सम्पादकीय

भारतमें टीकाकरण प्रणाली भ्रांतियां और सच

डा. एस. एन मिश्र कोरोनाकी दूसरी लहरमें जहां टीकाकरणकी जरूरत ज्यादा महसूस की जा रही है वहीं भारतके टीकाकरण सिस्टमपर भी खूब आलोचनाके घेरेमें है। भारतके टीकाकरण प्रोग्रामके बारेमें कई तरह भ्रांतियां फैल रही हैं। कुछ आधे-अधूरे सच हैं तो कुछ सफेद झूठ हैं। केंद्र सरकार पिछले सालके मध्यसे ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टीका निर्माता […]

सम्पादकीय

तनावका कारण 

डा. कर्ण शर्मा हमारी आत्माकी सामान्य स्थिति शांतिकी है। यदि हमें सहज भावमें छोड़ दिया जाय तब हम शांति ही अनुभव करेंगे, क्योंकि शांति हमारी आत्माका मूल स्वभाव है। शांत रहनेके लिए हमें कोई विशेष परिश्रम करनेकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन आजका मनुष्य मौज-मस्ती चाहता है। क्योंकि उत्तेजना हमारी वास्तविक वृत्ति नहीं है इसलिए उत्तेजनाके […]

सम्पादकीय

कोरोनाका सच

कोरोना वायरसकी उत्पत्ति स्थलको लेकर सत्य और असत्यके बीच संघर्ष शुरू हो गया है। सत्यका साथ देनेवालोंकी संख्या अधिक है, जबकि असत्यका साथ देनेवाला चीन अलग-थलग पड़ गया है। वैसे भी यह सर्वविदित है कि असत्यका जीवन अल्प ही होता है और सत्य शाश्वत है। अमेरिकाके बाद अब ब्रिटेनके वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि […]

सम्पादकीय

चुनौतियोंसे निबटनेकी तैयारी

आर.के. सिन्हा      कोरोना वायरसकी दूसरी लहरने कुछ ही दिनोंमें देशको हिलाकर रख दिया है। इसने अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, कोई भेदभाव नहीं किया। इसने हर घर जाकर अपना असर दिखाया। लेकिन अब दूसरी लहर कमजोर पडऩे लगी है। कोरोना वायरससे संक्रमित रोगियोंकी तादाद प्राय: हर जगह घट रही है। यह संतोषका विषय तो हो सकता है, परन्तु […]

सम्पादकीय

युवाशक्तिसे आर्थिक सम्पन्नता

डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा     डेमोग्राफिक टाइम बमका बड़ा कारण देशोंमें कामधंधा करनेवाले युवाओंके अनुपातमें बुजुर्गोंकी आबादी अधिक होना है। किसी भी देशमें जीवन आयु बढऩा एक अच्छा संकेत माना जा सकता है परन्तु जिस तरहकी इन देशोंमें जनसंख्या नियंत्रणकी नीतियां चल रही है या चलायी गयी थी उसका परिणाम यह है कि जनसंख्या नियंत्रणके कारण […]

सम्पादकीय

राष्ट्रीय चारित्र्यकी कसौटीपर भारतीय

 प्रणय कुमार युद्ध किसी समस्याका समाधान नहीं होता। शांति, संवाद, सहयोग, सह-अस्तित्वका कोई विकल्प नहीं। विश्व-मानवताके लिए यह सुखद है कि इसरायल और हमासके बीच युद्ध-विराम हो चुका है। परंतु उल्लेखनीय है कि १९४० के दशकके मध्यमें हंगरी, पोलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रियाके यहूदियोंको किन-किन यातनाओंसे गुजरना पड़ा, १९४८ में स्वतंत्र होनेसे लेकर आजतक उसने किन-किन संघर्षोंका […]

सम्पादकीय

समाधिका अर्थ

ओशो ध्यान या समाधिका यही अर्थ है कि हम अपनी खोल और गिरीको अलग करना सीख जायं। वह अलग हो सकते हैं। इसलिए ध्यानको स्वेच्छासे मृत्युमें प्रवेश और जो मनुष्य अपनी इच्छासे मृत्युमें प्रवेश कर जाता है, वह मृत्युका साक्षात्कार कर लेता है। सुकरात मर रहा है, आखिरी क्षण है। जहर पीसा जा रहा है […]

सम्पादकीय

सुरक्षासे समझौता नहीं

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने रविवारको ‘मनकी बातÓ कार्यक्रममें स्पष्टïत: कहा कि भारत राष्टï्रीय सुरक्षाके मुद्दोंपर समझौता नहीं करता। जब हमारी सेनाओंकी ताकत बढ़ती है तो हमें लगता है कि हम सही रास्तेपर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अब भारत दूसरे देशोंकी सोच और उनके दबावमें नहीं, अपने संकल्पसे चलता है तो हम सबको गर्व […]

सम्पादकीय

 समुद्री तूफानका कहर

निरंकार सिंह       ताउतेके बाद चक्रवाती तूफान यासने दस्तक दिया। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने बड़े पैमानेपर राहत और बचावकी टीमें पहलेसे लगा दी थीं और समुद्रके तटवर्ती क्षेत्रोंमें रहनेवाले लगभग १२ लाख लोगोंको वहांसे हटाकर सुरक्षित स्थानोंपर पहुंचा दिया गया। ‘यासÓ ने ओडिशाके तटवर्ती क्षेत्रोंमें बनी झोपडिय़ोंको पूरी तरह तबाह कर दिया। इसका असर ओडिशाके अलावा […]

सम्पादकीय

नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता

डा. गौरीशंकर राजहंस     हालमें नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता बहुत बढ़ गयी है। केपी शर्मा ओली जो हालतक नेपालके प्रधान मंत्री थे, उन्होंने नेपालको चीनकी गोदमें डाल दिया है। तराईके क्षेत्रमें जहां बिहार और उत्तर प्रदेश मूलके लोग अधिक रहते हैं, वहां ओलीका घौर विरोध हो रहा है और तराईकी जनता चाहती है कि ओलीकी जगह किसी […]