सम्पादकीय

धर्मांतरणके दुष्चक्रमें तेजी

राकेश जैन         देशमें धर्मके नामपर बंटवारा चाहे स्वतन्त्रताप्राप्तिके समय हुआ, परन्तु कहते हैं कि विभाजनका बीज उसी दिन बोया गया जब किसी पहले भारतीयने धर्म परिवर्तन किया। चाहे इस्लामका भारतमें प्रादुर्भाव काफी समय पहले हो चुका था परन्तु जिहादी कासिमके सिन्धपर हमलेके बाद इस्लाम और हमारे बीच लगभग हमलावर एवं संघर्षशील समाजका ही रिश्ता रहा। […]

सम्पादकीय

शैक्षणिक व्यवस्थाके विकासकी आधारशिला है शोध

 डा. शंकर सुवन सिंह शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्यका नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्नसे तथ्योंका संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धिसे उसका अवलोकन, विश्लेषण करके नये तथ्यों या सिद्धांतोंका उद्घाटन किया जाता है। रैडमैन और मोरीने अपनी किताब दि रोमांस आफ रिसर्चमें शोधका अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि नवीन ज्ञानकी प्राप्तिके व्यवस्थित प्रयत्नको […]

सम्पादकीय

आसुरी प्रवृत्ति

श्रीराम शर्मा असुरता इन दिनों अपने चरम उत्कर्षपर हैं। दीपककी लौ जब बुझनेको होती है तो अधिक तीव्र प्रकाश फेंकती और बुझ जाती है। असुरता भी जब मिटनेको होती है तो जाते-जाते कुछ न कुछ करके जानेकी ठान लेती है। इन दिनों भी यही सब हो रहा है। असुर तो अपने नये तेवर और नये […]

सम्पादकीय

सैन्य शक्तिमें वृद्धि

भारत एक ओर जहां तेजीसे आत्मनिर्भरताकी ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानेकी दिशामें निरन्तर उपलब्धियां भी हासिल कर रहा है। इस श्रृंखलामें उसे दो और बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई हैं, जो देशका गौरव बढ़ानेवाली है। भारतने बुधवारको जमीनसे हवामें मार करनेकी क्षमतासे लैस स्वदेश निर्मित आकाशका सफल परीक्षण किया, वहीं […]

सम्पादकीय

हंगामेकी भेंट चढ़ती उम्मीदें

आशीष वशिष्ठ संसद लोकतंत्रका वह मंदिर जिसकी तरफ पूरे देश और देशवासियोंको उम्मीदें, आशाएं और विश्वास होता है। पूरे देशकी दृष्टिï इसपर लगी रहती है। यही बैठकर हमारे द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि हमारे लिए कल्याणकारी नीतियां, कानून और भलाईके कार्य करते हैं। लेकिन कोरोना महामारीके समय मानसून सत्रमें जो दृश्य दिखाई दे रहे हैं, वह कोरोना […]

सम्पादकीय

राजनीतिमें जातीय समीकरण

नवीनचन्द्र   उत्तर प्रदेशमें अगले सालकी शुरुआतमें यानी कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं। दलितों एवं अति पिछड़ोंकी राजनीतिक गोलबंदीसे राज्यकी बड़ी ताकत बनीं और चार बार सत्तामें आ चुकी मायावती फिर ब्राह्मïणोंको खुश करनेकी कोशिशमें जुट गयी हैं। उधर सवर्णोंकी पार्टीके रूपमें जानी जानेवाली भाजपा दलितों एवं पिछड़ोंके लिए लाल कालीन बिछाये बैठी […]

सम्पादकीय

मनुष्यमें नैतिकताका संचार करता है गुरु

 डा. प्रदीप कुमार सिंह भारतीय दर्शनके अनुसार गुरुशिष्यके लिए शैक्षिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक होता है, जिसके आशीर्वादके बिना ज्ञान नहीं प्राप्त किया जा सकता। गुरु शब्दमें ही गुरु-महिमाका वर्णन है। श्रीगुरुगीताके अनुसार- गुकारश्चान्धकारो हि रुकारस्तेज उच्यते। अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न शंसय:॥ गुकारश्चान्धकारस्तु रुकारस्तन्निरोधकृत्। अन्धकारविनाशित्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥  अर्थात्ï ‘गुÓ (अज्ञान रूपी) अन्धकार है एवं ‘रुÓ (ज्ञान रूपी) […]

सम्पादकीय

गुरुका मार्गदर्शन

ओशो क्या गुरुका मार्गदर्शन अनिवार्य है। मार्गदर्शन अनिवार्य है ऐसा हमें लगता है, लेकिन मार्गदर्शन सबीज हो सकता है और मार्गदर्शन निर्बीज हो सकता है। मार्गदर्शन ऐसा हो सकता है कि उससे मनमें विचार, कल्पनाएं और धारणाएं पकड़ जायं और तुम्हारे सब विचार तुमसे छिन जायं, अलग हो जायं। जो व्यक्ति कहता है, मैं मार्गदर्शन […]

सम्पादकीय

कृषि उपजकी बर्बादी

कृषिप्रधान देश भारतमें प्रति वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये मूल्यके कृषि उपजका नष्टï होना न केवल गम्भीर चिन्ताका विषय है, बल्कि यह भण्डारण प्रबन्धनकी विफलताका भी प्रमाण है। अनाजोंके नष्टï होनेका सिलसिला लम्बे समयसे जारी है। यह क्रम कबतक चलेगा, यह भी अनिश्चित है। यह भारतीय कृषि अर्थव्यवस्थाके लिए अशुभ संकेत है, क्योंकि कृषि ही […]

सम्पादकीय

राजद्रोह कानूनपर सुप्रीम सवाल

डा. सुशील कुमार सिंह     जुलाई २०१९ में राज्यसभामें एक प्रश्नके जवाबमें जब स्वराष्टï्र मंत्रालयने कहा कि देशद्रोहके अपराधसे निबटनेवाले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानको खत्म करनेका कोई प्रस्ताव नहीं है तब इसके खात्मेंकी बाट जोहनेवालोंको नाउम्मीदी मिली थी। सरकारने यह भी कहा कि राष्टï्रविरोधी तथ्योंका प्रभावी ढंगसे मुकाबला करनेके लिए प्रावधानको बनाये रखनेकी आवश्यकता […]