पटना

वेद में पर्यावरण संरक्षण का मंत्र : कोठारी


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। वेद और उपनिषद में पर्यावरण का संरक्षण का मंत्र दिया गया है। यद्यपि पर्यावरण संबंधी समस्याएं बहुत पुरानी नहीं है, परंतु वेद और उपनिषद में इसकी चर्चा यह साबित करती है कि भारतीय अध्यात्म समस्या से पहले समाधान की बात करता है।

ये बातें प्रख्यात शिक्षाविद एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठरी ने कहीं। वे रविवार को ए.एन. कॉलेज एवं  शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्त्वावधान में गूगल मीट के द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रकृति एवं पर्यावरण : वर्तमान परिदृश्य के सन्दर्भ में विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

श्री कोठारी ने कहा कि भारतीय परंपरा प्रकृति से  पारिवारिक संबंध निर्माण की बात करती है, जिसमें कहीं भी प्रकृति के शोषण की बात नहीं कही गयी है। अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि’: अर्थात भूमि मेरी माता है। यजुर्वेद में भी कहा गया है कि माता पृथ्वी (मातृभूमि) को नमस्कार है। भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र है, क्योंकि यहां नि:स्वार्थ की भावना रहती है। पश्चिम की दृष्टि जहां भोगवादी रही है, वही हमारी दृष्टि समन्वयवादी रही है।

आज आवश्यकता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार हम प्रकृति में आये क्षरण को दूर करें। पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ बड़ी बातें करना आवश्यक नहीं अपितु छोटी बातों पर ध्यान देकर भी इसका समाधान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा और संस्कार के तीन केंद्र यथा घर एवं परिवार, विद्यालय-महाविद्यालय और समाज में पर्यावरण संरक्षण का कार्य किया जाना चाहिये। देश और समाज में परिवर्तन शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो.मनोज कुमार ने कहा कि हमारी धरती का तापमान पिछली शताब्दी में 1.5 डिग्री फॉरेनहाइट  की बढ़ोतरी हुई है और संभावना है कि आने वाली शताब्दी में यह वृद्धि 0.5 से 8.6 डिग्री फॉरेनहाइट तक की हो सकती है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन अपनी प्राकृतिक सीमा से कहीं ज़्यादा हुआ है। कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और तापमान वृद्धि में प्रत्यक्ष संबंध है। ग्रीन हाउस गैसों के अत्याधिक उत्सर्जन के कारण धरती का तापमान निरंतर बढ़ता जा रहा है।

विषय-प्रवर्तन करते हुए विश्वविद्यालय सेवा आयोग के सदस्य प्रो.विजयकांत दास ने कहा कि मनुष्य और प्रकृति के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। मनुष्य को प्रकृति से जुड़कर रहना चाहिए। अगर ब्रह्मांड बिगड़ेगा तो मानव शरीर भी बिगड़ेगा। आज बाह्य पर्यावरण के साथ-साथ आंतरिक पर्यावरण की शुद्धता भी जरूरी है। चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण आंतरिक पर्यावरण के अंग हैं।

ए.एन.कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो.शशि प्रताप शाही ने वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारतीय परंपरा विश्व की सर्वश्रेष्ठ परंपरा है। भारतीय आयुर्वेद, खानपान और रहन-सहन ने कोरोना काल में विश्व को भारतीय परंपरा की ओर आकर्षित किया है। हमें भोगवाद  को छोड़कर भारतीय ज्ञान और दर्शन को बढ़ावा देना चाहिये। प्रोफ़ेसर शाही ने महाविद्यालय में पर्यावरण संबंधी किये गये कार्यों के बारे में भी विस्तार से सभी को बताया।

प्रधानाचार्य ने महाविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्रोफेसर शैलेश कुमार सिंह द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु किए गए कार्यों की सराहना की। वेबिनार का  समन्वयन व संचालन ए.एन. कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक व शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत संयोजक प्रो.अरुण कुमार सिंह ने किया। आरंभ में डॉ. निशा गुप्ता ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति की। प्रो.रत्नेश आनंद ने धन्यवाद ज्ञापन किया।