पटना

एक ही मंडप में बाप-बेटे, ससुर-दामाद, बहन-बहनोई ने रचाई शादी


लंबे समय से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे

गुमला (एजेंसी)। झारखंड राज्य में सैकड़ों ऐसे जोड़ें हैं, जो बिना औपचारिक शादी किए बगैर एक दूसरे के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहें हैं। ऐसे ही 55 जोड़ों का सामूहिक विवाह मंगलवार को बसिया के सरना मैदान में समारोहपूर्वक संपन्न हुआ। बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त में प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्था निमित ने मानवता का धर्म निभाएं- चलो किसी का घर बसाएं को चरितार्थ करते हुए सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इसमें 55 जोड़े जो लिव इन रिलेशनशिप में रह रहें थे, अब अपने-अपने धर्म के रीति-रिवाज के अनुसार विवाह कर हमेशा के लिए एक दूजे के हो गए। हिंदू जोड़े का विवाह पं॰ बद्रीनाथ दास ने, ईसाई जोड़े का विवाह पादरी अनिल कुमार लकड़ा व सरना जोड़े का सामूहिक विवाह पहान जतरू भगत व चंद्रमनी देवी के द्वारा संपन्न कराया गया।

दिलचस्प बात यह है कि इसमें एक ही परिवार के कई सदस्य एक साथ ही विवाह के बंधन में बंधे। एक मंडप में ही बाप, बेटे, ससुर, दामाद, भाई और बहन सबकी शादी हुई।  इस शादी के मंडप में सबसे उम्रदराज एक 62 साल के पिता पाको झोरा की शादी हुई जिन्होंने 40 साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद सोमारी देवी से शादी की।

उसी मंडप में पाको झोरा के बेटे जितेंद्र ने भी 12 साल तक बिना शादी के ही पूजा के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी रचाई। तो वहीं उसी परिवार में बहन की भी शादी किसी और से कराई गई। उन्होंने बताया कि उनके बच्चे भी हैं और अब तक वे बिना शादी के साथ रह रहे थे। आज रीति-रिवाज से शादी होने के बाद आधिकारिक पति-पत्नी का दर्जा मिला है। शादी नहीं होने का कारण उन्होंने संसाधनों की कमी बताया और कहा कि अब संस्था की वजह से हम शादी के परिणय सूत्र में बंध सके हैं।

लोगों ने वर-वधू को उपहार व सुखी दाम्पत्य जीवन की शुभकामनाएं दी। इस मौके पर स्वयंसेवी सामाजिक संस्था निमित्त के सचिव निकिता सिन्हा ने बताया कि झारखंड के गांवों में हजारों जोड़े रहते हैं जिनकी औपचारिक शादी नहीं हुई होती है। यह जोड़े खराब आर्थिक स्थिति एवं कई अन्य वजह से शादी नहीं कर पाते हैं। वहीं कई जोड़ों के लिए आयोजन का खर्च उठाना भी संभव नहीं हो पाता है।

ग्रामीण समाज की इन कुरीतियों के वजह से जोड़ों को बिना शादी किए साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस दाम्पत्य संबंध को समाज से मान्यता नहीं मिल पाने की वजह से जीवन भर इन जोड़ों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान गांव की हजारों महिलाओं एवं बच्चों को उठाना पड़ता है। साथ ही उन्हें अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है।

इस सामाजिक कुप्रथा की वजह से पुरुष पार्टनर की मृत्यु पर जमीन एवं संपत्ति महिलाओं बच्चों को नहीं मिल पाती। बच्चों के कान छेदन की मनाही होती है और महिलाओं की असामयिक मृत्यु पर उन्हें सामूहिक कब्रगाह में अंतिम क्रिया कर्म का भी अधिकार नहीं दिया जाता। वहीं आने वाली पीढ़ी भी इन परिवारों की शादी से वंचित रह जाती है।