सम्पादकीय

सुचारू रूपसे चले स्ंसद


डा. गौरीशंकर राजहंस     

प्रधान मंत्रीने विपक्षसे कहा कि आप धारदार प्रश्न पूछिए। परन्तु शांत वातावरणमें उसका उत्तर सुननेके लिए भी तैयार रहिये। क्योंकि संसदमें जो बहस होती है उसे भारतमें सब जगह जनता देखती है और भारत ही नहीं, भारतके बाहर भी लोग उसे देखते हैं और इस बातसे परिचित होते हैं कि भारतमें क्या हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतमें लाख बाधाओंके बावजूद भी लोकतंत्र अपनी पटरीपर है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि कोरोनाके भयावह दौरमें भारतमें हर तबकेकी जनताने अपार कष्ट झेले हैं। प्रधान मंत्रीने बार-बार कहा है कि अभी कोरोना समाप्त नहीं हुआ है। वह अपना रंग-रूप बदलता रहा है। इसलिए भारतकी जनताको सजग रहना चािहए। भारतीय मीडिया दिन-रात कह रहा है कि कभी भी कोरोनाका तीसरा दौर आ सकता है। इसलिए लोगोंका सजग रहना बहुत आवश्यक है। परन्तु प्रधान मत्री, स्वराष्टï्रमंत्री और रक्षामंत्रीके बार-बार आग्रह करनेके बावजूद भी संसदका मोनसून सत्र शुरूमें ही हगांमेकी भेंट चढ़ गया। हर देशकी संसदमें यह परम्परा रही है कि नया सत्र शुरू होनेपर प्रधान मंत्री अपने नये सहयोगियोंका परिचय कराते हैं। परन्तु देशमें इस बार विपक्षके नेताओंने ऐसा हंगामा किया कि दोनों सदनोंमें प्रधान मंत्री मोदी अपने नये मंत्रियोंका परिचय नहीं करा पाये। बहुत दुखी होकर प्रधान मंत्रीने कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि देशके दलित मंत्री बने, देशकी महिला, मंत्री बने, देशकी पिछड़ी जातिके मंत्री बने, किसान मंत्री बने, आदिवासी और अत्यन्त पिछड़े मंत्री बने। यह बातें कुछ लोगोंको रास नहीं आती। इसीलिए यह संसदमें इन तबकोंके नवनियुक्त मंत्रियोंका परिचय नहीं होने दे रहे हैं। प्रधान मंत्री शोर-शराबेके कारण अपने मंत्रियोंका परिचय लोकसभा और राज्यसभामें नहीं करा पाये और लाचार होकर अध्यक्षकी अनुमतिसे दोनों सदनोंमें नये मंत्रियोंकी सूची अध्यक्षको नवनियुक्त मंत्रियोंके औपचारिक परिचयके बिना सौंप दी। रक्षामंत्री राजनाथ सिंहने कहा कि वे २४ सालसे संसद सदस्य हैं और इस तरहकी शर्मनाक घटना पहली बार देख रहे हैं जब प्रधान मंत्रीको बोलने नहीं दिया गया। लाचार होकर वे अपने नये मंत्रियोंका सदनमें परिचय नहीं करा पाये। संसदका दूसरा दिन भी हंगामेकी भेंट चढ़ गया। प्रधान मंत्रीने बार-बार कहा कि सारी दुनियापर कोरोनाकी तीसरी लहरका छाया मंडरा रहा है और आगामी तीन-चार महीने भारतके लिए बहुत कठिन होंगे। इसलिए विपक्षको सरकारके साथ मिलकर सहयोग करना चाहिए जिससे आम जनता पीडि़त नहीं हो।

