उत्तर प्रदेश लखनऊ

 आरक्षणकी मारसे बचने के लिए ग्राम प्रधानोंने बनाया मास्टर प्लान


पंचायत चुनाव

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में प्रधान हो या फिर दारोगा, ग्रामीण इलाके में सबसे मजबूत खम्भा इन्हीं को माना जाता है। दारोगा तो फिर भी बदलते रहते हैं लेकिन, प्रधानी तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी चलती रही है। ऐसे में जब किसी को लगता है कि वो प्रधानी का चुनाव नहीं लड़ पायेगा तो किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधान बनवाना चाहता है,जिस पर उसका पूरा जोर चल सके। यानी पद पर न भी रहे तो कम से कम पावर बची रहे। पंचायत चुनावों  में ऐसा बहुत होता है। सीट महिला की हो गई तो पत्नी या मां को लड़ा दिया और यदि ओबीसी या एससी के लिए आरक्षित हो गई तो अपने किसी नजदीकी को लड़ा दिया। यूपी में अभी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण तय होना है. बहुत सारी सीटें ऐसी होंगी जो सामान्य से आरक्षित जबकि आरक्षित से सामान्य हो जायेंगी। आरक्षण में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं क्योंकि पिछला आरक्षण सपा सरकार में तय हुआ था और अब भाजपा की सरकार सत्ता में है. ऐसे में आमूल-चूल बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. दूसरी तरफ सरकार की इस मंशा को भांपकर मौजूदा प्रधानों ने भी इसकी काट का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। उदाहरण के लिए सीतापुर चलते हैं सीतापुर की बसनपुर ग्राम पंचायत में साल 2001-05 तक दिनेश सिंह प्रधान थे।

2011 में जब सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई तो दिनेश सिंह की पत्नी मीना सिंह ग्राम प्रधान बनीं. 2016 में जब सीट ओबीसी के लिए आरक्षित हो गई तो दिनेश सिंह ने अपने करीबी मेवालाल को चुनाव लड़ाया ये अलग बात है कि मेवालाल हार गये। कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि आरक्षण में सीट की स्थिति बदलने पर मौजूदा प्रधान कुछ इसी तरह इसकी काट निकालेंगे। सामान्य सीट अगर आरक्षित हुई तो निवर्तमान प्रधान अपने किसी खास को चुनाव लड़वायेगा यदि जीत हुई तो भी पावर उसी के हाथ रहेगी।इस कहानी का दूसरा पहलू ये है कि यदि कोई आरक्षित सीट सामान्य हो गई तो ऐसा कुछ करना ही नहीं पड़ेगा. सामान्य सीट तो कोई भी लड़ सकता है. वाराणसी की एससी आरक्षित ग्राम सभा भीटी से प्रधानी का चुनाव लडऩे वाले राजू सोनकर ने कहा कि उन्हें आरक्षण की किसी भी स्थिति से कोई असहजता नहीं है महिला छोड़कर बाकी किसी भी स्थिति में वो चुनाव लड़ेंगे। बता दें कि आरक्षण की सूची को लेकर गांव-गांव में माथापच्ची चल रही है. दूसरी तरफ सरकार की तरफ से अभी आरक्षण का शासनादेश ही जारी नहीं हुआ है जीओ जारी होने के बाद कम से कम एक महीने बाद आरक्षण की सूची जारी होगी, ऐसे में चुनाव लडऩे वालों को अभी लम्बा इंतजार करना पड़ेगा।