सम्पादकीय

भयावह वायु प्रदूषण


विश्वमें वायु प्रदूषणकी भयावह स्थितिका सहज अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि प्रतिवर्ष ७० लाखसे अधिक लोगोंकी मृत्यु वायु प्रदूषणसे जनित गम्भीर श्वसन रोगोंके कारण हो जाती है। श्वसन सम्बन्धी रोगोंने अन्य गम्भीर रोगोंको पीछे छोड़ दिया है। जहरीली हवा मानव जीवनके लिए सर्वाधिक खतरनाक साबित हुई है। विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्टसे जो तथ्य सामने आये हैं वह विश्वके लिए सबसे अधिक चिन्ताका विषय है। यदि इस खतरेसे निबटनेके लिए गम्भीरता और ईमानदारीके साथ कारगर उपाय नहीं किये गये तो इसके दुष्परिणाम और भी अधिक भयावह होंगे, जिसके लिए पूरा विश्व जिम्मेदार माना जायगा। विश्व स्वास्थ्य संघटनने वायु प्रदूषणकी भयावह स्थितिको देखते हुए वर्ष २००५ के बाद पहली बार हवाकी गुणवत्ताके मानदण्डोंमें बदलाव करते हुए १९४ सदस्य देशोंसे नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड सहित सभी छह गैसों और पदार्थोंका उत्सर्जन कम करनेकी सख्त हिदायत दी है। संयुक्त राष्टï्र महासभाके चालू सत्रके दौरान जलवायु परिवर्तनपर चर्चाके साथ ही डब्ल्यूएचओकी रिपोर्टको भी पटलपर रखा गया। डब्ल्यूएचओने वायु प्रदूषणके कारण होनेवाली हृदय और फेफड़ेसे सम्बन्धित बीमारियों और उससे होनेवाली मौतोंको कम करनेके लिए दिशा-निर्देश भी जारी किया है, जिसका अनुपालन अत्यन्त आवश्यक है। इसमें प्रदूषकोंके अधिकतम अनुशंसित स्तरको घटा दिया गया है जिससे कि उसके अनुपालनमें कठिनाई कम हो। वस्तुत: वायु प्रदूषण जलवायु परिवर्तनका कारक होनेके साथ ही मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणके लिए सबसे बड़ा खतरा है। यदि प्रस्तावित मानकों और दिशा-निर्देशोंका ईमानदारीसे अनुपालन किया जाय तो वायु प्रदूषणसे विश्वमें होनेवाली मौतोंको ८० प्रतिशततक रोका जा सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि कोयलेको ईंधनके रूपमें इस्तेमाल करनेवाले उद्योगोंपर सख्ती की जाय, क्योंकि वायु प्रदूषणका यह सबसे बड़ा कारण है। यह भी गम्भीर चिन्ताकी बात है कि दुनियाकी ९० प्रतिशत आबादी प्रदूषित हवाके बीच रहनेको विवश है। भारत और चीन जैसे देशोंमें प्रदूषणका स्तर बहुत अधिक है। इससे जनस्वास्थ्यको काफी क्षति पहुंची है। डब्ल्यूएचओके महानिदेशक टेड्रोस अढ़ेनम गेब्रेससका यह कथन पूर्णत: सत्य है कि जीवनके लिए शुद्ध हवासे अधिक कोई चीज जरूरी नहीं है। इसलिए वायुकी गुणवत्तापर सबसे अधिक ध्यान देनेकी जरूरत है। इसमें सरकार और जनताकी समान सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है तभी जहरीली हवाके खतरेका सामना किया जा सकता है।

राहतकारी कदम

कोरोना संक्रमणसे जान गंवानेवालोंके स्वजनके लिए केन्द्र सरकारने राहतकारी कदम उठाया है। सरकारके इस कदमसे संक्रमणसे मरनेवाले लोगोंके परिजनोंको मुआवजा मिलनेका रास्ता साफ हो गया है। हालांकि इसे लागू करानेमें शीर्ष न्यायालयकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, क्योंकि केन्द्र सरकारने पहले साफ कर दिया था कि इसकी माली स्थिति ऐसी नहीं है कि वह कोरोनासे मरनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको चार-चार लाख मुआवजा दे सके। सरकारकी इस दलीलको अस्वीकार करते हुए कहा था कि सरकारको कोरोनासे मरनेवालोंके परिजनोंको मुआवजा तो देना ही होगा, लेकिन यह राशि कितनी होगी यह तय करनेका अधिकार केन्द्र सरकारका होगा। इसके लिए केन्द्र सरकारको गाइडलाइन जारी करनी होगी। शीर्ष न्यायालयके भारी दबावके चलते ही केन्द्रको गाइडलाइन जारी करनी पड़ी है। अच्छा तो यह होता कि सरकारको पहले ही जनहितको देखते हुए यह कदम उठाना चाहिए था लेकिन देर आये दुरुस्त आये। इससे उन परिवारोंको बड़ी राहत मिलेगी जिन्होंने अपने स्वजनको खोया है। केन्द्र सरकारने शीर्ष न्यायालयको बताया कि कोरोना संक्रमणसे मरनेवाले लोगोंके परिवारको राज्य  आपदा राहतकोषसे ५० हजारकी अनुग्रह राशि दी जायगी। यह राशि सम्बन्धित व्यक्तिके परिवारके सदस्यके आधारसे जुड़े खातेमें सीधे हस्तान्तरित की जायगी। अनुग्रह राशिके दावेके लिए राज्य सरकारें एक फार्म जारी करेगी, जिसे भरकर सम्बन्धित दस्तावेजोंके साथ जिलाधिकारीके पास जमा करना होगा। अनुग्रह राशि सिर्फ मरनेवालेके स्वजनके खातेमें जमा की जायगी, लेकिन ऐसे खातोंका आधारसे जुड़ा होना अनिवार्य होगा। यह अनुग्रह राशि तो सिर्फ उन लोगोंको मिलेगी, जिन्होंने अस्पतालमें दम तोड़ा है, लेकिन ऐसी बहुत बड़ी संख्या है जिन्होंने घरमें और रास्तेमें दम तोड़ दिया है। ऐेसे लोगोंतक भी राहत पहुंचानेके लिए राज्य सरकारोंको उनकी सही जानकारी जुटानी चाहिए जिससे ऐसे लोगोंके परिजनोंको भी राहत मिल सके, जिन्होंने अस्पताल जानेसे पहले ही दम तोड़ दिया है।