सम्पादकीय

संघर्षविरामपर सहमति


डा. श्रीनाथ सहाय

भारत-पाकिस्तानके बीच नयी सहमति बनी है कि पिछले समझौतोंको गम्भीरतासे लेकर पालन किया जायेगा। दरअसल दोनों सेनाओंके सैन्य अभियानोंके महानिदेशक यानी डीजीएमओके मध्य एलओसीपर लगातार जारी गोलाबारीकी बड़ी घटनाओंके बाद संघर्षविराम जमीनी हकीकत भी बन गया। यह सहमति सिर्फ एलओसीपर ही नहीं, बल्कि अन्य सेक्टरोंपर भी लागू होगी। इसके अंतर्गत चौबीस एवं पचीस फरवरीकी मध्यरात्रिसे ही गोलाबारी रोकनेका फैसला हुआ। इतिहासमें झांके तो युद्धविरामका समझौता २००३ में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानके तानाशाह राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफके दरमियान तय हुआ था। उसके बाद शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जब सीमापारसे संघर्षविरामका उल्लंघन न किया गया हो! बीते साल २०२० में ही ५१३३ बार यह उल्लंघन किया गया। उनमें १२६ जवान घायल हुए, २१ नागरिक मारे गये और ७१ लोग जख्मी हुए। सेना और अद्र्धसैन्य बलोंके ७० से अधिक रणबांकुरोंकी ‘शहादत’ भी हमने देखी। बीते तीन सालोंके दौरान १०,७५२ बार युद्धविरामका उल्लंघन किया गया, जिनमें ७२ जवान शहीद हुए। सिर्फ गोलीबारी या ग्रेनेड फेंकनेतक ही उल्लंघन नहीं किया गया, बल्कि आतंकी लांचपैड्ससे घुसपैठ भी करायी गयी और ज्यादातर आतंकी हमले सरहदी राज्य कश्मीरमें कराये गये। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सीमापर लगातार जारी संघर्ष विराम न केवल सेनाके स्तरपर, बल्कि निकटवर्ती ग्रामीणोंके स्तरपर भी घातक साबित हो रहा था। अक्सर जवानोंके शहीद होनेकी खबरें आ रही थीं। साथ ही एलओसीके निकटके गांवके लोग भय एवं असुरक्षामें जी रहे थे। कई बार ग्रामीणोंको विस्थापित होना पड़ रहा था। वह अपने खेतोंमें फसलोंकी देखभालतक नहीं कर पा रहे थे। सबसे ज्यादा स्कूली बच्चोंको सहना पड़ रहा था, जो स्कूल जानेमें इसलिए असमर्थ थे कि न जाने कब गोलाबारी शुरू हो जाये। इस सहमतिके बाद संयुक्त बयानमें कहा गया कि दोनों ही पक्ष नियंत्रण रेखा और दूसरे सेक्टरोंमें सभी समझौतों, परस्पर समझ और संघर्षविरामका सख्तीसे पालन करेंगे। इससे पहले हॉटलाइनके जरिये दोनों डीजीएमओने नियंत्रण रेखाकी स्थितियोंकी समीक्षा की और एक-दूसरेके आंतरिक मुद्दों और चिंताओंको समझते हुए सहमत हुए कि कैसे शांति भंग करनेवाले कारकोंको टाला जा सकता है, जिससे क्षेत्रमें शांति स्थापित करनेमें मदद मिल सके। वहीं दूसरी ओर भारतीय सेनाने साफ किया है कि वह जम्मू-कश्मीरके आन्तरिक हिस्सेमें आतंकवादियोंसे निबटनेके लिए तथा सीमापर घुसपैठके खिलाफ सख्त कदम उठाती रहेगी।

वहीं सैन्य अभियानोंके महानिदेशकोंके बीच हुई बातचीतमें इस बातपर भी सहमति बनी कि उन तमाम पुराने समझौतोंको भी फिरसे क्रियान्वित किया जायेगा जो समय-समयपर दोनों देशोंके बीच किये गये थे। निस्संदेह जब एलओसीपर स्थिति बेहद संवेदनशील बनी हुई थी और दोनों ओरकी सेनाओंको लगातार क्षति उठानी पड़ रही थी, यह समझौता सुकूनकी बयारकी तरह ही है। इतना ही नहीं, दोनों डीजीएमओ एक-दूसरेके जरूरी मुद्दों और चिंताओंको स्वीकार करनेपर सहमत हुए कि हिंसा भड़काने और शांति भंग करनेके कारकोंसे कैसे बचा जाये। साथ ही यह भी कि समय-समयपर गलतफहमी और अनदेखे हालातोंके निस्तारणके लिए हॉटलाइनके जरिये समाधान निकाला जायेगा। अभी कहना जल्दबाजी होगी कि पाकिस्तानका यह हृदय परिवर्तन परिस्थितियोंके अनुरूप है या भविष्यकी रणनीति बनानेके लिए वह कुछ समय ले रहा है या फिर किसी अंतरराष्टï्रीय दबावके चलते यह कदम उठा रहा है। फिलहाल हालमें पूर्वी लद्दाखसे चीनी सेनाकी वापसीके बाद पाकिस्तानका एलओसीपर संघर्षविरामके लिए सहमत होना भारतीय नजरियेसे सुखद ही है। दोनों सीमाओंपर तनावका मुकाबला करना भारतीय सेनाके लिए असंभव नहीं तो कठिन जरूर है। सेनापर आनेवाला कोई दबाव कालांतरमें पूरे देशपर पड़ता है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्थाको भी प्रभावित करता है।

