सम्पादकीय

बेरोजगारीके चलते नौकरी मजबूरी है


डा. राजेन्द्र प्रसाद

यह स्थिति बेहद चिंताजनक और हमारी शिक्षा व्यवस्थाकी पोल खोलती हुई है। कोलकताके एक सरकारी मेडिकल कालेजमें मोरचरी यानी कि मुर्दाघरमें शवोंके रखरखावके लिए प्रयोगशाला सहायकके छह पदोंके लिए आठ हजार युवाओंने आवेदन किये हैं। दरअसल आम बोलचालकी भाषामें कहे तो यह डोमका पद है। मजेकी बात यह है कि इस पदके लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास है और वेतनकी देखों तो वह है केवल १५ हजार रुपया मासिक। छह पदोंके लिए आठ हजार आवेदन आना कोई बड़ी बात नहीं हो सकती। बड़ी बात यह है कि इन आवेदन करनेवाले आठ हजार युवाओंमें करीब सौ आवेदक इंजीनियरिंग पास है तो २२०० आवेदनकर्ता युवा ग्रेजुएट, ५०० युवा पोस्ट ग्रेजुएट है। यह आजकी शिक्षा व्यवस्था, युवाओंमें बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी नौकरीके प्रति लगावकी दृष्टिसे देखा जा सकता है। आखिर सरकारकी स्वरोजगारकी अनेकों योजनाओं, स्टार्टअप योजना सहित कौशल विकासके विभिन्न कार्यक्रमोंके बाद यह स्थिति है तो यह वास्तवमें गंभीर चिंताजनक है। यदि टेक्नोक्रेट इंजीनियरिंग पास है तो टेक्नोक्रेट कहना ही होगा और उच्च शिक्षित व्यक्ति आठवीं पास योग्यताधारीकी नौकरीके लिए दो चार हो रहे हैं तो यह पढ़ाईके बाद भी उनके सोचको दर्शाती है।

यह कोई पहली या आजकी कोरोना बादकी स्थिति नहीं है। ऐसे उदाहरण हजारों मिल जायंगे। उत्तर प्रदेशके मुरादाबाद नगर निगममें सफाई कर्मियोंके पदोंकी भर्तीके समय तकनीकी एवं विशेषज्ञताधारी युवाओंको साक्षात्कारके दौरान सफाईके लिए नालेमें उतारनेके समाचार सुर्खियोंमें आ चुके हैं। यह भी सुर्खियां इसलिए बन गया कि इन युवाओंको भर्तीके दौरान हो रही फिजीकल परीक्षामें फावड़ा कुदाल आदि देकर सुरक्षा साधनोंके बिना ही नालोंमें सफाईके लिए उतार दिया गया था और मीडियाके लिए समाचार बन गया था। हालांकि आज स्थिति यह होती जा रही है कि एक पदके लाखों दावेदार हैं। ऐसेमें कम पदोंके लिए भर्ती भी मुश्किल भरा काम हो गया है। अभी कुछ साल पहले ही राजस्थानमें सचिवालयमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियोंके पदोंकी भर्तीके लिए इतने आवेदन आ गये कि कई दिनोंतक साक्षात्कार लेनेके बाद भी अंततोगत्वा भर्ती नहीं हो सकी। चतुर्थ श्रेणीके पदोंके लिए भी इंजीनियरिंग, एमबीए, पोस्ट ग्रेजुएटतक पास युवाओंने आवेदन किये। लिपिक आदिके पदके लिए तो इस तरहके युवाओंके आवेदन आम बात है। डिग्रीधारी युवाओंका कहना है कि बेरोजगारीके चलते यह नौकरी मजबूरी है। परन्तु यह हालात आंखें खोलनेके लिए काफी है। इंजीनियरिंग एवं प्रबंधनमें डिग्री धारी युवाओंका सफाई कर्मचारीकी नौकरीके लिए आवेदन करना देशकी शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारीकी स्थिति दोनोंसे ही रुबरु करानेके लिए काफी है।

