Latest News धर्म/आध्यात्म नयी दिल्ली राष्ट्रीय लखनऊ वाराणसी

Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन पर भद्रा का साया, काशी विवि के ज्योतिष विभाग ने बताया राखी का शुभ मुहूर्त –


वाराणसी, सनातन धर्मावलंबियों के प्रमुख चार पर्वों में रक्षाबंधन का विशिष्ट स्थान है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व श्रावण (सावन) पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस कारण इसे श्रावणी या रक्षाबंधन कहते हैं। श्रावण पूर्णिमा इस बार दो दिन 30 व 31 अगस्त को मिल रही, लेकिन पहले दिन सुबह से भद्रा व दूसरे दिन छह घटी (2.24 घंटा) से कम समय तक ही पूर्णिमा मिल रही है। अत: पर्व भद्रा काल खत्म होने पर पूर्णिमा में 30 अगस्त की रात नौ बजे से मनाया जाएगा।

रात नौ बजे के बाद रक्षाबंधन का पर्व

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार पूर्णिमा 30 अगस्त को सुबह 10.21 बजे लग रही जो 31 अगस्त की सुबह 7.45 बजे तक रहेगी। पहले दिन 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि लगने के साथ भद्राकाल शुरू हो जा रहा जो रात नौ बजे तक रहेगा। वहीं 31 को पूर्णिमा छह घटी से कम मिल रही। इससे 30 को रात नौ बजे के बाद ही रक्षाबंधन पर्व मनाना धर्मशास्त्र अनुकूल है।

शास्त्रीय मान और निर्णय

धमसिंधु एवं निर्णय सिंधु आदि ग्रंथों के अनुसार पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो और प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए। वहीं ‘इदं प्रतिपद् युतायां न कार्यम’ वचन अनुसार पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर छह घटी से न्यून हो तो उसमे रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए।

अतः 30 अगस्त को ही रात्रि में भद्रा के बाद रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत है, क्योंकि ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है। इस संबंध में कहा गया है-‘तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते। रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।” काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार पूर्णिमा की स्थिति एवं सूक्ष्म मान को आधार बना कर धर्मशास्त्रीय वचनों का आश्रय लेते हुए 30 अगस्त की रात नौ बजे के बाद भद्रा मुक्त पूर्णिमा में रक्षाबंधन ही उचित है।

श्रावणी उपाकर्म 30 को, तैतलीय शाखा वाले 31 को पूरे करेंगे विधान

श्रावण पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण कर्म उपाकर्म है। इसका अनुष्ठान शुक्लयजुर्वेद के तैतरीय शाखा वालों को छोड़ अन्य सभी 30 अगस्त को सुबह 10.21 बजे के बाद मनाएंगे। तैतरीय शाखा वालों को उदय व्यापिनी पूर्णिमा में 31 को उपकर्म करना शास्त्र सम्मत रहेगा।

कारण यह कि खंड रूप में पूर्णिमा का दो दिन मान प्राप्त होने से द्वितीय दिन यदि दो-तीन घटी से अधिक और छह घटी से कम पूर्णिमा प्राप्त हो रही हो तो शुक्ल यजुर्वेद की तैतरीय शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म दूसरे दिन और शुक्ल यजुर्वेदीय अन्य सभी शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म पूर्व दिन अर्थात 30 अगस्त को ही करना चाहिए। उपाकर्म में भद्रा दोष नहीं लगता। धर्मशास्त्रीय वचन है कि ‘भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा’।