सम्पादकीय

कहीं भारी न पड़ जाये लापरवाही

रमेश सर्राफ धमोरा विश्व स्वास्थ्य संघटन एवं दुनियाके बड़े वैज्ञानिक एवं चिकित्सा विशेषज्ञ सभी देशोंको लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि वह अपने यहां लगायी गयी पाबंदियोंमें ढील न दे। दुनियाभरमें जल्दी ही कोरोनाकी तीसरी लहर आनेवाली है। कई देशोंमें तो कोरोनाकी तीसरी लहर प्रारंभ भी हो चुकी है। विशेषज्ञोंका कहना है कि तीसरी लहरमें […]

सम्पादकीय

जीवनकी गहराई

श्रीश्री रविशंकर जब हम शब्दोंकी शुद्धता को अनुभव करते है, तो हम जीवन की गहराई को अनुभव करते हैं और जीवन जीना आरंभ कर देते हैं। हम सुबह से रात तक शब्दों को ही जीते हैं। हम इनके पीछे के उद्देश्यों को खोजनेमें और उद्देश्यताको खोजनेमें सारे उद्देश्य भूल जाते हैं। यह इतना गंभीर हो […]

सम्पादकीय

गतिरोध अनुचित

कृषि सुधार कानूनोंके खिलाफ विगत आठ महीनोंसे चल रहे किसान संघटनोंके आन्दोलनका लम्बा चलना उचित प्रतीत नहीं होता है। केन्द्र सरकार और किसान संघटनोंके बीच ११ दौरकी बातचीत हो चुकी है लेकिन अबतक स्वीकार्य समाधान सामने नहीं आ सका है। दिल्लीकी सीमाओंपर किसान संघटनोंका आन्दोलन चल रहा है। तीनों कृषि कानूनोंके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे […]

सम्पादकीय

तीसरी लहरसे बचनेकी चुनौती

डा. जगत राम         लगभग एक सदी पहले आये स्पैनिश फ्लू वैश्विक महामारीके दौरान चार लहरें आयी थीं। कई देशोंमें मौजूदा नॉवेल कोरोना वायरस-कोव-२ की तीसरी लहर आ चुकी है। बेल्जियमकी महिलाको एक साथ दो प्रतिरूपों (वेरिएंट) से पीडि़त पाया गया है, इससे स्थिति और गंभीर बन गयी है। भारतमें भी एक महिला पायी गयी है, […]

सम्पादकीय

धर्मांतरणके दुष्चक्रमें तेजी

राकेश जैन         देशमें धर्मके नामपर बंटवारा चाहे स्वतन्त्रताप्राप्तिके समय हुआ, परन्तु कहते हैं कि विभाजनका बीज उसी दिन बोया गया जब किसी पहले भारतीयने धर्म परिवर्तन किया। चाहे इस्लामका भारतमें प्रादुर्भाव काफी समय पहले हो चुका था परन्तु जिहादी कासिमके सिन्धपर हमलेके बाद इस्लाम और हमारे बीच लगभग हमलावर एवं संघर्षशील समाजका ही रिश्ता रहा। […]

सम्पादकीय

शैक्षणिक व्यवस्थाके विकासकी आधारशिला है शोध

 डा. शंकर सुवन सिंह शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्यका नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्नसे तथ्योंका संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धिसे उसका अवलोकन, विश्लेषण करके नये तथ्यों या सिद्धांतोंका उद्घाटन किया जाता है। रैडमैन और मोरीने अपनी किताब दि रोमांस आफ रिसर्चमें शोधका अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि नवीन ज्ञानकी प्राप्तिके व्यवस्थित प्रयत्नको […]

सम्पादकीय

आसुरी प्रवृत्ति

श्रीराम शर्मा असुरता इन दिनों अपने चरम उत्कर्षपर हैं। दीपककी लौ जब बुझनेको होती है तो अधिक तीव्र प्रकाश फेंकती और बुझ जाती है। असुरता भी जब मिटनेको होती है तो जाते-जाते कुछ न कुछ करके जानेकी ठान लेती है। इन दिनों भी यही सब हो रहा है। असुर तो अपने नये तेवर और नये […]

सम्पादकीय

सैन्य शक्तिमें वृद्धि

भारत एक ओर जहां तेजीसे आत्मनिर्भरताकी ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानेकी दिशामें निरन्तर उपलब्धियां भी हासिल कर रहा है। इस श्रृंखलामें उसे दो और बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई हैं, जो देशका गौरव बढ़ानेवाली है। भारतने बुधवारको जमीनसे हवामें मार करनेकी क्षमतासे लैस स्वदेश निर्मित आकाशका सफल परीक्षण किया, वहीं […]

सम्पादकीय

हंगामेकी भेंट चढ़ती उम्मीदें

आशीष वशिष्ठ संसद लोकतंत्रका वह मंदिर जिसकी तरफ पूरे देश और देशवासियोंको उम्मीदें, आशाएं और विश्वास होता है। पूरे देशकी दृष्टिï इसपर लगी रहती है। यही बैठकर हमारे द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि हमारे लिए कल्याणकारी नीतियां, कानून और भलाईके कार्य करते हैं। लेकिन कोरोना महामारीके समय मानसून सत्रमें जो दृश्य दिखाई दे रहे हैं, वह कोरोना […]

सम्पादकीय

राजनीतिमें जातीय समीकरण

नवीनचन्द्र   उत्तर प्रदेशमें अगले सालकी शुरुआतमें यानी कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं। दलितों एवं अति पिछड़ोंकी राजनीतिक गोलबंदीसे राज्यकी बड़ी ताकत बनीं और चार बार सत्तामें आ चुकी मायावती फिर ब्राह्मïणोंको खुश करनेकी कोशिशमें जुट गयी हैं। उधर सवर्णोंकी पार्टीके रूपमें जानी जानेवाली भाजपा दलितों एवं पिछड़ोंके लिए लाल कालीन बिछाये बैठी […]