सम्पादकीय

ब्लैक फंगससे दहशत


राजेश माहेश्वरी  

म्यूकर मायकोसिस यानी ब्लैक फंगस मुख्य रूपसे उन रोगियोंको प्रभावित करता है, जिनका स्टेरॉयड और अन्य दवाओंके साथ कोरोनाका इलाज किया गया है। इसके अलावा जिन लोगोंको डायबिटीज, कैंसर जैसी दूसरी गम्भीर बीमारियां हैं, वह भी इसकी चपेटमें आ सकते हैं। इस फंगसने रोगियोंको सर्जरीके बाद अपने जबड़े और आंखें गंवानेके लिए मजबूर किया है। सवाल यह है कि क्या भारत इसे रोकनेमें सक्षम हो सकेगा? ब्लैक फंगस कितना घातक है इसका अंदाजा आप हरियाणासे आ रही खबरोंसे लगा सकते हें। हरियाणामें म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस लगातार अपने पांव पसार रहा है। देशभरसे इससे जुड़े मामले प्रकाशमें आ रहे हैं। बनारससे लेकर अंबाला तकमें यानी इस फंगससे जुड़ी खबरें देशके कई राज्योंसे आ रही हैं। विशेषज्ञोंके मुताबिक यह फंगस या फफूंद प्रकृतिमें काफी पाया जाता है, लेकिन यह बीमारी बहुत आम नहीं है, क्योंकि इसकी प्रवृत्ति ज्यादा संक्रामक नहीं है। परन्तु यदि हो जाय तो इसका इलाज बहुत आसान नहीं होता और बिना इलाजके यह संक्रमण घातक हो सकता है। विशेषज्ञोंका कहना है कि शुगरसे पीडि़त और स्टेरॉयड ज्यादा लेनेवाले मरीजोंमें ब्लैक फंगसका ज्यादा खतरा है। इससे बचनेके लिए शुगर नियंत्रित रखनी चाहिए। स्टेरॉयडके अलावा कोरोनाकी कुछ दवाएं भी मरीजकी प्रतिरक्षा प्रणालीपर असर डालती हैं। खासकर कोरोनासे उबरे लोगोंको लक्षणपर निगरानी रखनी होगी। किसी मरीजमें संक्रमण सिर्फ एक त्वचासे शुरू होता है, लेकिन यह शरीरके अन्य भागोंमें फैल सकता है। उपचारमें सभी मृत और संक्रमित ऊतकको हटानेके लिए सर्जरी की जाती है। लक्षण मिलते ही इलाज शुरू होनेपर बीमारीसे बचाव संभव है। ब्लैक फंगसमें आंखमें लालपन और दर्द, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेनेमें तकलीफ, उल्टीमें खून या मानसिक स्थितिमें बदलावसे इसकी पहचान की जा सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं डाक्टरोंके मुताबिक अनियंत्रित डायबिटीज और स्टेरॉयडके अधिक इस्तेमालसे कमजोर इम्युनिटीवालों और लंबे समयतक आईसीयूमें रहनेवालोंपर ब्लैक फंगसका ज्यादा खतरा है। किसी दूसरी बीमारीसे भी फंगलका खतरा बढ़ जाता है। हमारे देशमें हेल्थसे जुड़ी सेवाएं पहले ही कोरोनाके झ तले दबी हुई हैं। ऐसेमें ब्लैक फंगसने डाक्टरोंके सामने एक नयी चुनौती खड़ी कर दी है। ब्लैक फंगसकी खबरोंने लोगोंमें बेचैनी बढ़ा दी है। यह कहा जाय कि देशकी चरमराई हुई स्वास्थ्य सेवाओंकी वजहसे यह नयी मुसीबत आई है। कोरोना संकटने सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवाओंका असली चेहरा सबके सामने प्रस्तुत कर दिया है।

