सम्पादकीय

तीसरी लहरसे बचनेकी चुनौती


डा. जगत राम        

लगभग एक सदी पहले आये स्पैनिश फ्लू वैश्विक महामारीके दौरान चार लहरें आयी थीं। कई देशोंमें मौजूदा नॉवेल कोरोना वायरस-कोव-२ की तीसरी लहर आ चुकी है। बेल्जियमकी महिलाको एक साथ दो प्रतिरूपों (वेरिएंट) से पीडि़त पाया गया है, इससे स्थिति और गंभीर बन गयी है। भारतमें भी एक महिला पायी गयी है, जिसको एक साल बाद दुबारा कोरोना संक्रमण हुआ। यूके, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशियामें कोविडके मामलोंमें मौजूदा उफानका संबंध कोरोनाके डेल्टा वेरियंटसे है। यह प्रतिरूप कोविडके उन चार वेरिएंट्समेंसे एक है, जिसको चिंताका विषय श्रेणीमें रखा गया है। कोई वेरियंट तब बनता है जब उसकी जैविक संरचना (ऑर्गेनिस्म)में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) होता है। यह म्यूटेशन या बदलाव उस वक्त भी हो सकता है जब ऑर्गेनिस्म प्रजनन करते वक्त प्रतिलिपि गलती (कॉपिंग एरर) कर जाय। किसी वायरसके एक अथवा दो बारसे ज्यादा नये म्यूटेशन हो जानेपर इसको वेरिएंट कहते हैं। क्रम रहित (रेंडम) म्यूटेशन, जिसके परिणाम स्वरूप या तो वायरसको जीवित बने रहनेका बेहतर मौका मिलता या फिर वह अप्रभावी बन जाता है, यह गुण-दोष उसकी अगली पीढिय़ोंमें स्वत: स्थानांतरित होता है। कुछ म्यूटेशन ऐसे होते हैं जो वायरसको निष्प्रभावी अथवा कम संक्रमणशील बना देते हैं। यदि वेरियंट ज्यादा संक्रमणशील, बीमारी गंभीर अवस्थामें पहुुंचानेवाला या फिर ऐसा हो, जिसके ऊपर वैक्सीन असर ही न करे, तब ग्रसित व्यक्तिके लिए यह म्यूटेशन चिंताजनक हो जाता है। चिंताके विषय सूचीमें कुछ मौजूदा वेरियंट्स हैं: अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा। इनमें कुछेक बीमारीको गंभीर अवस्थामें पहुंचा सकते हैं तो चंद ऐसे हैं जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा या व्यक्तिमें पिछले संक्रमणके वक्त पैदा हुई एंडीबॉडीज या फिर वैक्सीनजनित प्रभावको चकमा दे देते हैं।

डेल्टा वेरियंट सौसे ज्यादा देशोंमें फैल चुका है और बहुत जगहोंपर संक्रमणका मुख्य कारक है। आगे इसका डेल्टा-प्लस नामक एक उपवेरियंट है, जिसका उद्भव महाराष्ट्रमें हुआ था। इस वेरिएंटमें पिछले कोविड वेरिएंटसे बननेवाले लक्षणोंके अलावा पेट दर्द, जी मितलाना, भूखमें कमी और उल्टी आनेके चिह्नï मिलते हैं। अन्य कई वेरिएंट्सको भी चिंताका विषय श्रेणीमें रखा गया है, जिनको क्रमश: ईटा, एप्सीलॉन, थीटा और काप्पा कहा जाता है। ये भी अधिक संक्रमणशील हैं या फिर रोधप्रतिरोधक क्षमताको गच्चा देनेवाले हैं। हालांकि इन सबके सुबूत अभी प्रारंभिक हैं। इस महीनेके शुरूमें विश्व स्वास्थ्य संघटनने एक अन्य वेरियंट लैम्डाको भी चिंताका विषय सूचीमें रखा था। इसका उद्भव और पहली बार शिनाख्त पेरूमें हुई है। पिछले चार सप्ताहमें तीससे अधिक देशोंमें इसको पाया जा चुका है। कुछ अन्य वेरिएंट्सपर भी नजर रखी जा रही है। मसलन आयोटा और जीटा। हालांकि इनके बारेमें जानकारी पूरी तरह उपलब्ध नहीं है।

जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि भारतमें तीसरी लहर आकर रहेगी, बस सवाल यह है कि कब? इस चिंताके पीछे लोगोंका व्यवहार है, जो सावधानियोंको नजरअंदाज कर रहा है। यहांतक कि सर्वोच्च न्यायालयको दखल देकर धार्मिक समागमोंपर रोक लगानी पड़ी है। केंद्रीय गृह सचिवने इस बातपर विशेष ध्यान दिलाया है कि पहले ही कुछ सूबोंमें संक्रमणका आर-फैक्टर (प्रजनन अवयव) बढऩे लगा है। आर-फैक्टर उस दरका सूचकांक है, जिसपर संक्रमण बढ़ता है। कुछ विशेषज्ञोंका मानना है कि यदि हम लोगोंने सावधानी नहीं बरती और संक्रमण चक्र नहीं तोड़ा तो भारतमें तीसरी लहर अगले दो महीनोंमें आ सकती है। १४ जुलाईतक, देशकी केवल ३१ फीसदी आबादीको टीका लग पाया है, इसमें भी दोनों खुराकें पानेवाले केवल ७.७ प्रतिशत लोग हैं। यह कहा जा रहा है कि शायद तीसरी लहर बच्चोंको ज्यादा प्रभावित करनेवाली होगी क्योंकि वैक्सीन १८ सालसे ऊपरवालोंको ही लग रही है। हालांकि इस विषयमें डाटा विरोधाभासी है। एक ओर रिपोर्ट बताती है कि कोविडका शिकार बने बच्चोंकी संख्या बढ़ी है। जैसा कि पुणेके आंकड़े बताते हैं कि १ से ७ जुलाईके बीच नये २०६५ मामलोंमें बच्चोंकी गिनती २६८ थी, वहीं दूसरी ओर पीजीआईएमआर चंडीगढ़ द्वारा करवाया गया सीरो-अध्ययन बताता है कि संक्रमित हो चुके कुल बच्चोंके दो-तिहाईमें पहले ही वायरसके प्रति एंटीबॉडीज बन चुकी हैं। लिहाजा असली तस्वीर जाननेके लिए कि आबादीमें कितनोंको संक्रमण छू चुका है, इसके लिए देशके विभिन्न भागों और आयु वर्गोंमें बड़े स्तरवाला सीरो-सर्वे करवाना चाहिए।

जीनोम-निगरानीके जरिये नये वेरिएंट्सपर नजर रखनेकी जरूरत है। केरलका हालिया डाटा बताता है कि नये मामलोंका ६२ प्रतिशत डेल्टा वेरिएंटकी वजहसे है, जिसके उपवर्गमें अल्फा (२६ फीसदी), बीटा (८.२४ फीसदी) तो काप्पा (२.७ फीसदी) का हिस्सा था। देशभरमें अल्फा और काप्पा वेरिएंट्सका अनुपात सबसे अधिक केरलमें पाया गया है। महाराष्ट्र और उत्तर-पूर्वी राज्योंमें ज्यादातर मामले डेल्टा वेरिएंटवाले रहे हैं। कोविडके वेरिएंट यात्रियोंके माध्यमसे सीमाओंके पार जाकर फैलनेके लिए कुख्यात हैं। डेल्टाका उद्ïभव भारतमें हुआ लेकिन अब दुनियाभरके देशोंमें नये मामलोंमें ९० फीसदीसे ज्यादा इसकी वजहसे हैं। लैम्डा वेरिएंट, जो पेरूमें उपजा है, उससे एशियामें केवल एक ही मामला इसराइलमें पाया गया है। तीसरी लहरसे बचना है तो हम सबको कोविड संबंधी रोकथाम संहिताका पालन करना होगा और गैर-जरूरी घूमने, भीड़ लगाने और सामाजिक समागम करनेसे गुरेज करना चाहिए। संक्रमणकी विषैली-कड़ीको तोडऩेके लिए वैक्सीन टीकाकरण बढ़ाना होगा, जिसकी बदौलत नये वेरिएंट्स पनपनेकी संभावनासे बचा जा सकता है। इस बातका पूरा खतरा है कि कोई भगोड़ा वेरिएंट ऐसा भी आ सकता है, जो पूर्व में कोविडग्रसित हुए व्यक्तिमें बनी एंटी-बॉडीज और मौजूदा वैक्सीनकी प्रभावशीलताको चकमा दे जाय। द नेचर नामक प्रकाशनमें आयी फ्रांसकी रिपोर्ट बताती है कि फाइजर और एस्ट्रा-जेनेका (कोविशील्ड) नामक टीकेकी पहली खुराकसे डेल्टा वेरिएंटसे केवल ३३ फीसदी सुरक्षा बन पायी है। दूसरी खुराकके दो हफ्तों बाद फाइजरकी प्रभावशीलता ८८ फीसदी तो एस्ट्रा-जेनेकाकी ६० प्रतिशत रही। इसलिए अति आवश्यक है कि नये बननेवाले वेरिएंट्सपर कड़ी नजर रखी जाय और जितनी जल्द समूचे विश्वको टीका लग पायगा, उतनी जल्द भगोड़े वेरिएंटका खतरा कम हो जायगा।