सम्पादकीय

ईश्वरकी भक्ति


जग्गी वासुदेव

भक्ति कुदरतकी तरह है। कुदरत देनेमें कंजूसी नहीं करती, वह हर चीजमें अपने आपको पूरी तरहसे समर्पित कर देती है, कुदरतकी हर चीज अपनी पूरी क्षमतासे देना जानती है। जबकि मनुष्य बचत करनेका प्रयास करता है। क्योंकि इनसान खुशी, अपना प्यार और वह सारी बातें, जो उसके लिए बेहद प्रिय एवं मायने रखती हैं, उन्हें बचानेकी कोशिश करता है, इसलिए उसे कई तरहका आडंबर करना पड़ता है। यदि मनुष्य सिर्फ चुपचाप बैठकर पूर्ण आनंदमें जा सके तो फिर उसे अपना सारा ध्यान रातके खाने और पीनेके इंतजारमें नहीं लगाना पड़े। लेकिन मनुष्यने जीवनके प्रति अपना स्वभाव ही ऐसा बना लिया है कि वह हर वक्त अपनेको बचानेकी कोशिश करता है। हर वक्त इन्तजार करते रहता है। कब रात होगी और कब खाना मिलेगा। यदि मनुष्य हर पल अपने आपको आनन्दमें सरोबार पाता, भावातिरेकमें खो गया होता तो उसका मन रातके खाने या किसी अन्य भौतिक सुखके इन्तजारमें व्यर्थ चिंतन करते हुए व्यतीत नहीं होता। इन भौतिक सुखोंकी सोचमें मनुष्य अपने जीवनका ज्यादातर समय बर्बाद नहीं करता। भक्ति होती ही ऐसी है, जिसमें आपको आत्मसंचयन यानी खुदको बचानेकी अपनी हर हद और चाहरदीवारी गिरा देनी होती है और स्वयंको अपनी सर्वाधिक सीमातक बहने देना होता है। यदि आप किसीके भी प्रति समर्पित होकर एक बार अपने अस्तित्वके ठोस ढांचेको गिरा देते हैं तो सहसा आप पायंगे कि जिसके प्रति भी आप समर्पित हैं, उसकी खूबियां आपके भीतर प्रतिबिंबित हो उठेंगी और वही खूबियां आपमें तब्दील हो जायंगी। इसे अपने जीवनमें कई रूपोंमें बेहद नाटकीय ढंगसे घटते देखे। चाहे वह लेखक हों, वैज्ञानिक, खिलाड़ी, घरेलू महिला या कोई अन्य व्यक्ति क्यों न हो, यदि वह अपने कामको पूरे समर्पणके साथ करता है तो उसमें अलग तरहकी खूबियां नजर आने लगती हैं। एक महिला संत हुई हैं। क्योंकि वह बोलती नहीं थीं, अत: कोई नहीं जानता था कि वह कहांसे आयी थी। लेकिन उसके चेहरेको देखकर लगता था कि वह नेपालसे आयी थी। वह दक्षिणी भारतके छोरपर बसे शहर कन्याकुमारीमें रहती थी। वह अकसर सड़कोंपर घूमती रहती और कुत्तोंको खाना खिलाती। इस तरहसे उसके आसपास कुत्तोंका एक पूरा परिवार खड़ा हो गया। यहांतक कि जब वह खुद खाना नहीं खाती, तब भी कुत्तोंको खाना खिलाती थी। दरअसल वह कुत्तोंसे बेहद प्रेम करती थीं। उसे कई बार काफी अशोभनीय और नागवार सामाजिक हालातोंका सामना करना पड़ा। लेकिन तभी लोगोंने उन्हें कभी-कभी महासागरकी लहरोंपर तरते या बहते पाया। लोगोंने जब यह सब देखा तो उन्होंने उनकी पूजा करनी शुरू कर दी।