Post Views: 445 डा. बी.दास ‘शास्त्र क्या वस्तु है’ ‘शास्त्र’ शब्द से जो ग्रंथ आजकल समझे जाते हैं, वे सब, किसी न किसी मानवकी बुद्धिसे ही उत्पन्न हुए हैं। गीताके द्वितीय अध्यायमें बुद्धिकी महिमाका गीत है। जितनी बार बुद्धि शब्दका प्रयोग गीतामें हुआ है, उतनी बार केवल आत्मा और अहं (मा, मे, मम) का हुआ […]
Post Views: 645 डा. गौरीशंकर राजहंस कोरोना महामारीके दौरान अर्थशास्त्रियोंका यह अनुमान था कि महामारीके समाप्त होते-होते अर्थव्यवस्थापर बहुत बुरा असर पड़ेगा। परन्तु इतना बुरा असर पड़ेगा इसकी किसीने कल्पना भी नहीं की थी। आजकी तारीखमें भारतकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी है और बड़ेसे बड़ा अर्थशास्त्री भी दावेके साथ यह नहीं कह सकता […]
Post Views: 492 प्रणय कुमार समन्वय एवं लोकमंगलकी भावना एवं साधना हमारा सार्वकालिक आदर्श रहा है। परंतु बीते कुछ दशकोंसे हमारे सार्वजनिक विमर्श और विश्लेषणका ध्येय जीवन और जगतमें व्याप्त एकत्वको खोजनेकी बजाय और विभेद पैदा करना हो चला है। परस्पर विरोधी स्थितियों-परिस्थितियोंके मध्य समन्वय एवं संतुलन साधनेकी बजाय संघर्ष उत्पन्न करना हो गया है। […]