी भांति महत्वपूर्ण हो गया है। दोनोंकी मोर्चे देशके लिए प्राथमिकता हैं। हमने इस तरह तैयारी की है कि हमारे जो सैनिक उत्तरी सीमापर तैनात हैं, वे पश्चिमी सीमापर भी काम करनेमें सक्षम हैं। उसी प्रकार पश्चिम सीमापर तैनात सैनिक उत्तरी सीमापर कार्य करनेके लिए तैयार हैं। उत्तरी सीमापर इसलिए अतिरिक्त सैन्य बलोंकी तैनाती की गयी है, क्योंकि वहां चीनी सेना अधिक सक्रिय है। वस्तुत: चीनपर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है। उसकी कथनी और करनीमें जमीन-आसमानका अन्तर है। चीन अपनी प्रतिबद्धताओंपर भी खरा नहीं उतरता है। परराष्टï्रमंत्री एस. जयशंकरने भी इसे स्वीकार किया है कि यह बड़ा मुद्दा है कि क्या चीन उस लिखित प्रतिबद्धताओंपर कायम रहेगा, जिनमें सीमापर बड़ी संख्यामें सशस्त्र बलोंकी तैनाती न करना भी शामिल है। ऐसी स्थितिमें चीनका चरित्र पूरी तरह संदिग्ध है और भारतको अपनी तैयारी पूरी रखना ही श्रेयस्कर है।

नेपालमें सियासी संकट

नेपालमें एक बार फिरसे सियासी संकट गहरा गया है। वहांके सर्वोच्च न्यायालयके फैसलेसे प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओलीको गहरा आघात पहुंचा है। न्यायालयने अल्पमत ओली सरकारमें की गयी मंत्रियोंकी नियुक्तिको असंवैधानिक बताते हुए २० कैबिनेट मंत्रियोंकी नियुक्तिको रद कर दिया है। नेपालके शीर्ष न्यायालयके इस आदेशके बाद प्रधान मंत्री ओलीके मंत्रिमण्डलमें उन्हें मिलाकर अब मात्र पांच ही मंत्री बचे हैं। केपी शर्मा ओलीको पिछले महीने संसदमें हारका सामना करना पड़ा था जिसके कारण उनकी सरकार अल्पमतमें आ गयी थी। इस कारण चार और दस जूनको मंत्रिमण्डलका विस्तार कर १७ कैबिनेट और तीन राज्य मंत्रियोंकी नियुक्ति की गयी। ओली सरकारके इस फैसलेकी काफी निन्दा हुई और इसके खिलाफ वरिष्ठï अधिवक्ता दिनेश त्रिपाठी सहित छह व्यक्तियोंकी ओरसे याचिका दायर कर इस फैसलेको निरस्त करनेकी मांग की गयी। सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति छोलेन्द्र शमशेर राणा और न्यायमूर्ति प्रकाश कुमार धुंगानाकी पीठने याचिकापर सुनवाई करते हुए संसदके भंग होनेके बाद मंत्रिमण्डल विस्तारको अनुच्छेद ७७ (३) का हवाला देते हुए ओली सरकारकी नियुक्तियोंको रद करनेका फैसला सुनाया। हालांकि प्रधान मंत्रीके विश्वास मत नहीं जीत सकने या इस्तीफा देनेके बाद यदि प्रधान मंत्रीका पद खाली होता है तो अगला मंत्रिमण्डल गठित होनेतक वही मंत्रिपरिषद काम करती रहेगी। नेपालका सियासी संकट नया नहीं है, जबसे ओली सरकार सत्तारूढ़ हुई है तबसे नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। इसके लिए ओलीकी चीनपरस्ती जिम्मेदार है, क्योंकि चीनसे गुमराह होनेके कारण उन्होंने जो भी कदम उठाया है, वह नेपालके हितोंके प्रतिकूल रहा है, यही कारण है कि ओलीको जबरदस्त विरोधका सामना करना पड़ रहा है। नेपालमें जो राजनीतिक अस्थिरताका माहौल बना है वह भारतके लिए जहां चिन्ताका विषय बन गया है, वहीं नेपालके विकासको अवरुद्ध कर रहा है जिससे वहां असंतोषकी ज्वाला धधक रही है। भारतको अपनी सतर्क दृष्टिï बनाये रखनी चाहिए।