विशेषज्ञोंके मुताबिक कोरोनाकी अपेक्षाकृत गंभीर स्थितिमें वायरसके खिलाफ रोग प्रतिरोधक तंत्रकी प्रतिक्रिया ज्यादा उग्र होती है, जिससे वायरसके साथ शरीरकी अपनी कोशिकाएं भी नष्टï होने लगती हैं। रोग प्रतिरोधक तंत्रको दबानेवाली दवाएं इस प्रतिक्रियाकी उग्रता कम करके नुकसान एवं पीड़ा कम करती हैं। जाहिर है, श्यारीरकी रोग प्रतिरोधक क्षमताको कम करनेके अपने खतरे हैं और उनके गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। इसीलिए इन्हें किसी डाक्टरकी लगातार निगरानीमें सावधानीके साथ लिया जाना चाहिए और जैसे ही उनकी जरूरत खत्म हो, उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए। कोरोनामें तो अपेक्षाकृत गंभीर मरीजोंको ही यह दवाएं दी जानी चाहिए, नब्बे प्रतिशतसे ज्यादा मरीजोंको इनकी जरूरत नहीं होती। हमारे देशमें हुआ यह है कि कोरोना विस्फोटके चलते बड़ी तादादमें मरीजोंको डाक्टरोंकी निगरानी नहीं मिल पायी। ऐसेमें, लोग एक-दूसरेकी देखा-देखी या सोशल मीडियापर प्रचारित नुस्खोंको देखकर दवाएं लेने लगे, जिसकी वजहसे ब्लैक फंगस और कई दूसरी समस्याएं पैदा हुई हैं। डाक्टरोंका कहना है कि कोरोनासे उबरे लोग हवामें फैले रोगाणुओंके संपर्कमें आनेसे भी फंगसकी चपेटमें आ सकते हैं। इसके अलावा स्किनपर चोट, रगड़ या फिर जले हुए भागसे भी यह शरीरमें दाखिल हो सकता है। इसलिए ब्लैक फंगससे बचनेके लिए धूलवाली जगहपर मास्क पहनकर जाये। मिट्टी, काईके पास जाते समय जूते, ग्लब्स, फुल टी-शर्ट और ट्राउजर पहने। डायबिटीजपर कंट्रोल, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग या स्टेरॉयडका कमसे कम इस्तेमाल कर इससे बचा जा सकता है। एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवाका इस्तेमाल जरूरत पडऩेपर ही करना चाहिए। आइसीएमआरने कोरोना मरीजोंको सलाह दी है कि वे ब्लैक फंगसके लक्षणोंपर नजर रखें तथा इसकी अनदेखी न करें। फंगस इंफेक्शनका पता लगानेके लिए जांचकी भी सलाह दी गयी है। साथ ही लक्षण होनेपर चिकित्सकसे परामर्श करनेको कहा गया है। साथ ही इसके लक्षण मिलनेपर स्टेरॉयडकी मात्रा कम करने या इसे बंद करनेका भी सुझाव दिया है। वहीं सोशल मीडियापर ब्लैक फंगसके इलाजके लिए कई दवाओंवाले संदेश इन दिनों प्रसारित हो रहे हैं। बेहतर यही है कि लोग जहांतक हो सके, डाक्टरोंकी सलाहसे ही दवाएं लें और यदि ब्लैक फंगसका शक हो, तो किसी भी सूरतमें तुरंत इलाज करायें। डाक्टरोंका कहना है कि फंगल एटियोलॉजीका पता लगानेके लिए केओएच टेस्ट और माइक्रोस्कोपीकी मदद लेनेसे घबरायें नहीं। तुरन्त इलाज शुरू होनेपर रोगसे निजात मिल जाती है। कोरोना महामारीकी दूसरी लहर पूरे देशमें अपना असर दिखा रही है। अब भी हालात पूरी तरह काबूमें नहीं हैं। विशेषज्ञोंने तीसरी लहरको लेकर भी आशंका व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्टने केंद्र सरकारसे तीसरी लहरसे निबटनेके पुख्ता इंतजामपर ध्यान देनेकी बात कही है। डाक्टरोंका कहना है कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानेपर जोर देना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा वक्तमें बीमारीसे निबटनेके लिए सुरक्षित सिस्टम नहीं है। सतर्कता ही बचावका एकमात्र उपाय है।