भारत और चीनके बीच लम्बे समयसे चली आ रही तनातनीपर विराम लगनेका कोई आसार नहीं दिख रहा है। चीन अपनी कुटिल चालोंसे बाज नहीं आ रहा है और लगातार भारतको घेरने और दबाव बनानेके प्रयासमें जुटा हुआ है। पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकोंकी वापसीके बावजूद चीनका भारतीय क्षेत्रके पास जमीनसे हवामें मार […]
सम्पादकीय
सावधानी और सतर्कतासे ही बचेगा जीवन
राजेश माहेश्वरी हमारे पास कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हैं। वहीं तस्वीरका दूसरा रुख यह कि कोरोनाकी दूसरी लहरका कहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। चिकित्सा क्षेत्रसे जुड़े अनुभवी लोग भी कोरोनाकी बदले हुए रूपको लेकर भ्रमित है। संक्रमणकी तीव्रता मरीज और डाक्टर दोनोंका बचाव और संभलनेका अवसर ही नहीं दे रही है, नतीजन मौतका आंकड़ा […]
शिक्षा ही सामाजिक बुराइयोंका इलाज
डा. जितेन्द्र सिंह गोयल भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रमें लोकतांत्रिक मूल्योंकी मजबूती उसके संविधानपर टिकी हुई है। संविधानमें निहित प्रावधान कई कारकोंको ध्यानमें रखकर बनाये जाते हैं, ताकि उनके अनुपालनके जरिये एक समावेशी और लोकतांत्रिक व्यवस्थाका मजबूतीसे निर्माण किया जा सके। शिक्षा, एक ऐसा ही कारक है, जिसपर समुचित ध्यान दिये बिना न्यायके साथ विकासकी अवधारणा […]
अम्बेडकरके विचारोंको आत्मसात करना जरूरी
प्रणय कुमार भारतरत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर अपने अधिकांश समकालीन राजनीतिज्ञोंकी तुलनामें राजनीतिके खुरदुरे यथार्थकी ठोस एवं बेहतर समझ रखते थे। नारों एवं तकरीरोंकी हकीकत वह बखूबी समझते थे। जाति-भेद एवं छुआछूतके अपमानजनक दंशको उन्होंने केवल देखा-सुना-पढ़ा ही नहीं, अपितु भोगा भी था। तत्कालीन जटिल सामाजिक समस्याओंपर उनकी पैनी निगाह थी। उनके समाधान हेतु […]
आध्यात्मिक प्रयास
श्रीराम शर्मा आजके समयमें मनुष्यके बाहर भीतर शांति तथा सुव्यवस्था स्थापित करनेके लिए आध्यात्मिक प्रयास ही सार्थक हो सकते हैं। श्रद्धा, भावना, तत्परता एवं गहराई इन्हींमें समाहित है। हर मानवका धर्म, सामान्यसे ऊपर, वह कर्तव्य है, जिसे अपनाकर लौकिक, आत्मिक उत्कर्षके मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं। धर्म अर्थात जिसे धारण करनेसे व्यक्ति एवं समाजका सर्वांगीण […]
अनियंत्रित हालात
कोरोना संक्रमणकी अनियंत्रित रफ्तारसे पूरा देश भयग्रस्त हो गया है। संक्रमितोंके आंकड़े थमनेका नाम नहीं ले रहे हैं और वह निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालयने सोमवारको जो ताजे आंकड़े जारी किया है, उससे लोगोंमें बेहद खौफ है। पिछले २४ घण्टोंमें एक लाख ६८ हजार ९१२ नये मामले आये और ९०४ लोगोंकी मृत्यु […]
धधकते दावानलसे सुलगते सवाल
डा. सुशील कुमार सिंह यो पृथ्वी सम्मेलन १९९२ में जंगलमें फैलनेवाली आगसे उत्पन्न होनेवाली विभिन्न समस्याओंपर दशकों पहले चर्चा हो चुकी है जिसमें यह स्पष्टï है कि भूमिके अनियंत्रित ह्रास और भूमिका दूसरे कामोंमें बढ़ता उपयोग, मनुष्यकी बढ़ती जरूरतें, कृषि विस्तार समेत पर्यावरणको नुकसान पहुंचानेवाली तमाम प्रबंधकीय तकनीक वनोंके लिए खतरा पैदा कर रही हैं। […]
नव संवत्सर भारतीय संस्कृतिकी गौरवशाली परम्परा
ऋतुपर्ण दवे नववर्षका आरंभ चैत्र मासकी शुक्ल प्रतिपदाको शक्तिकी उपासना, चैत्र नवरात्रिसे होता है। पंचाग रचनाका भी यही दिन माना जाता है। इसी दिन सूर्योदयसे सूर्यास्ततक दिन, महीना और वर्षकी गणना की गयी थी। हिंदू नववर्षकी शुरुआत अंग्रेजीके नये सालकी तरह रातके घनघोर अन्धेरेमें नहीं, बल्कि सूर्यकी पहली किरणके साथ होती है। भारतीय नववर्ष यानी […]
भारतीय संविधानकी मूल भावना
निरंजन स्वरूप पिछले माह सुप्रीम कोर्टने भारत सरकारको पूजा स्थल सम्बन्धी कानून १९९१ की धारा ३ एवं ४ के प्रावधानको निरस्त करनेके लिए दायर याचिकापर नोटिस जारी किया तबसे यह कानून चर्चामें आया है। अत: इसका विषलेशण देशकी जनताके लिए आवश्यक हो जाता है। वर्ष १९९१ में जब रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद अपने पूरे […]
भाग्य और पुरुषार्थ
शिवप्रसाद ‘कमल’ हम जीवन दो प्रकारसे जीते हैं या तो भाग्यवादी बनकर या पुरुषार्थीकी तरह। यदि विवेकसे विचार करें तो पायंगे कि यह दोनों ही धारणाएं अधूरी हैं-एकांगी हैं। यह भावना पूरी तरह सत्य नहीं है। भाग्यवादी कहता है सब कुछ बंधा हुआ है। इंचभर इधर-उधर नहीं हो सकता। पुरुषार्थवादीका कहना है कि किसी चीजका […]