सम्पादकीय

भारतकी बढ़ी साख


अन्तरराष्टरीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भारतीय अर्थव्यवस्थाके सन्दर्भमें जो अनुमान और धारणा व्यक्त की है, वह अत्यन्त ही उत्साहवर्धक है। आईएमएफका यह भी कहना है वर्ष २०२१ में भारतीय अर्थव्यवस्थामें १२.५ प्रतिशतकी विकास दर हासिल करनेकी सम्भावना है। यदि ऐसा होता है तो विश्वमें सबसे तेज अर्थव्यवस्था भारतकी होगी और चीनको पीछे छोड़कर वह आगे निकल जायगी। वैसे २०२२ में विकास दर फिर गिरकर ६.९ प्रतिशतपर आ जायगी। इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था विश्वकी सबसे तेज रफ्तारवाली अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। वैश्विक अर्थव्यवस्थाकी दशा और दिशापर मंगलवारको प्रकाशित इस रिपोर्टमें कोरोना संकटके दौरमें अर्थव्यवस्थाके समक्ष आयी चुनौतियों और सम्भावनाओंपर भी प्रकाश डाला गया है। रिपोर्टमें यह भी कहा गया है कि पूरा विश्व कोरोना महामारीसे आक्रान्त है। इससे विश्वमें अमीर और गरीब देशोंके बीच फासला बढ़ सकता है। इस तरहकी बात विश्व बैंक भी कर चुका है जो गरीब देशोंके लिए काफी चिन्ताजनक होगी और इससे वैश्विक स्तरपर विषमता और विसंगतियां भी बढ़ेंगी। जहांतक चीनकी अर्थव्यवस्थाका प्रश्न है वह कोरोना कालमें एकमात्र ऐसा देश है जिसकी आर्थिक विकास दर २.३ प्रतिशतके साथ सकारात्मक रही है। लेकिन २०२२ में चीनकी विकास दर ८.४ प्रतिशतसे गिरकर ५.६ प्रतिशतपर आ सकती है। आईएमएफकी मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथने कहा है कि कोरोनाका संकट अभी टला नहीं है। कई देशोंमें महामारीका प्रकोप बढ़ रहा है अर्थव्यवस्थापर इसका प्रभाव बना रहेगा। अनिश्चितताकी स्थिति बनी रह सकती है। इसका दूरगामी प्रभाव भी पड़ेगा। आर्थिक मंदीसे लडऩेके लिए जो उपाय किये गये हैं, उसका विपरीत असर पड़ सकता है। कारपोरेट सेक्टरपर कर्जका बोझ बढ़ सकता है जिससे वित्तीय संस्थान प्रभावित होंगे। यह सीधे तौरपर जोखिमका विषय है, यह हमारे सामने बड़ी चुनौती है। इसलिए अर्थव्यवस्थाको समर्थन देनेकी जरूरत है। रिपोर्टसे जो तस्वीर सामने आयी है, वह भारतके हितमें है लेकिन उन खतरों और जोखिमके प्रति भी हमें सतर्क रहना होगा जो अर्थव्यवस्थापर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। इस रिपोर्टसे विश्वमें भारतकी साख बढ़ेगी और विदेशी निवेशमें भी तेजी आ सकती है। सम्भावनाओंको अवसरके रूपमें बदलनेकी जरूरत है लेकिन सावधानी और सतर्कता भी आवश्यक है।

सीमाओंकी चुनौती

पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीनकी कुटिल नीतिके कारण उत्पन्न खतरेसे भारतीय सीमाओंपर नयी-नयी चुनौतियां बरकरार है। ऐसेमें किसी प्रकारकी ढिलाई उचित नहीं होगी। उन नयी चुनौतियोंसे अवगत होते हुए सैन्य अधिकारियोंको उससे निबटनेके लिए तैयार रहना होगा। इस सम्बन्धमें थल सेनाध्यक्ष एम.एम. नवरणेका बयान सरकार और प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे सैन्य अधिकारियोंके लिए एक सन्देश भी है। वेलिंगटनमें डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कालेज (डीएसएससी) में पश्चिमी और उत्तरी सीमाओंके घटनाक्रम और भारतीय सेनाके भावी रोडमैपपर उनके प्रभाव विषयपर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत अपनी सीमाओंपर नये सिरेसे चुनौतियोंका सामना कर रहा है। इसलिए प्रशिक्षण ले रहे सैन्य अधिकारियोंको इस तरहकी सभी घटनाओंसे अवगत रहना चाहिए। अभी हालमें ही चीनकी स्थितिको साफ करते हुए थल सेनाध्यक्षने कहा था कि चीनके साथ समझौतेके बाद पूर्वी लद्दाखमें पैंगोंग झील क्षेत्रसे सैनिकोंके हटनेके बाद भारतके लिए खतरा केवल कम जरूर हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ है। उन्होंने उचित ही कहा है क्योंकि चीन भरोसे लायक देश नहीं है। उसकी कथनी और करनी पाकिस्तान जैसी ही है। इसलिए भारतीय सैनिकोंको अपना दबाव बनाये रखना होगा। अभी कुछ समय पहले यह बात सामने आयी थी कि सेनामेंसे एक लाख सैनिक हटाये जायंगे। सैनिकोंको कम किये जानेसे सेनाकी चुनौतियां और बढ़ जायंगी। खासकर पाकिस्तान और चीनसे जो खतरे उत्पन्न हो रहे उसको ध्यानमें रखते हुए भारतको अपनी सैन्य शक्ति कम नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही तीनों सेनाओंके बेहतर समन्वयसे सैन्य शक्तिको और प्रभावशाली बनाया जाना चाहिए, जिससे सीमाओंकी चुनौतियोंसे आसानीसे निबटा जा सके। एक तरफ तो वार्ता करके और दूसरी ओर पीठमें खंजर घोंपनेवाले चीन और पाकिस्तानसे विशेष सतर्क रहनेकी जरूरत है। इसके लिए हमारी सेनाओंको सशक्त और सक्षम बनानेके लिए उन्हें आधुनिक तकनीकसे जोडऩा होगा। भारतीय सेनाको विश्वकी नम्बर-एक सेना बनानेका प्रयास किया जाना चाहिए।