सम्पादकीय

अर्थव्यवस्थाकी गतिशीलता


डा.जयंतीलाल भंडारी

वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीजने भारतीय अर्थव्यवस्थामें सुधार लाते हुए इसे सात प्रतिशत कर दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले माह २६ फरवरीको राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किये गये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ोंके अनुसार चालू वित्त वर्ष २०२०-२१ की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर २०२०) में विकास दरमें ०.४ फीसदीकी वृद्धि हुई है। देशमें विकास दर पहली तिमाहीमें माइनस २४.४ फीसदी और दूसरी तिमाहीमें माइनस ७.३ फीसदी रही थी। ऐसेमें अब भारत दुनियाकी दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओंमें चीनके बाद दूसरा देश बन गया है, जहां विकास दर सकारात्मक हो गयी है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि चालू वित्त वर्षकी पहली तिमाहीमें लॉकडाउनके कारण तेज गिरावट और फिर दूसरी तिमाहीमें सुधारके संकेतके बाद विकास दर बढऩेका आंकड़ा अर्थव्यवस्थामें तेज सुधारका परिचायक है। इस सुधारमें अहम भूमिका एग्रीकल्चर, कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरोंकी रही है। हालांकि चालू वित्त वर्षमें जीडीपीमें आठ फीसदी गिरावट आनेका अनुमान लगाया गया है।

पहले ७.७ फीसदी गिरावटका अनुमान जताया गया था। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि जहां चालू वित्त वर्षकी तीसरी तिमाहीके जीडीपी आंकड़े सकारात्मक सुधार दर्शाते हैं, वहीं हालमें जारी चालू वित्त वर्षकी तीसरी तिमाहीके कंपनियोंके कारोबारी नतीजे भी कारोबारमें सुधारका स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। इन नतीजोंके मुताबिक कम लागत और बिक्रीमें सुधारसे मुनाफा बढ़ा है। खपत आधारित क्षेत्रोंमें वाहनके साथ दैनिक उपयोगकी वस्तुओं और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओंकी बिक्री बढ़ी है। बुनियादी क्षेत्रोंमें कारोबार आकार बढ़ा है और इस्पात, गैर-लौह धातुओं तथा सीमेंटमें सुधार दर्ज हुआ है। बिजली उत्पादन, भवन निर्माण और लॉजिस्टिक्सके साथ खनन क्षेत्रका प्रदर्शन भी बेहतर हुआ है। निर्यातके मोर्चेपर औषधि और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रकी कंपनियोंके साथ कपड़ा निर्यात भी बढ़ा है। चूंकि चालू वित्त वर्ष २०२०-२१ कोविड-१९ का चुनौतियोंका एक असामान्य वर्ष है, इसलिए हालमें २६ फरवरीको प्रकाशित हुए अर्थव्यवस्थाकी स्थितिसे संबंधित आंकड़ोंमें संशोधन हो सकता है।

