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Jharkhand: जालसाजों ने 1932 में ही पश्चिम बंगाल और बिहार का भोजपुर जिला बनवा दिया


रांची। सेना के कब्जे वाली रांची के बरियातू स्थित 4.55 एकड़ जमीन व सदर थाना क्षेत्र में चेशायर होम रोड की एक एकड़ भूिम की अवैध खरीद-बिक्री मामले की जांच कर रही ईडी ने एक बड़ा पर्दाफाश किया किया है। सेना की जिस जमीन को भूमि माफिया प्रदीप बागची ने असली रैयत बनकर कोलकाता के जगतबंधु टी इस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक दिलीप कुमार घोष को बेच दी थी, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है।

ईडी ने जमीन के मूल कागजात व प्रदीप बागची के मूल कागजात की जब फॉरेंसिक जांच कराई तो मूल दस्तावेज में हेराफेरी पकड़ी गई। प्रदीप बागची ने स्वयं को उस जमीन का असली रैयत दिखाने के लिए एक दस्तावेज प्रस्तुत किया था, जिसमें बताया गया है कि 1932 में उसके पिता ने उक्त जमीन रैयतों से खरीदी थी। उसका पंजीयन कोलकाता रजिस्ट्री कार्यालय में कराया था।

उसने 1932 का जो दस्तावेज प्रस्तुत किया, उसमें कोलकाता को पश्चिम बंगाल में दिखाया गया है, जबकि उस वक्त केवल बंगाल था। पश्चिम बंगाल 1947 में अस्तित्व में आया था। इसी तरह 1932 के उस दस्तावेज में क्रेता, विक्रेता और गवाहों के पते के साथ पिन कोड का उल्लेख है।

पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिन) भी 15 अगस्त 1972 को लागू किया गया था। उस दस्तावेज में एक गवाह का मूल जिला भोजपुर, बिहार बताया गया है। बिहार का भोजपुर जिला भी 1972 में अस्तित्व में आया था। इससे पूर्व यह जिला शाहाबाद जिला का हिस्सा था।

1972 में शाहाबाद जिला दो भागों में बंटा, जिसमें एक जिला भोजपुर और दूसरा रोहतास बना था। रांची के दो अलग-अलग थानों में दर्ज कांड के आधार पर मनी लांड्रिंग के तहत मामला दर्ज कर अनुसंधान में जुटी ईडी ने जालसाजी का यह मामला पकड़ा है।

कागजात में की गई यह जालसाजी आज नहीं तो कल पकड़ी ही जाती, सो पकड़ ली गई है। जिस प्रदीप बागची को ईडी ने गिरफ्तार किया है, उसने सेना के कब्जे वाली जमीन को असली रैयत बनकर बेच तो दी थी, लेकिन असली रैयत बनने के लिए उसने जमीन के मूल कागजात में छेड़छाड़ की, लेकिन इतिहास की समझ न होना प्रदीप बागची को भारी पड़ा।

बागची ने ही गलत रैयत बन बेच दी थी जमीन, आयुक्त की जांच में हुआ था पर्दाफाश

ईडी ने जांच के सिलसिले में एक दिन पहले रांची के पूर्व उपायुक्त आइएएस अधिकारी छवि रंजन, अंचलाधिकारी, राजस्व उप निरीक्षक व जमीन माफिया से संबंधित 22 ठिकानों पर छापेमारी की थी। जहां से कई दस्तावेज, फर्जी डीड व स्टांप मिले थे।

जमीन की खरीद-बिक्री रांची के पूर्व उपायुक्त छवि रंजन के कार्यकाल में ही हुई है। बताया जा रहा है कि इसके लिए उन्होंने ही अपने कनीय अधिकारियों को आदेश दिया था।

पूर्व में दक्षिणी छोटानागपुर के आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी ने भी पूरे मामले की जांच के दौरान पाया था कि रांची के बरियातू में सेना के कब्जे वाली 4.55 एकड़ भूमि का असली मालिक जयंत कर्नाड है, लेकिन प्रदीप बागची ने गलत रैयत बनकर दिलीप घोष को उक्त जमीन बेच दी थी।

आयुक्त ने जांच कराई तो पता चला कि विक्रेता प्रदीप बागची के पक्ष में उक्त भूमि के मालिकाना हक का एक फर्जी दस्तावेज (पंजीकरण संख्या 4369/1932) बनाया गया था। उक्त जांच रिपोर्ट का जो निष्कर्ष आया था, उसके अनुसार प्रदीप बागची के विरुद्ध जालसाजी का मामला सही पाया गया था।