Post Views: 906 हंसराज ठाकुर ज हांसे मानवने अपनी विकास यात्रा शुरू की थी, तमाम बुलंदियां छू लेनेके बाद उसकी जीवन यात्रा वहींपर थमेगी। मत भूलो कि पृथ्वी गोल है। मानव जीवनका कोई भी पक्ष, वर्ग या क्षेत्र नहीं है जहां वह किसी न किसी रूपमें पशुओंकी सेवाओंसे सेवित न हो, उनके प्रदेयोंसे लाभान्वित एवं […]
Post Views: 855 श्रीराम शर्मा भगवानके अनगिनत नाम हैं, उनमेंसे एक नाम है सच्चिदानंद। सत्ïका अर्थ है टिकाऊ अर्थात न बदलने, न समाप्त होनेवाला। इस कसौटीपर केवल परब्रह्मï ही खरा उतरता है। उसका नियम, अनुशासन, विधान एवं प्रयास सुस्थिर है। सृष्टिके मूलमें वही है। परिवर्तनोंका सूत्र संचालक भी वही है। इसलिए परब्रह्मïको सत्ï कहा गया […]
Post Views: 807 ओशो मनुष्य एक अकेली प्रजाति है, जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरोंका आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैसला करता है कि वह क्या खाते हैं और क्या नहीं। किंतु मनुष्यका व्यवहार बिलकुल अप्रत्याशित है, वह बिलकुल अनिश्चिततामें जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती […]