सम्पादकीय

मनकी यंत्रणाएं


मन बहुत अद्भुत चीज है लेकिन उसमें अटक गये तो वह आपको लगातार छलता रहेगा। मनमें अटक गये तो वह लगातार छलता रहेगा। मनमें अटकनेवाला इनसान दुखी ही रहता है। कष्ट या पीड़ासे घिरे रहेंगे। आध्यात्मिक रास्तेपर विकास करनेवाला व्यक्ति गौतमको अनदेखा नहीं कर सकता क्योंकि उनकी उपस्थिति बहुत असरदार बन गयी है। उनके अपने जीवनमें चालीस हजार भिक्षु बाहर जाकर उनके ज्ञान और आध्यात्मिक प्रक्रियाको फैला रहे थे। उन्होंने अपने शांतिपूर्ण तरीकेसे दुनियाको हमेशाके लिए बदल दिया। वह पृथ्वीके सबसे महान आध्यात्मिक लहरोंमेंसे एक रहे हैं। योग संस्कृतिमें बुद्धका योगदान महत्वपूर्ण रहा है और किसी भी आध्यात्मिक जिज्ञासुके लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ‘बÓ का अर्थ है-बुद्धि। जो अपनी बुद्धिसे ऊपर उठ चुका है, जो अब अपने मन या दिमागका हिस्सा नहीं है, वह बुद्ध है। ज्यादातर लोग बस विचारों, भावनाओं, मतों और पूर्वाग्रहोंकी गठरी हैं। जिसे ‘मैंÓ समझते हैं, वह बस उन चीजोंका एक मिश्रण है। आपने बाहरसे इक_ा की हैं। जैसी भी स्थितियां आपके सामने आयीं आपने उसी तरहकी व्यर्थ बातें अपने दिमागमें जमा कर लीं। आप चाहें तो इसको दिव्यताकी तरह सुरक्षित रख सकते हैं परन्तु वह कोई दिव्यता नहीं बन जायेगा, यह बस एक साधारण-सा दिमाग है। जीवनका अनुभव करने और जिसे आप मन कहते हैं, उस प्रक्रियासे परे जानेका एक और तरीका है। इसके लिए आपको बस कूड़ेदानको बंद करके एक ओर रखना होता है। हो सकता है कि सूर्यास्त देखते समय वह आपको इतना खूबसूरत लगे कि आप सब कुछ भूल जायं परन्तु आपका दुख किसी पूंछकी तरह ठीक आपके पीछे बैठा रहेगा। आप जैसे ही मुड़कर देखेंगे वह आपके पीछे होगा। जिसे आप ‘मेरी खुशीÓ कहते हैं, वह ऐसे पल हैं, जब आप अपने दुखको भूल जाते हैं। जबतक आप मनमें मौजूद होंगे, भय, बेचैनी और संघर्षसे बच नहीं सकते, मनका स्वभाव ही यह है। लोग मनकी यातनाको नहीं झेल पाते इसलिए उन्होंने समाजमें मनके नीचे जानेके कई तरीके गढ़ लिये हैं। डटकर खाना, शराब, इंद्रिय सुखोंमें डूबे रहना, यह सब मनसे नीचे जानेके तरीके हैं। लोग इन तरीकोंका इस्तेमाल करके कुछ पलोंके लिए अपनी यातना भूल जाते हैं। कुछ घंटोंके लिए आपका मन आपको परेशान नहीं करता क्योंकि आप मनके नीचे चले जाते हैं। आपको बहुत सुख मिलता है और बहुत राहत मिलती है क्योंकि आपके मनकी यंत्रणाएं अचानकसे गायब हो जाती हैं। इसलिए आपको इसकी लत लग जाती है। परन्तु विकास प्रक्रियाकी प्रकृति ऐसी है कि यह जीव जो मनके नीचे था, अब मनमें पहुंच गया है। यदि वह मुक्त होना चाहता है तो उसे मनके परे जाना होगा। विकास प्रक्रियामें पीछे जाने जैसी कोई चीज नहीं होती। यदि आप किसी रसायनका इस्तेमाल करके मनके नीचे जाते हैं तो जीवनकी सचाई हमेशा ज्यादा तीव्रतासे तब सामने आती है जब उस रसायनका असर समाप्त हो जाता है। हमेशा ऐसा ही होता है। दुख बढ़ जाता है। योगकी प्रक्रिया यह देखनेके लिए है कि मनसे परे कैसे जा सकते हैं। जब आप मनसे परे होते हैं तभी आप अपने असली रूपमें हो सकते हैं।         (आ.फी.)