परन्तु विपक्षी नेताओंपर प्रधान मंत्रीकी अपीलका कोई असर नहीं पड़ा और दूसरे दिन संसदमें ‘बेगाससÓ जासूसी कांडको लेकर विपक्ष हमलावर रहा। लोकसभामें स्पीकरने कहा कि जब सरकार हर मुद्देपर चर्चा करनेको तैयार है तो यह हो-हल्ला क्यों हो रहा है? परन्तु विपक्षी दल स्पीकरकी अपीलको सुननेको तैयार नहीं थे और वे थोड़ी-थोड़ी देरमें सदनकी काररवाईको रोककर कुछ अन्तरालके बाद संसदकी काररवाई फिर चालू करते और तंग आकर अंतमें सदनकी काररवाईको पूरे दिनके लिए स्थगित करना पड़ा। सबसे आश्चर्यकी बात यह है कि लाख अपीलके बावजूद विपक्ष कुछ भी सुननेको तैयार नहीं है। प्रधान मंत्रीने बार-बार कहा, खासकर सर्वदलीय बैठकमें जोर देकर कहा कि सभी दलोंको राजनीतिसे ऊपर उठकर जी-जानसे कोरोनाका मुकाबला करना चाहिए। क्यों यह भयावह रूपके साथ बहुत शीघ्र भारतमें आनेवाला है। परन्तु विपक्षी नेताओंपर प्रधान मंत्रीकी अपीलका कोई असर नहीं पड़ा है और लगता है आगामी दिनोंमें यह जासूसी कांड संसदके दोनों सदनोंमें छाया रहेगा। सरकारकी तरफसे भाजपाके कई मुख्य मंत्रियोंने लोगोंको समझानेका प्रयास किया कि इस तरह संसदमें हो-हल्ला और हंगामा करनेसे किसीको कोई लाभ होनेवाला नहीं है। लाभ केवल देशके दुश्मनोंको ही होगा। इसलिए देशहितमें सभी दलोंको राजनीतिसे ऊपर उठना चाहिए और देशकी कठिन समस्याओंका समाधान सभीको मिलकर करना चाहिए। परन्तु विपक्ष कुछ भी सुननेको तैयार नहीं हुआ।

सत्रके अभी तो तीन दिन भी नहीं बीते हैं। आगामी १३ अगस्ततक संसदका मोनसून सत्र चलेगा जिसकी सूचना सरकारकी तरफसे दी गयी है। परन्तु लाख टकेका प्रश्न है कि क्या ससदमें आनेवाले दिनोंमें विपक्षी दलोंका यह हंगामा रूक पायेगा? भारतका लोकतंत्र अन्य विकासशील देशोंके लिए एक आदर्श है। ससदके दोनों सदनोंकी काररवाईको अन्य पड़ोसी देश भी बड़ी जिज्ञासासे देखते हैं और जब वह भारतकी संसदमें हो रहे हंगामेको देखते हैं तो पड़ोसी देश भी अपनी संसदमें हंगामा करनेसे बाज नहीं आते हैं।

भारतकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी है। लाखों लोग बेरोजगार हो गये है। व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो गया है और यह समझमें नहीं आ रहा है कि भारतकी अर्थव्यवस्था कब पटरीपर आयगी। ऐसेमेें संसदमें हंगामा कर विपक्षी दल देशके दुश्मनोंको ही बढ़ावा दे रहे हैं। भारतमें प्रकाशित होनेवाले प्राय: सभी समाचारपत्रोंने संसदमें होनेवाले हंगामेकी निन्दा की है और विपक्षी दलोंसे आग्रह किया है कि वे आपसी मतभेद भुलाकर देशहितमें काम करें। परन्तु विपक्षी नेताओंने जो रवैया अपनाया है उससे तो लगता यही है कि देशमें सामान्य स्थिति जल्दी नहीं हो पायगी। ऐसेमें हर भारतीयको अपने कलेजेपर हाथ रखकर यह सोचना होगा कि क्या वह अपने सांसदोंको सही रास्तेपर आनेके लिए समझा सकेंगे? इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत एक कठिन दौरसे गुजर रहा है और भगवान नहीं करे यदि कोरोनाकी तीसरी लहर आ जायगी तो आम जनताका जीना दुभर हो जागगा। ऐसेमें सभी दलोंको अपने मतभेदोंको भूलाकर देश और देशवासियोंके हितमें काम करना चाहिए।