सम्पादकीय

कोरोना मुआवजेकी हो पारदर्शी व्यवस्था


 डा. श्रीनाथ सहाय

सुप्रीम कोर्टकी कड़ी फटकारके बाद केंद्र सरकारने जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि देशमें कोरोनासे हुई हर मौतके मामलेमें परिजनोंको ५० हजारका मुआवजा मिलेगा। साथ ही कहा गया है कि ये रकम राज्य यानी स्टेट डिजास्टर रिलीफ फंडकी तरफसे दी जायगी। सुप्रीम कोर्टके निर्देशके बाद एनडीएमएने मुआवजेको लेर गाइडलाइंस बनायी है। बता दें कि देशमें अबतक कोरोनासे ३.९८ लाख लोग जान गंवा चुके हैं। मुआवजेकी राशि राज्य आपदा प्रबंधन कोषसे दी जायेगी। मृत्यु प्रमाणपत्रमें कोरोनाका उल्लेख न होनेसे लाखों प्रभावित परिवार मुआवजेसे वंचित हो गये थे। सर्वोच्च न्यायालयने इस बातपर रोष व्यक्त किया था कि मृत्यु प्रमाणपत्रमें कोरोनाका उल्लेख करवानेमें देरीसे लोग हलकान हो रहे हैं। विभिन्न याचिकाओंपर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्टके सामने सरकारने कहा था कि वह हर मृतकके परिजनको चार-चार लाख रुपयेका मुआवजा नहीं दे सकती है। सरकारकी इस दलीलसे सुप्रीम कोर्टने भी सहमति जतायी। साथ ही कहा कि वह खुद ही ऐसा तंत्र बनाये जिससे मृतकके परिजनोंको सम्मानजनक रकम जरूर मिले। सरकारने सुप्रीम कोर्टके नोटिसपर अपने हलफनामेमें कहा था कि आपदा कानूनके दायरेमें भूकम्प, बाढ़ जैसी १२ तरहकी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। इन आपदाओंमें किसीकी मौतपर राज्य आपदा राहत कोषसे चार लाख रुपयेका मुआवजा सुनिश्चित है, लेकिन कोरोना महामारी उससे अलग है। तब सुप्रीम कोर्टने भी केंद्र सरकारकी यह दलील स्वीकार की थी। उसने कहा था कि कोविड मृतकोंके परिजनोंको कितनी रकम दी जाय, यह रकम सरकार खुद तय कर ले, लेकिन मुआवजा जरूर दे।

सरकारने बताया है कि ये मुआवजा उन लोगोंको भी दिया जायगा, जिनकी महामारीके दौरान राहत कार्योंमें योगदान देते हुए कोरोनाकी वजहसे मौत हुई है। केंद्र सरकारने यह भी स्पष्टï किया है कि ये मुआवजा सिर्फ कोरोनाकी पहली और दूसरी लहरके दौरान हुई मौतोंतक सीमित नहीं है। आगे आनेवाली संभावित लहरोंके दौरान होनेवाली मौतोंके दौरान भी इसका लाभ मिलेगा। एनडीएमएने कोर्टमें कहा है कि कोविड-१९ ऐसी आपदा है, जो अबतक खत्म नहीं हुई है। इससे मरनेवाले लोगोंकी संख्यामें लगातार वृद्धि हो रही है। वायरसके नये वेरिएंट्स और भविष्यमें इसकी नयी लहरको लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। इससे आकलन कर पाना मुश्किल है कि इसके लिए और कितने फंडकी जरूरत पड़ेगी। दरअसल यह बहुत बड़ी विसंगति है कि कोरोनाके इलाज हेतु भर्ती हुए मरीजकी मौतपर सम्बंधित अस्पताल द्वारा मृत्युका कारण स्पष्टï नहीं होनेसे मृतकके परिजन शासन द्वारा मिलनेवाली किसी भी सहायता राशिसे वंचित रह गये। जिन मरीजोंको अस्पतालमें कोरोनाकी दवाएं दी गयीं और मृत्यु होनेपर उनका अंतिम संस्कार भी कोरोनासे मारे गये लोगोंके लिए निर्धारित श्मशान भूमिमें किया गया, उनके मृत्यु प्रमाणपत्रमें भी तत्संबंधी उल्लेख न करना निश्चित तौरपर अव्वल दर्जेकी संवेदनहीनता थी।

