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शांतिप्रिय स्वीडन में बढ़ते मुस्लिम कट्टरपंथ के गंभीर मायने, कभी पाई थी शरण;


नई दिल्ली। यूरोप के उत्तर में बसे छोटे से देश स्वीडन में बीते कुछ दिन से हिंसक घटनाओं की खबरें आ रही हैं। आमतौर पर शांत माने जाने वाले इस स्कैंडिनेवियन देश में बीते गुरुवार को वहां बसे मुस्लिम समुदाय की तरफ से शुरू हुआ उपद्रव लगातार बढ़ता रहा। वैसे ही दृश्य देखने को मिले, जैसे बीते एक सप्ताह में भारत के कई शहरों में एक के बाद योजनाबद्ध तरीके से देखे गए। पथराव, वाहनों में तोड़फोड़, आगजनी, पुलिस से सीधा टकराव और धार्मिक नारेबाजी। सड़कों पर एकत्र भीड़ स्वीडन के नोरकोपिंग शहर में उन्मादी हो गई और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ व आगजनी देखने को मिली। उन्माद इतना अधिक था कि पुलिस को स्थिति संभालने में भारी दिक्कत पेश आई।

स्वीडन में जब लोग ईस्टर सप्ताहांत में व्यस्त थे, तभी हुई इन घटनाओं से दहशत का माहौल बना। अन्य कस्बों में भी तीन-चार दिन अशांति का माहौल रहा। नोरकोपिग में तो पुलिस को रविवार को स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए रबर की गोलियां चलानी पड़ीं, जिससे तीन लोग घायल हुए। करीब एक करोड़ की जनसंख्या वाले और आमतौर पर शांत माने जाने वाले देश स्वीडन में इस अशांति के गंभीर मायने हैं। यह केवल एक यूरोपीय देश की ही बात नहीं है, बल्कि वहां कई देशों में मुस्लिम कट्टरपंथ और उन्माद की घटनाएं सचेत करती हैं। आइए समझे यूरोप में बीते एक दशक में बदली जनसांख्यिकी का वहां और विश्व के सामाजिक सद्भाव और शांति पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है:

कभी पाई थी शरण, अब बन रहे उन्मादी

कहानी शुरू होती है दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से पीड़ित बनकर शरण मांगने आए लोगों और यूरोपीय देशों की दयालुता से। मध्य एशिया और अफ्रीका के अशांत क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मुस्लिम आकर स्वीडन समेत अन्य यूरोपीय देशों में बसे। सरकार ने भी सुविधाएं उपलब्ध कराईं और धीरे-धीरे कभी शरणार्थी रहे ये मुस्लिम वहां के नागरिक हो गए। शांतिप्रिय लोकतंत्र स्वीडन ऐसे शरणार्थियों के लिए सुरक्षित स्थान रहा है।