पटना

बिहारशरीफ: नव नालंदा महाविहार में ‘‘विज्ञान, तकनीक एवं योग’’ विषय पर संवाद कार्यक्रम का आयोजन


बिहारशरीफ (आससे)। बुधवार को नालंदा स्थित नव नालंदा महाविहार में ‘‘विज्ञान, तकनीक एवं योग’’ विषय पर तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस संवाद कार्यक्रम प्रसिद्ध शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। शिक्षाविदों ने कहा कि बदलते परिवेश में मानव सभ्यता के विकास के लिए हमें मंत्र, तंत्र और यंत्र में तारतम्य बिठाने की आवश्यकता है। विज्ञान बेशक रोजाना नए तकनीक से लैस हो रहा है। लेकिन इस बीच हम मानव सभ्यता को नहीं भूल सकते। विज्ञान से ही तकनीक उपजता है, लेकिन इसका एकमात्र लक्ष्य मानव सभ्यता का विकास होना चाहिए। योग प्रकृति व मानव का सान्निध्य है। यानि हम प्रकृति से सीधे तौर से जुड़कर खुद को निरोग रख सकते हैं।

संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारतीय दर्शन एवं अनुसंधान समिति के अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र सिन्हा ने कहा कि योग में व्यवहारिकता का पुट है। यह एक अनुशासन है। किसी भी तकनीक में मानवता की भलाई दिखनी चाहिए। तभी इसके मूल्य सृजित होंगे। मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। योग इसमें सहायक है।

मधेपुरा विश्वविद्यालय की उपकुलपति प्रो. आभा सिंह ने कहा कि विज्ञान ने ग्लोबल परिवार की संभावना को बल दिया है। किन्तु स्वार्थपरकता व आक्रामकता ने उसकी दिशा बदल दी है। अब देखना यह है कि इस स्थिति में मनुष्यता ने क्या अर्जित किया। जिस दिशा में तकनीक जा रही है, क्या यह उचित है। विज्ञान कभी भी मूल्य-निरपेक्ष नहीं हो सकती।

भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ. बाल मुकुंद पांडेय ने कहा कि अपने को जानना ही वास्तविक जीवन है। इसके लिए हमें आज के समय में मंत्र यानि योग व प्रकृति, तंत्र यानि प्रणाली या सिस्टम और यंत्र यानि आधुनिकता को ठीक से जानना होगा। इसमें योग प्रकृति व मानव सभ्यता का सान्निध्य है। योग सीधे तौर से हमें प्रकृति से जोड़ता है। ज्ञान पवित्रता की पराकाष्ठा है। कला की विज्ञान से तुलना का आज चलन हो गया है। इसमें समन्वय होना चाहिए। ज्ञान का मकसद भी हमेशा मानव सभ्यता की भलाई ही होनी चाहिए।

मगध विश्वविश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि जोड़ने की क्रिया ही योग है। विज्ञान व तकनीक के जोड़ ने कुछ नकारात्मकताएं भी उत्पन्न की हैं। भारतीय संस्कृति व सभ्यता में पुरातन काल से ही योग हमारी विशिष्टता रही है। जीवन व मरण के बंधन से मुक्ति में भी योग को सहायक कहा गया है। संचार तकनीक ने सबको निकट ला दिया है। पूरी दुनिया को एक मंच पर ला खड़ा किया है। इन सूचनाओं को आधार बनाते हुए इसे ज्ञान में बदलने के प्रयास होने चाहिए।

नव नालंदा महाविहार के कुलपति डॉ. बैद्यनाथ लाभ ने कहा कि यह केवल गोष्ठी मात्र या एक आयोजन भर नहीं है। वैज्ञानिकों व दार्शनिकों के बीच समन्वय के माध्यम से ही मानव कल्याण व विश्व कल्याण का रास्ता प्रशस्त  होगा। हम एक ऐसी दुनिया बनाएं, जिसमें शक्ति का आधिपत्य नहीं हो। दर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि योग मन और आत्मा का महान मूल्य है। विज्ञान और योग का सहयोग आज के आधुनिक परिवेश में बहुत ही आवश्यक व प्रासंगिक है।

दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो. सुशीम दुबे ने योग को विज्ञान बताया। कार्यक्रम में बौद्ध व पाली के ज्ञाता प्रो. विमलेंद्र कुमार की पुस्तक ‘रीलेशंस इन अभिधम्म फिलॉसफी’ का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत धम्मज्योति एवं भंते द्वारा मंगल पाठ से हुआ। संवाद में डॉ. नीहारिका लाभ, प्रो. शशि शेखर, प्रो. बीआर शर्मा, डॉ. आरएनपी सिन्हा, डॉ. साधना दौनोरिया, डॉ. श्याम किशोर, प्रो. शैलेश सिंह, डॉ. अजय सिंह, डॉ. प्रदीप दास, डॉ. मीता व अन्य ने अपने विचार व्यक्त किये।