नयी सहमतिके बावजूद आशंकाएं और सवाल हैं, क्योंकि पाकिस्तानकी सरजमींपर हाफिज सईद, मसूद अजहर, लखवी, सैयद सलाउद्दीन सरीखे असंख्य आतंकियोंके गुट और अड्डे लगातार सक्रिय रहे हैं। पाकिस्तानमें आतंकवाद अब भी जिंदा है, लिहाजा ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (फाट्फ) को हालिया बैठकमें फैसला लेना पड़ा कि पाकिस्तान अब भी ‘ग्रे लिस्ट’ में रहेगा। -शुक्र है कि पाकिस्तान ‘काली सूचीÓ में जानेसे फिलहाल बच गया। यदि उसे ‘काली सूची’ में धकेल दिया जाता तो पाकिस्तान बर्बाद हो सकता था। ऐसा इमरान खानका भी सार्वजनिक तौरपर मानना है। फिलहाल मुद्दा पुराने समझौतेपर नयी सहमतिका है, लेकिन पाकिस्तानने सरहदपर एयर डिफेंस सिस्टम तैनात कर रखा है। इस्लामाबादके आसमानमें एफ-१६ और जे-१७ लड़ाकू विमानोंकी गर्जना सुनाई दे रही है और वजीर-ए-आजम इमरानने कश्मीर समेत अन्य विषयोंपर द्विपक्षीय संवादके लिए माकूल माहौल बनानेका दायित्व भारतके जिम्मे मढ़ दिया है। पाकिस्तानी प्रधान मंत्रीने कश्मीरपर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषदके पुराने प्रस्तावोंका राग फिर अलापा है। सहमतिके बावजूद यह दोगलापन और सैन्य गतिविधियोंका प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है। हालांकि समझौतेपर नयी सहमतिका स्वागत इमरान खानने भी किया है। यह ऐसा निर्णय है, जो जाहिरा तौरपर शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और सैन्य प्रमुखोंने लिया होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभालकी अंदरूनी भूमिका क्या रही है, उसकी सार्वजनिक व्याख्या नहीं की जा सकती। ऐसे फैसलेके बावजूद दो सवाल गौरतलब हैं कि पाकिस्तान इस सहमतिके लिए तैयार क्यों और कैसे हुआ और आतंकवादको लेकर क्या उसकी फितरत बदलेगी? इन दोनों सवालोंके संदर्भमें अमेरिकामें नये राष्टï्रपति जो बाइडेनका आगमन और पूर्वी लद्दाखमें चीनी सेनाका पीछे हटना और अपने ढांचोंको ध्वस्त करना बेहद महत्वपूर्ण और सामरिक घटनाक्रम हैं। दोनों ही स्थितियोंमें भारत विजयी मुद्रामें है।

देशमें कोरोना संकटके बीच आर्थिक विकासको पटरीपर लानेके लिए सीमाओंपर शांति बेहद जरूरी है। इसके बावजूद कहना कठिन है कि पाकिस्तान अपनी बातपर कबतक कायम रहता है। वर्ष २००३ में भारत और पाकिस्तानके बीज सीजफायर समझौता हुआ था, जिसमें सीमापर एक-दूसरेकी सेनाओंपर गोलाबारी न करनेका संकल्प दोहराया गया था। लेकिन तीन सालतक स्थिति सामान्य रहनेके बाद वर्ष २००६ में पाकिस्तानने फिर एलओसीपर गोलाबारी शुरू कर दी, बल्कि बीते साल तो संघर्षविराम उल्लंघनकी घटनाओंमें रिकार्ड तेजी आयी है। पाकिस्तान कहांतक नयी सहमतिका निर्वाह करता है, यह वक्त ही साफ करेगा, क्योंकि पुराना समझौता भी पाकिस्तानने ही तोड़ा था। शांतिसे ही समृद्धि और विकासके रास्ते खुलते हैं, यह बात पाकिस्तान जितनी जल्दी समझेगा, उसमें उसकी ही भलाई होगी।