पटना

साहित्य अकादमी भी भूल गयी ‘शेखर’ जी को


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। आधुनिक मैथिली साहित्य के पुरोधा स्वर्गीय सुधांशु ‘शेखर’ चौधरी को उनके जन्म शताब्दी वर्ष में साहित्य अकादमी भी भूल गयी। तीन नवम्बर, 2020 से शुरू हुआ उनका जन्म शताब्दी वर्ष दो नवम्बर को समाप्त होने वाला है। लेकिन, उनके जन्म शताब्दी वर्ष में साहित्य अकादमी की ओर किसी भी आयोजन की सुगबुगाहट शुरू तक नहीं हुई है।

साहित्य अकादमी ने मैथिली अकादमी से प्रकाशित ‘ई बतहा संसार’ उपन्यास पर 1979 में ‘शेखर’ जी को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ दिया था। यह उपन्यास उस समय लोकप्रियता की सभी सीमाओं को लांघ गया। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए साहित्य अकादमी ने इसका अनुवाद हिंदी में कराया। यह अनूदित कृति साहित्य अकादमी से ही ‘पागल दुनिया’ नाम से प्रकाशित हुई। ‘पागल दुनिया’ पढऩे के बाद एक तत्कालीन ब्रिगेडियर ने यह उपन्यास फौज के जवानों को पढऩे की सलाह दी थी।

आगे चल कर साहित्य अकादमी ने इसका बांग्ला में भी अनुवाद कराया। बांग्ला अनुवाद का प्रकाशन भी साहित्य अकादमी ने ‘ई पृथ्वी पगला गारद’ नाम से किया। यह उपन्यास बांग्ला भाषियों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। बाद में ‘शेखर’ जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व ‘मोनोग्राम’ के रूप में साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया। तीन नवम्बर, 1920 को दरभंगा के मिश्रटोला में जन्मे ‘शेखर’ जी की पहचान मैथिली पत्रकारिता के शिखर पुरुष के रूप में बनी। उन्होंने 22 वर्षों तक मैथिली की लोकप्रिय पत्रिका ‘मिथिला मिहिर’ का संपादन किया। इस रूप में वे मैथिली में नव वर्तनी के प्रर्वतक बने। वही वर्तनी आज मानक रूप में है। ‘शेखर’ जी की 29 पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें 13 मैथिली में और 16 हिंदी में हैं।

खास बात यह है कि साहित्य अकादमी से पुरस्कृत अपने उपन्यास ‘ई बतहा संसार’ को लेकर उपन्यास की दुनिया में चर्चित ‘शेखर’ जी मूलत: नाटककार थे। उनके नाटकों में ‘भपाइत चाहक जिनगी’, ‘लेटाइत आंचर’, ‘पहिल सांझ’, ‘लगक दूरी’ एवं  ‘हथटुट्टï कुर्सी’ शामिल हैं। ‘तर पट्टा: ऊपर पट्टा’, ‘दरिद्रछिम्मडि़’, ‘ई बतहा संसार’, ‘निवेदिता’ एवं ‘अंग्रेजी फूलक चिट्ठी’ उनके उपन्यास हैं। अन्य किताबों में ‘संदर्भ’ (आलोचना), ‘गजल ओ गीत’, ‘हम साहित्यकार ओ संपादक’ (आत्मकथा) एवं ‘जिनगीक बाट’ (कथा संग्रह) शामिल हैं। उनका निधन 28 मार्च, 1990 को हुआ। उन पर कई शोध ग्रंथ भी हैं।

बहरहाल, साहित्य अकादमी को जन्म शताब्दी वर्ष में ‘शेखर’ जी की याद भले ही नहीं आयी हो, लेकिन शेखर प्रकाशन ने उनकी स्मृति में आठ किताबें प्रकाशित कर उनका तर्पण किया है। इनमें ‘हमर अभाग, हुनक नहिं दोष’, ‘हस्ताक्षर’ (‘शेखर’ जी मैथिली महानियां), ‘साक्षात’, ‘मर्मान्तक-शब्दानुभूति’, ‘मैथिली नाट्य आलोचना’, ‘टोटानाथक चिट्ठी’, ‘मैथिली उपन्यास’ (आलोचना) एवं ‘मैथिली श्रीमदभागवत’ शामिल हैं।