सम्पादकीय

परिसीमनसे बदलेगी तस्वीर


आशीष वशिष्ठ    

केंद्र सरकारनेने २४ जूनको सर्वदलीय बैठक बुलायी थी। जम्मू-कश्मीरकी विभिन्न पार्टियोंके नेताओंकी बैठकके बाद फारुख और उमर अब्दुल्ला दोनोंने बादमें कहा कि ३७० पर सर्वोच्च न्यायालयका जो भी फैसला होगा, वह उसे मान्य करेंगे। महबूबा मुफ्तीने जरूर तीखे तेवर दिखलाये लेकिन किसीका समर्थन नहीं मिलनेसे वह अलग-थलग पड़ गयीं। विशेष तौरसे पाकिस्तानसे बात करने संबंधी उनके बयानका किसीने भी संज्ञान नहीं लिया। इस बैठकका मुख्य एजेंडा परिसीमन रहा। असलमें राज्यको दो हिस्सोंमें बांटनेके बाद जम्मू-कश्मीरमें चुनाव करानेके लिए विधानसभा क्षेत्रोंका परिसीमन जरूरी हो गया था। उक्त बैठकमें केंद्रने विधानसभा चुनावके पूर्व सीटोंके परिसीमनकी जरूरत बताते हुए पूर्ण राज्यका दर्जा उसके बाद देनेकी बात कही। जबकि फारुख, उमर और महबूबाका कहना था कि दोबारा जब पूरे देशमें परिसीमनकी प्रक्रिया शुरू हो तब जम्मू-कश्मीरको भी उसमें शरीक किया जाय। चुनावी दृष्टिïकोणसे परिसीमन एक अहम प्रक्रिया है। गौरतलब है कि ६ मार्च, २०२० को गठित परिसीमन आयोगको इस साल मार्चमें एक सालका विस्तार दिया गया था। जनसंख्या बदलावके साथ सभीको समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करनेके लिए ऐसा किया जाता है। हर जनगणनाके बाद परिसीमनकी प्रक्रिया चलायी जा सकती है।

जम्मू-कश्मीरमें परिसीमन इसलिए देशके दूसरे हिस्सोंसे अलग था क्योंकि अनुच्छेद ३७० के तहत ऐसा करानेका विशेषाधिकार राज्य विधानसभाके पास था। परिसीमनके आधारपर कम जन-प्रतिनिधित्ववाले क्षेत्रोंमें संतुलन बनानेकी कोशिश होती है। साथ ही आरक्षित सीटोंके प्रतिनिधित्वको भी नये सिरेसे तय करनेका रास्ता खोलता है। इस प्रक्रियाके जरिये विधानसभा सीटोंकी संख्यामें भी बदलाव हो सकता है। परिसीमनकी इस प्रक्रियामें क्षेत्र विशेषके राजनेताओंका प्रतिनिधित्व जरूरी होता है। फारुख, उमर और महबूबाने परिसमीनके बारेमें जो सवाल मीटिंगमें किया। उसके जवाबमें केंद्रका कहना था कि अतीतमें भी विशेष स्थितिका फायदा उठाकर परिसीमन टाला जाता रहा जिससे कि घाटीमें जम्मू अंचलसे ज्यादा सीटें होनेसे राजनीतिक असंतुलन बना रहा। इसे धार्मिक चश्मेसे भी देखा जाता है क्योंकि घाटीमें मुस्लिम जनसंख्या ९५ फीसदीसे ज्यादा है जबकि जम्मूमें हिन्दू और सिख बहुमतमें हैं। ५ अगस्त २०१९ को जब जम्मू-कश्मीरसे आर्टिकल ३७० हटाते हुए उससे राज्यका दर्जा वापस लिया गया तो उसके बाद यह दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाखमें बंट गया। इसके बाद केंद्र सरकारने यहां नये सिरेसे विधानसभा और संसदकी सीटोंको बनानेके लिए पिछले साल फरवरीमें एक विशेष परिसीमन आयोगका गठन किया था। तीन सदस्योंके इस आयोगको सुप्रीम कोर्टके रिटायर्ड जज रंजन प्रकाश देसाई हेड कर रहे हैं।

