सम्पादकीय

नये कानूनसे लाभान्वित किसान


निरंकार सिंह
कृषि सुधारके विरोधमें दिल्लीके आसपास डेरा डालनेवाले किसान भी कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थानके ही ज्यादा हैं जो पूरे देशके किसानोंके ठेकेदार बनकर इन कानूनोंकी वापसी मांग कर रहे हैं। लेकिन देशमें आज भी कोई ऐसा किसान संघटन नहीं है जो पूरे देशके किसानोंकी रहनुमाई करता हो। देशकी ६५ फीसदीसे अधिक आबादी आज भी किसीपर निर्भर है किंतु उनका कोई संघटन नहीं है। अधिकांश राज्योंके किसानोंका इस आंदोलनसे कोई लेना-देना नहीं है। आज जो किसान संघटन इन कानूनोंका विरोध कर रहे हैं, वह विभिन्न राजनीतिक दलोंसे जुड़े हुए राजनीतिक संघटन हैं अथवा उनके समर्थक हैं। राजनीतिक दलोंसे जुड़े होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन उनका विरोध तर्कसंगत होना चाहिए। परन्तु मु_ीभर किसान संघटनोंकी जिद पूरे देशके किसानों राय कैसे हो सकती है? मोदी सरकारने एक देश एक बाजारका रास्ता खोलकर किसानोंके सारे बंधनोंको खत्म कर दिये हैं। ६५ साल पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियममें संशोधन और अनाज, दालों, खाद्य तेल, प्याज, आलूको आवश्यक वस्तुओंकी सूचीसे हटानेके साथ पट्टेकी खेतीकी व्यवस्थाका भी द्वार खोल दिये गये है। सरकारने एक अध्यादेशसे कृषि क्षेत्र और किसानोंको पुरानी बेडिय़ोंसे मुक्त कर खुला आकाश दे दिया है। कृषि क्षेत्रमें कानूनी सुधारने किसानोंकी लंबे समयसे अटकी गाड़ीको एक झटकेमें पटरीपर ला दिया है। इससे किसान अब कभी भी और कहीं भी अपनी उपज बेफिक्र होकर ले जाने और बेचनेके लिए स्वतंत्र हो गया है। अभीतक किसान राज्योंके एग्रीकल्चरल प्रोड्यूश मार्केटिंग कमेटी एक्टके दायरेमें आते थे। उसी कानूनके तहत किसान अपनी उपज निश्चित मंडीके लाइसेंसधारी आढ़तीको बेचनेके लिए बाध्य होता रहा है। अब कृषि उपजके अंतरराज्यीय कारोबार करनेकी छूट मिल गयी है।
संप्रग सरकार भी कई सालोंसे यही काम करना चाहती थी। लेकिन वह कानून नही बना सकी। ऐसा इसलिए क्योंकि देशभरकी कृषि मंडियोंपर स्थानीय नेताओंका कब्जा है। जिनके तार, एनसीपी, कांग्रेस भाजपा, सपा या ऐसे ही किसी अन्य पार्टीके शीर्ष नेताओंसे जुड़े हुए हैं। मोदी सरकारने भी छह साल बाद एकदेश एक बाजारका कानून बनाया। बस यही बात कई राजनीतिक दलोंके स्थानीय नेताओं, मंडीके अढि़तियों, कारोबारियों और दलालोंको पसंद नहीं आ रही है। यह बात कुछ किसान संघटनोंके अडिय़ल रवैयेसे भी पता चलती है। वह ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे सारे देशके किसानोंके ठेकेदार वही हैं। दिल्लीमें डेरा डाल चुके किसान संघटन पहले नये कृषि कानूनोंमें कुछ बदलाव और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपीकी व्यवस्थाको सुदृढ़ करनेकी मांग कर रहे थे, लेकिन सरकारसे बातचीतके बाद वह इसपर अड़ गये कि तीनों नये कृषि कानूनोंको रद किया जाय। यह हठधर्मिताके अलावा और कुछ नहीं। विडंबना यह है कि किसान संघटनोंका हठधर्मी रवैया बढ़ता ही जा रहा है। सरकारसे वार्ता कर रहे कुछ किसान संघटन अब इसपर आपत्ति जता रहे हैं कि अन्य किसान संघटनोंसे बात क्यों की जा रही है? यह विचित्र आपत्ति जतानेवालोंमें कुछ स्वयंभू और संदिग्ध आचरणवाले किसान नेता हैं।
इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि समयके साथ कई राज्य सरकारोंने अपने स्तरपर अनाज खरीदमें निजी क्षेत्रकी हिस्सेदारी बढ़ाने और अनुबंध खेतीको प्रोत्साहित करनेका काम किया है। इसी सिलसिलेमें कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमरने यह ध्यान दिलाते हुए विपक्षके दोहरे आचरणको उजागर किया है कि २६ राज्योंने किसानोंको खुले बाजारमें अपनी उपज बेचनेकी इजाजत दी है, जिनमें दससे ज्यादा विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं। दिल्लीमें डेरा डाले हुए किसान संघटनोंकी यह मांग किसी भी सूरतमें स्वीकार नहीं की जानी चाहिए कि सरकार पहले कृषि कानूनोंको वापस लेनेकी घोषणा करे और इसके बाद बातचीत की जायगी। यह मांग संसदका निरादर करनेवाली है। किसान नेता किस हदतक अडिय़ल रवैया अपनाये हुए हैं, इसका पता इससे चलता है कि सरकारके साथ वार्ताके दौरान मंत्रियोंके बोलना शुरू करते ही वे उनकी ओर पीठ करके बैठ जाते हैं। क्या ऐसे हठधर्मिताभरे रवैयेको देखकर यह कहा जा सकता है कि किसान नेताओंकी दिलचस्पी समस्याके समाधान में है?
