पटना

एम्स पटना में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी का लेजर उपचार शुरू


 फुलवारीशरीफ। एम्स पटना में शुक्रवार को आरओपी का लेजर ट्रीटमेंट सफलतापूर्वक किया गया। दो दिनों तक बच्चे की गहन निगरानी के बाद रविवार को एम्स ने इस सर्जरी की सफलता का जिक्र मीडया से किया है। यह सुविधा बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ लोकेश तिवारी और नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ अमित राज के संयुक्त प्रयास से शुरू की गई है। निदेशक एम्स डॉ पीके सिंह ने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में विकसीत आरओपी का  इलाज महज 300 रुपये में पटना एम्स में लेजर के द्वारा शुरू हो जाने से गरीब परिवारो को बड़ा फायदा पहुंचाने का काम हो रहा है।

नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ अमित राज ने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में आरओपी विकसित होते हैं। यदि इसका इलाज नहीं किया जाता है तो यह पूर्ण अंधापन का कारण बन सकता है। इसका इलाज लेजर फोटोकैग्यूलेशन द्वारा किया जाता है। यह लेजर वयस्क लेजर से अलग है। इसमें वयस्क लेजर की तुलना में अधिक लेजर स्पॉट और अधिक समय की आवश्यकता होती है।

प्रक्रिया के बीच, बच्चा हाइपोक्सिया और टेकीकार्डिया विकसित कर सकता है। इसलिए उसे एक बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा निगरानी रखने की आवश्यकता है। एम्स में इस सुविधा के शुरू होने से कई बच्चों की जांच की जाएगी और इस खतरनाक बीमारी का इलाज किया जाएगा। इलाज की लागत 300 रुपये है और इसे गरीब मरीज आसानी से वहन कर सकते हैं।

एम्स से मिली जानकारी के मुताबिक बेगूसराय के एक बच्चे की दोनों आंखों में आरओपी थी। उनका जन्म 32 सप्ताह में हुआ था। उनका जन्म के समय का वजन 1.7 किलो था। जन्म के तुरंत बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और उन्हें 1 महीने के लिए निजी एनआईसीयू में रखा गया। इसके बाद उन्हें पटना के एक सरकारी अस्पताल में रेफर कर दिया गया। इसके बाद उन्हें आगे के इलाज के लिए एम्स पटना भेजा गया। यहां उनकी आंखों की जांच की गई और पता चला कि दोनों आंखों में प्रीमैच्योरिटी की आक्रामक पोस्टीरियर रेटिनोपैथी है।

यह समय से पहले जन्मे बच्चों और कम वजन के बच्चों को प्रभावित करने वाली आंख की एक गंभीर स्थिति है। यदि समय पर निदान और उपचार नहीं किया जाता है तो बच्चा स्थायी अंधापन विकसित कर सकता है। एम्स में रेटिना विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक गुप्ता द्वारा बच्चे का लेजर फोटोकैग्यूलेशन से इलाज किया गया। प्रक्रिया 4 घंटे में पूरी की गई। पूरी प्रक्रिया के दौरान बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा बच्चे की निगरानी की गई। इसके बाद बच्चे को छुट्टी दे दी गई।