यह तस्वीर पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश या राजस्थानकी नहीं, बल्कि समूचे देशमें मिल जायगी। एक पदके लिए इतने अधिक आवेदन आते हैं और खासतौरसे न्यूनतम योग्यता तो अब कोई मायने ही नहीं रखती, एकसे एक उच्च योग्यताधारी आवेदकोंमें मिल जाते हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या बेरोजगारीकी समस्या इतनी गंभीर है या हमारी शिक्षा व्यवस्थामें ही कहीं खोट हैं या कोई दूसरा कारण है दरअसल इसके कई कारणोंमेंसे एक हमारी शिक्षा व्यवस्था, दूसरी हमारी शिक्षाका स्तर, तीसरी सरकारी नौकरीके प्रति युवाओंका आकर्षण आदि है। पिछले दशकोंमें देशमें शिक्षाका तेजीसे विस्तार हुआ है। कुकुरमुत्तोंकी तरह शिक्षण संस्थाएं खुले हैं। अब तो हालात यह होते जा रहे हैं कि देशके इंजीनियरंग कालेजों एवं प्रबंधन संस्थानोंकी सीटें भी पूरी नहीं भर पाती है। युवाओंमें पहले एमबीएसे मोहभंग हुआ तो अब इंजीनियरिंगसे भी मोहभंग होता जा रहा है। जिस इंजीनियरिंगमें प्रवेशके लिए युवाओंका कड़ी मेहनतके बाद भी मुश्किलसे प्रवेश मिलता था आज प्रवेश परीक्षामें कम अंक लानेपर भी प्रवेश हो जाता है। यहांतक कि सीनियर सैकण्डरीके प्राप्तांकोंके आधारपर भी प्रवेश होने लगा है। कई तकनीकी एवं प्रबंधन शिक्षण संस्थानोंमें तो स्तरीय संकाय सदस्योंका अभाव आम है। साफ है कि इंजीनियरिंगमें अच्छी योग्यताधारी युवाओंको तो कोई भी संस्थान अपने यहां प्लेसमेंट दे देता है। लगभग सभी कंपनियों द्वारा आजकल सीधे संस्थानोंमें प्लेसमेंटके लिए साक्षात्कार आयोजित कर चयन कर लिया जाता है। कुछ युवाओंका आकर्षण सरकारी नौकरीके प्रति रहता है। इसका मुख्य कारण सरकारी नौकरीमें सुविधाएं अधिकपर टारगेट आधारित कामका नहीं होना माना जाता है। इसके अलावा सरकारी नौकरीमें अन्य सुविधाएं भी आकर्षणका कारण रहती है। ऐसेमें सरकारी क्षेत्रमें सीमित पद होनेके बावजूद युवा सरकारी नौकरी पानेके लिए जुट जाते हैं और एक समय ऐसा आता है कि चपरासीतककी नौकरीके लिए आवेदन करनेमें नहीं झिझकते। यह हमारी व्यवस्थाकी त्रासदी ही है।

ऐसेमें अब सरकार और समाज दोनोंके सामने नयी चुनौती आती है। आखिर युवाओंका सरकारी नौकरीके प्रति मोहभंग कैसे हो यह सोचना होगा तो तकनीकी या रोजगारपरक शिक्षा देनेवाले संस्थानोंके निरीक्षण मापदंडोंको सख्त बनाना होगा, संकाय सदस्योंके चयन उनके वेतन आदिको आकर्षक और सबसे ज्यादा जरूरी ऐसे संस्थानोंकी शिक्षण व्यवस्थाको स्तरीय बनाना होगा, ताकि देशमें दक्ष योग्यताधारी युवाओंकी टीम तैयार हो सके। योग्यताधारी युवाओं द्वारा मोरचरीमें डोम या सफाई कर्मियों या चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों या लिपिक जैसे पदोंके लिए आवेदन करना व्यवस्थापर तमाचेंसे कम नहीं है। देशमें स्तरीय शिक्षण व्यवस्था और रोजगारके बेहतर अवसर उपलब्ध करानेके प्रयास करने होंगे। युवाओंमें एंटरप्रोन्योर बननेकी ललक जगानी होगी।