किसानोंके नाम लिखे पत्रमें केंद्रीय कृषिमंत्री नरेन्द्र सिंह तोमरने कहा कि तीन कृषि सुधार कानून भारतीय कृषिमें नये अध्यायकी नींव बनेंगे, किसानोंको और स्वतंत्र करेंगे, सशक्त करेंग। तोमरने दिल्लीकी विभिन्न सीमाओंपर प्रदर्शन कर रहे किसानोंसे आग्रह किया कि वह ‘राजनीतिक स्वार्थÓ के लिए तीन कृषि कानूनोंके खिलफ फैलाये जा रहे भ्रमसे बचें। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और किसानोंके बीच ‘झूठ की दीवारÓ खड़ी करनेकी साजिश रची जा रही है। किसानोंके नाम लिखे एक पत्रमें तोमरने दावा किया कि तीन कृषि सुधार कानून भारतीय कृषिमें नये अध्यायकी नींव बनेंगे, किसानोंको और स्वतंत्र तथा सशक्त करेंगे। कृषि कानूनोंको ‘ऐतिहासिकÓ करार देते हुए तोमरने कहा कि इन सुधारोंको लेकर उनकी अनेक राज्योंके किसान संघटनोंसे बातचीत हुई है और कई किसान संघटनोंने इनका स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि वह इससे बहुत खुश हैं और किसानोंमें एक नयी उम्मीद जगी है। ‘देशके अलग-अलग क्षेत्रोंसे ऐसे किसानोंके उदाहरण भी लगातार मिल रहे हैं, जिन्होंने नये कानूनोंका लाभ उठाना शुरू भी कर दिया है।Ó कृषिमंत्रीने कहा कि इन कृषि सुधार कानूनोंका दूसरा पक्ष यह है कि किसान संघटनोंमें एक भ्रम पैदा कर दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘देशका कृषिमंत्री होनेके नाते मेरा कर्तव्य है कि हर किसानका भ्रम दूर करूं। मेरा दायित्व है कि सरकार और किसानोंके बीच दिल्ली और आसपासके क्षेत्रमें जो झूठकी दीवार बनानेकी साजिश रची जा रही है उसकी सचाई और सही वस्तुस्थिति आपके सामने रखूं।Ó तोमरने कहा कि नये कानून लागू होनेके बाद इस बार खरीदके लिए पिछले रिकॉर्ड टूट गये हैं। सरकारने न्यूनतम समर्थन मूल्यपर खरीदके नये रिकॉर्ड बनाये हैं और वह खरीद केंद्रोंकी संख्या भी बढ़ा रही है।
इस आंदोलनको कुछ विदेशी शक्तियोंका भी समर्थन है। जब देशकी सीमाओंपर शत्रुओंकी फौजें डटी हों तो ऐसे आंदोलनके औचित्यपर सवाल उठना स्वाभाविक है। वह कृषि कानूनके विरोधके नामपर देशमें अशांति और अराजकता फैलाना चाहते हैं और सरकारकी छविको देश और दुनियामें धूमिल करना चाहते हैं। इस बातमें किसीको कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मोदी सरकारने किसानों गरीबोंके लिए जितना काम किया है, उतना किसी भी सरकारने नहीं किया है। किसान सम्मान निधिके तहत हर साल किसानोंको ६००० रुपये दिये जाते हं,ैं जो उनके लिए किसी वरदानसे कम नहीं है। किसानोंकी कर्जमाफीसे जिन छोटे किसानों कोई लाभ नहीं मिला था, उनको इससे भारी राहत मिली है। इसके अलावा बेघर किसानोंके लिए घर भी बनवाये गये हैं। गरीबोंको मुफ्त राशन भी उपलब्ध कराया गया है। ऐसी कई योजनाएं हैं जिनसे गरीबोंके जीवनमें सुधार आया है। कुछ समय पहलेतक कस्बों तहसीलोंमें यूरिया और बिजलीके लिए मारामारी होती थी। अब यह इतिहासकी बातें हो गयीं हैं। इसलिए संसदसे पारित कृषि कानूनोंको अमलसे रोकना तो कानून, संविधान और लोकतंत्रकी ही अवहेलना होगी। एक अरबसे अधिक आबादीवाले देशमें चंद लोगोंकी आपत्तियोंपर किसी कानूनके अमलको कैसे रोका जा सकता है?