कई वित्तीय चुनौतियां अब भी सामने खड़ी हुई हैं। केंद्र और राज्य दोनोंकी वित्तीय स्थिति संतोषजनक रूप नहीं ले सकी हैं। बाण्ड बाजार भी बढ़ी हुई सरकारी उधारीके लगातार जारी रहनेसे चिंताएं प्रस्तुत कर रहा है। मौद्रिक नीतिसे अधिक मददकी संभावना भी कम बनी हुई है। इस बातपर भी ध्यान दिया जाना होगा कि जीडीपीके आंकड़ोंके अनुसार जिन सेक्टरोंके लिए अपेक्षाके अनुकूल वृद्धि नहीं हुई है, उन सेक्टरोंमें प्राथमिकताके आधारपर समस्याओंका निवारण किये जाय। यद्यपि विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रका प्रस्तुतीकरण अपेक्षाकृत बेहतर रहा है, किंतु सेवा क्षेत्रके कुछ हिस्से पिछड़े हुए पाये गये हैं। यद्यपि कारपोरेट क्षेत्रमें तेज सुधार देखनेको मिला है लेकिन असंघटित क्षेत्र और छोटे कारोबार अब भी संतोषजनक रूपसे गतिशील नहीं हो पाये हैं। उन सेक्टरोंकी बेहतरीके लिए खास उपाय करने होंगे, जो अधिक रोजगारके अवसर पैदा करते हैं। चूंकि इस समय कोरोना संकट देशमें एक बार फिरसे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, अतएव कोरोना संक्रमणको बढऩेसे रोकने और कोरोना टीकाकरणकी सफलतापर प्राथमिकतासे ध्यान दिया जाना होगा। यद्यपि वर्ष २०२१ की शुरुआतसे ही अर्थव्यवस्थामें सुधार दिखाई दे रहा है, लेकिन अर्थव्यवस्थाको तेजीसे गतिशील करने और आगामी वित्त वर्ष २०२१-२२ में भारतको दुनियामें सबसे तेज विकास दरवाला देश बनानेकी वैश्विक आर्थिक रिपोर्टोंको साकार करनेके लिए कई बातोंपर ध्यान देना होगा। नि:संदेह देशकी विकास दर बढ़ानेके लिए पिछले माह एक फरवरीको वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणके द्वारा पेश किये गये आगामी वित्त वर्ष २०२१-२२ के अभूतपूर्व बजटका शुरुआतसे सफल कार्यान्वयन जरूरी होगा। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि नये बजटमें वित्तमंत्रीके द्वारा कोरोना महामारीसे देशको बचानेके लिए बड़े वित्तीय प्रावधान किये गये हैं, वहीं अप्रत्यक्ष रूपसे रोजगार अवसरोंमें बड़ी वृद्धिके प्रयास भी किये गये हैं। जहां वोकल फॉर लोकलके तहत घरेलू उद्योगोंके लिए चमकीले प्रोत्साहन दिये गये हैं, वहीं मेक इन इंडिया और निर्यात वृद्धिके लिए नयी रेखाएं खींची गयी हैं। रोजगारके नये अवसर पैदा करनेके प्रयास किये गये हैं। तेजीसे घटे हुए निवेशको प्रोत्साहित करनेके लिए आकर्षक प्रावधान किये गये हैं। नये बजटमें महंगीपर नियंत्रण और नयी मांगका निर्माण करनेकी रणनीति है। कोरोना वायरससे बचावके लिए टीकाकरण एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओंपर खर्चमें भारी वृद्धि की गयी है। नये बजटके इन प्रावधानोंके शुरुआतसे क्रियान्वयनसे अर्थव्यवस्था सुधारकी राहपर आगे बढ़ेगी। इसी तरह वित्तमंत्रीने जहां एमएसएमईको बड़ा प्रभावी बजट दिया है, वहीं पर्यटन उद्योग, होटल उद्योग सहित जो विभिन्न छोटे उद्योग-कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, उन्हें भी पुनर्जीवित करनेके लिए नये बजटमें बड़ी धनराशि दी गयी है।

खास तौरसे टेक्सटाइल सेक्टर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और बुनियादी ढांचा क्षेत्रके लिए बड़े बजट आवंटन किये गये हैं। ये सेक्टर नये बजटके कुशल प्रबंधनसे अर्थव्यवस्थाको आगे बढ़ानेमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस बातपर भी ध्यान दिया जाना होगा कि देशमें जीडीपीमें कुछ सुधारके बावजूद देशके अधिकांश परिवारोंकी खर्च संबंधी धारणा बेहतर नहीं हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का उपभोक्ता भरोसा सर्वे ऐसा रुझान दिखा रहा है। अतएव उपभोक्ताओंके खर्चकी धारणाको सकारात्मक करके खर्चकी प्रवृत्ति बढ़ाना जरूरी है। भारतकी अर्थव्यवस्थाको गति देनेके लिए जरूरी है कि इसके विशाल उपभोक्ता बाजारमें बुनियादी जरूरतोंके लिए अधिक खर्च करनेकी चाह पैदा की जाय। हम उम्मीद करें कि मंदीसे बाहर निकली देशकी अर्थव्यवस्थाकी रफ्तार और विकास दर बढ़ानेके लिए सरकार आत्मनिर्भर भारतकी डगरपर और अधिक तेजीसे आगे बढ़ेगी। हम उम्मीद करें कि सरकार सकल मांग और आर्थिक वृद्धिको बढ़ावा देनेके लिए देशके निजी निवेशको हरसंभव तरीकेसे प्रोत्साहित करेगी।