सर्वोच्च न्यायालयने इस बारेमें काफी सख्त रुख अपनाते हुए कोरोनासे हुई मृत्युपर मुआवजा देनेके लिए सरकारको बाध्य किया। हालांकि ५० हजारकी राशि भी बेहद कम है। अनेक परिवार ऐसे हैं जिनका लालन-पालन करनेवाला कोरोनाकी बलि चढ़ गया। कईमें तो छोट-छोटे बच्चे ही बचे हैं। यद्यपि इस बारेमें एक समस्या ये भी है कि बहुत बड़ी संख्या उन मृतकोंकी है, जिन्होंने बीमार होनेपर न तो कोरोनाकी जांच करवायी और न ही समुचित इलाज। ऐसे लोगोंको कोरोना संक्रमित माननेमें व्यवहारिक परेशानी सामने आना स्वाभाविक है क्योंकि हमारे देशमें सरकारी तंत्र लकीरका फकीर बनकर कार्य करता है। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालयके दबावके बाद केंद्र सरकारने जो शपथपत्र पेश किया उससे थोड़ी राहत मिलेगी। लेकिन कोरोना संक्रमणसे हुई मौतका प्रमाण पत्र हासिल करना भी आसान नहीं होगा क्योंकि जिस शासकीय अमलेको इस कामकी जिम्मेदारी दी जायेगी उसमें कितनी मानवीयता है ये पक्के तौरपर कह पाना मुश्किल है। कोरोनाकी दूसरी लहरके चरमोत्कर्षके दौरान जब प्रतिदिन हजारों लोग मारे जा रहे थे तब उनके अंतिम संस्कारमें जिस तरहकी घूसखोरी सुनने मिली वे अमानवीयताकी पराकाष्ठïा ही कही जायेगी। ये देखते हुए मुआवजेकी समूची प्रक्रियाको सरल और पारदर्शी बनाया जाना जरूरी होगा। केंद्र सरकार तो राज्योंको पैसा देकर अपना पिंड छुड़ा लेगी परन्तु सरकारी अमला इस मुआवजेमें भी घूस और कमीशन वसूलनेमें संकोच करेगा ये बात सोचना भी कठिन है। सबसे ज्यादा ध्यान रखनेवाली बात ये है कि सर्वोच्च न्यायालयमें केंद्र द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रके बाद देशभरमें कोरोनासे हुई मौतके फर्जी प्रमाणपत्र बनानेका गोरखधंधा शुरू हो जायगा।

कोरोनासे जुड़ा एक संवेदनशील विषय है चिकित्सा बीमाके दावोंका भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा न किया जाना। सरकारको इस बारेमें भी गम्भीरताके साथ सख्त कदम उठाने चाहिए क्योंकि मोटी प्रीमियम वसूलनेवाली सरकारी बीमा कम्पनियोंतकने मुसीबतके मारे पालिसी धारकोंको धोखा दे दिया। निजी अस्पतालोंने लोगोंकी मजबूरीका फायदा उठाकर भारी-भरकम अग्रिम राशि उन मरीजोंसे भी नगदमें जमा करवायी जिनके पास नगदी रहित (कैश लेस) बीमा पालिसी थी। बादमें बीमा कम्पनियोंने तरह-तरहके बहाने बनाते हुए उनके चिकित्सा खर्चका भुगतान करनेसे इनकार कर दिया। सरकारी नियन्त्रणवाली बीमा कम्पनियोंने जिस तरहका अमानवीय दृष्टिïकोण कोरोना कालमें दिखाया वह किसी भी दृष्टिïसे उचित नहीं कहा जा सकता किन्तु लाखों शिकायतोंके बावजूद एक भी कम्पनीपर शिकंजा नहीं कसा गया, उल्टे कोरोनाके बहानेसे वार्षिक प्रीमियममें लगभग दो गुना वृद्धि करते हुए बीमा धारकोंके कन्धोंपर जबरदस्त बोझ डाला गया। इस बारेमें बीमा नियामक और विकास प्राधिकरणके साथ ही उपभोक्ता अदालतोंमें लाखों शिकायतें लंबित हैं।यदि सरकारी अमला कोरोनासे मौतपर मिलनेवाले मुआवजे और बीमा दावोंका शीघ्र निस्तारण करेगा तो आम आदमीको बड़ी राहत पहुंचेगी।