कमेटीको एक सालमें रिपोर्ट देनी थी लेकिन कोविडके कारण ऐसा नहीं हो सका। कमेटीको अपनी रिपोर्ट देनेके लिए एक सालका विस्तार और दिया गया है। पिछले कुछ दिनोंसे तमाम राजनीतिक दलों और अधिकारियोंके साथ परिसीमन आयोगकी लगातार मीटिंग हो रही है। माना जा रहा है कि इस साल अगस्त महीनेतक परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट सरकारको सौंप सकता है। आम सहमति बनानेके लिए आयोगने पांच राजनीतिक दलोंके नेताओंको भी इसका मेंबर बनाया था, जिसमें फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन, हसनैन मसूदी, जितेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा शामिल हैं। प्रस्तावित परिसीमनमें जम्मू क्षेत्रमें सात सीटें बढऩी हैं जिसे लेकर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी परेशान हैं। स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहने सरकारकी तरफसे कहा कि स्थितियां पूर्णत: सामान्य होनेपर जम्मू-कश्मीरको पूर्ण राज्यका दर्जा देने सरकार प्रतिबद्ध है किन्तु परिसीमन प्रक्रिया रोकनेपर उन्होंने कोई आश्वासन नहीं दिया। इसी तरहसे लद्दाख और धारा ३७० की वापसीपर किसी भी तरहके आश्वासनसे भी सरकार बचती रही। उस दृष्टिïसे देखें तो घाटीके नेता खाली हाथ आये थे और वैसे ही लौटे भी। चुनाव करवाने और पूर्ण राज्यका दर्जा देनेके पहले नयी सीटोंके लिए परिसीमनका पेंच फंसाकर केंद्रने बैठकमें उन छोटे दलोंको सम्मोहित कर लिया जो घाटीमें अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारके एकाधिकारके बीच अपनी जगह बनाने प्रयासरत हैं। उनको यह समझ आ चुका है कि न ३७० बहाल होगी और न ही लद्दाख वापस मिलेगा।

नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपीकी तरह अपना मुख्य मंत्री बनानेकी चाहत भी छोटी पार्टियोंमें नहीं है। इसलिए वह इस बातसे ही खुश हैं कि चुनाव होनेसे उनकी भी हैसियतमें कुछ वृद्धि होगी। बैठकमें कांग्रेसके प्रतिनिधिके तौरपर पूर्व मुख्य मंत्री गुलाम नबी आजाद जरूर मौजूद रहे लेकिन घाटीकी सियासतमें उनका विशेष महत्व नहीं बचा है। हालांकि उन्होंने ३७० और पूर्ण राज्यका दर्जा जैसे मुद्दोंपर तो अब्दुल्ला और मुफ्तीका समर्थन किया किन्तु उनकी बातोंमें प्रधान मंत्रीके प्रति जो प्रशंसा भाव दिखा, वह काबिलेगौर था। उससे भी केंद्र सरकारको काफी बल मिला। बैठकका अंत जिस खुशनुमा माहौलमें हुआ वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। बैठकके बाद उमरने ३७० पर सर्वोच्च न्यायालयका फैसला माननेकी बात कहकर यह संकेत दे दिया कि अलगाववादी ताकतोंका जनाधार ढलानपर है। महबूबाने जरूर यह रोना रोया कि घाटीके लोग बदहालीसे गुजर रहे हैं लेकिन बाकी नेता विधानसभा चुनाव कराये जानेके साथ ही पूर्ण राज्यका दर्जा लौटनेकी उम्मीदसे ही संतुष्टï दिखे। दरअसल अनुच्छेद-३७० हटने और केंद्रशासित प्रदेश बननेके बाद जम्मू-कश्मीरमें सियासी हलचलपर सबकी नजर है। लंबी नजरबंदीके बाद तमाम नेताओंकी रिहाई एवं जिला विकास परिषदके चुनावोंके सफल संचालनके बाद जम्मू-कश्मीरमें राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है। इसी बदलावके बीच आगेकी रणनीतिके लिए केंद्रने बैठक बुलायी थी। बैठकके बाद दिल और दिल्लीकी दूरी घटाने जैसे प्रधान मंत्रीके ट्वीटपर कश्मीरी नेताओंका यह कहना कि एक बैठकसे यह नहीं होगा, इस बातके प्रति आश्वस्त करनेवाला रहा कि वह बातचीतके लिए लालायित हैं जबकि कुछ समय पहलेतक घाटीसे एक ही आवाज सुनायी देती थी कि ३७० और लद्दाखकी वापसीके बिना केंद्रसे कोई बातचीत नहीं होगी। जाहिर है परिसीमनके काममें समय लगेगा और तबतक केंद्रका शासन वहां बना रहेगा। इस बैठकके माध्यमसे केंद्र सरकारने घाटीके नेताओंकी ताकत और एकता दोनोंका आकलन कर लिया जिससे आगेकी रणनीति तय करनेमें उसे सहायता मिलेगी। परिसीमनसे वहां राजनीतिक संतुलन काफी हदतक कायम हो जायगा, उसीके बाद केंद्र आगेके कदमोंपर विचार करेगा।