पटना

क्या से क्या हो गया सांस्कृतिक पाटलिपुत्र


जिस राज्य में ६४ कलाओं में सर्वाधिक कलायुक्त कलावंत पाटलिपुत्र की नगरवधू शालवती विश्व समादृत थी। जहां चतुर्युगी में अद्वितीय विद्वान चाणक्य, कौटिल्य, विष्णु शर्मा, पाक्षिल स्वामी, वात्स्यायन की विराट विरासत है।

-हृदयनारायण झा-

पटना। विश्व समादृत कलावन्त नर नारियों का सांस्कृतिक पाटलिपुत्र वर्तमान में ओझल है। कलाकारों के वर्तमान जमात में विशेषत: ऐसे कलाकार हैं जो किसी दूसरे की कला के सहारे अपना कलाकार जीवन चला रहे हैं। शेष में भी अब गीतकार, संगीतकार, लेखक, कम्पोजर भी वर्तमान के अनुकूल स्वयं को ढालकर अपना कलाकार जीवन चला रहे हैं।

ऐसे में संस्कृति और सांस्कृतिक विरासतों के हित में रचनात्मका चिंतन करनेवाले स्वाध्यायी कलाकार नगण्य हैं वर्तमान पाटलिपुत्र में। २५ वर्षों की निष्पक्ष पत्रकारिता से जो दृष्टि प्राप्त हुई है उसमें अत्यंत कमजोर है पटना में कलाकारों की जमात।

५ वर्ष, ६ वर्ष से शास्त्रीय नृत्य का अभ्यास करनेवाली नवोदित प्रतिभा और उन्हें सिखानेवाले गुरु भी ऐसे मिले जिनमें नौ रस, भाव-रस संबंध, अलंकार की चेतना का अभाव दिखा। उनमें ऐसे भी कलाकार हैं जिन्हें राज्य स्तर पर अपने विद्या के श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठï माने जाते हैं।

कलाकार में जब कलात्मक चेतना नहीं रहती तब वह अपनी यथायोग्य कला को ही पूर्ण मानकर कला सृजन, प्रदर्शन और लोकहित में आयोजन आदि कर्म करते हैं। इस विषय पर मंथन करने की परंपरा खत्म हो चुकी है कि हम कुछ कर रहे हैं तो किसी सत्य को उजागर कर रहे हैं। किस प्रकार की प्रियता को प्रदर्शित कर रहे हैं, किसके हित में कर रहे हैं, उसके लिए तैयारी कैसी होनी चाहिए। जो कर रहे हैं तदनुकूल दर्शक वर्ग कहां किस रूप में हैं।

ऐसे विषयों पर मंथन नहीं होने के कारण समन्वित कला की उत्कृष्ट रचना, परिकल्पना नगण्य है राजधानी में। संदिग्ध है कलाकारों के बीच अपनी विद्या और राष्ट्रहित में कर्तव्य बोध। कई गुरु स्तर के कलाकार भी ऐसे हैं वर्तमान राजधानी में जो आयोजक होकर भी अपनी प्रस्तुति की परिणति के प्रति उदासीन रहते हैं। उनका फोकस अपनी प्रस्तुति पर होता है।

जिस राज्य में ६४ कलाओं में सर्वाधिक कलायुक्त कलावंत पाटलिपुत्र की नगरवधू शालवती विश्व समादृत थी। जहां चतुर्युगी में अद्वितीय विद्वान चाणक्य, कौटिल्य, विष्णु शर्मा, पाक्षिल स्वामी, वात्स्यायन की विराट विरासत है। जहां भारत की सर्वाधिक समृद्ध लोक संस्कृति वाला प्रदेश जहां मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका, खोरठा भाषाओं को लोक सांस्कृतिक विरासत है। इन विरासतों के संरक्षण संवद्र्धन के हित में कार्यक्रम नगण्य है राजधानी में। ‘क्या से क्या हो गया सांस्कृतिक पाटलिपुत्र’।