मऊ

सांपों के झुंड से खेलने की फितरत… असम से आये तो मोहब्बत के रोग में फंसा दिया ग्रामीणों ने, संन्यास से गृहस्थी की ओर लौटे मुन्नू को सहयोग की दरकार


  1. सांपों के झुंड से खेलने की फितरत
    असम से आये तो मोहब्बत के रोग में फंसा दिया ग्रामीणों ने
    संन्यास से गृहस्थी की ओर लौटे मुन्नू को सहयोग की दरकार
    (ऋषिकेश पाण्डेय)
    मऊ।घर में एक सांप निकल जाये तो अच्छे-अच्छे सूरमाओं की हालत पतली हो जाती है।अगर,सांपों का झुंड निकल जाये तो उस घर के सदस्यों की क्या हालत होगी?इसे आसानी से समझा जा सकता है।लेकिन,आप घबराइये नहीं।अच्छी खबर यह है कि मुन्नू नामक यह शख्स आपकी इस दहशत को पल भर में दूर कर सकता है।मगर,खुद मुन्नू का कोई ठिकाना नहीं है।लम्बे समय तक असम प्रांत में रहकर सन्यासी का जीवन व्यतीत करने वाले मुन्नू राजभर ने सांप पकङने की कला बंगाल में सीखा और गाजीपुर जनपद के बद्धूपुर हनुमान मंदिर की शोहरत सुनकर आये तो यहीं के होकर रह गये।मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर जंगल में त्रेता युग के एक विशालकाय पोखरे पर जाकर बस गये।इनके सांप पकङने की कला से प्रभावित हुए लोगों ने इन्हें वापस असम न जाने देने के लिए मोहमाया में फंसा दिया।मोहब्बत का रोग आखिरकार इन्हें लग ही गया और यहीं बुढापे में शादी कर ली।जिनसे सात संतानें हुई।जिनमें पांच बेटियां और दो बेटे हैं।जो बहुत छोटे-छोटे हैं और पोखरे पर ही ग्राम समाज की भूमि पर झुग्गी-झोपङी डालकर गुजर-बसर कर रहे हैं।प्रदेश सरकार की स्वामित्व योजना भी मुन्नू को गृह स्वामी का दर्जा अभी तक नहीं दिला सकी है।अधिया-बटइया पर खेती कर पेट पालने वाले इस शख्स को अभी तक सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिल सका है।जिस किसी के घर सांप निकलने की सूचना मिलती है।मुन्नू सब काम छोड़कर उसके घर जाते हैं और सांप को पकड़कर निर्जन स्थान पर छोड़ देते हैं।बदले में मिलने वाली सहयोग राशि मुन्नू के परिवार का आधार बनती है। गजब के हौसले के धनी मुन्नू को शासन-प्रशासन से सहयोग की दरकार है।