सम्पादकीय

निष्क्रिय करता नैराश्य भाव

हृदयनारायण दीक्षित विश्व कर्मप्रधान है। तुलसीदासने भी लिखा है कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। सत्कर्मकी प्रशंसा और अपकर्मकी निन्दा समाजका स्वभाव है। लोकमंगलसे जुड़े कर्मोकी प्रशंसासे समाजका हितसंवद्र्धन होता है। प्रशंसाका प्रभाव प्रशंसित व्यक्तिपर भी पड़ता है। वह लोकहित साधनामें पहले से और भी ज्यादा सक्रिय होता है। समाज प्रशंसनीय व्यक्तिका अनुसरण करता है। प्रधानमंत्री […]

सम्पादकीय

नीतिमें बदलावसे ही रुकेगी जनसंख्या

संजय सक्सेना निर्भीक होकर फैसले लेनेमें प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेशके मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथका कोई मुकाबला नहीं है। अपने फैसलोंसे जनता और विपक्षको चैका देनेवाले योगी गुंडे, बदमाशों, भू-माफियाओंके लिए काल हैं तो लव जेहाद करनेवालोंके खिलाफ वह सख्तीके साथ पेश आते हैं। सरकारी सम्पत्तिको नुकसान पहुंचानेवालोंसे कैसा सुलूक किया जाता है, […]

सम्पादकीय

भक्तिका अर्थ

बाबा हरदेव गुरुका ध्यान करके किया हुआ कर्म ही प्रधान हो जाता है। कई बार मनुष्य चालाकी भी कर जाता है। सोच लेता है कि आज भले मेला देखो, वहां हाजिरी तो लग ही जायेगी। यह दिमागकी चालाकी है। दिमाग जो सोचता है, उसमें बनावट होती है। वास्तवमें भक्ति दिमागका विषय नहीं, बल्कि हृदयका विषय […]

सम्पादकीय

तीसरी लहरकी चुनौती

देशके लिए यह अवश्य राहत की बात है कि यहां कोरोना संक्रमितों और इससे होने वाली मौतोंकी संख्यामें कमी आयी है और रिकवरी रेट बढ़कर ९७.२८ प्रतिशत हो गयी है। इसी प्रकार पाजिटिविटी रेट भी घटकर १.९९ प्रतिशत हो गयी है। पिछले २५ दिनोंसे पाजिटिविटी रेट तीन प्रतिशत से कम बना हुआ है। स्वास्थ्य मंत्रालयकी […]

सम्पादकीय

अफगानिस्तानमें नाजुक हालात

सुशांत सरीन         जिस तरहसे तालिबानने अफगानिस्तानके उत्तर और पश्चिमके क्षेत्रों तथा पड़ोसी देशोंसे लगते सीमावर्ती क्षेत्रोंपर कब्जा किया है तथा जिस तरहसे अफगान सेनाने अपने हथियार डाले हैं, उससे लगता है कि यह सब अधिक दिन नहीं चल सकेगा और अफगान सरकार एवं सेना तितर-बितर हो जायेगी। दूसरी राय है कि तालिबान विजयकी ओर बढ़ […]

सम्पादकीय

वक्तकी मांग जनसंख्या नियत्रंण

डा. श्रीनाथ सहाय      कोरोना की दो लहरोंके बीच जनसंख्या समस्या बनकर सामने आई। अस्पतालोंमें बिस्तरोंकी संख्याके अलावा टीकाकरण अभियानमें भी उसके कारण अनेक दिक्कतें आ रही हैं। बीते एक-डेढ़ दशकमें परिवार नियोजनका अभियान पूरी तरहसे उपेक्षित था। भले ही सरकारी आंकड़ोंमें उसे जीवित रखा गया हो लेकिन जमीनी सचाई यह है कि सरकारी प्राथमिकताओंमें परिवार […]

सम्पादकीय

राष्ट्रीय चिह्नके दुरुपयोगकी स्थिति

एम.पी.सिंह पाहवा प्रत्येक देशके राष्ट्रीय चिन्हकी अपनी विशेषता होती है। इसी विशेषताके चलते किसी दस्तावेजध्पत्रपर छपे राष्ट्रीय चिन्हसे यह अंदाजा लग जाता है कि दस्तावेज/पत्र किस देशसे संबंधित हैं। राष्ट्रीय चिन्होंको अलग दर्शानेके लिए इसका चुनाव बड़ी सावधानी तथा कुछ ऐतिहासिक, भौगोलिक या सांस्कृतिक उद्देश्यको मुख्य रख कर किया जाता है। इसी कारण इसका गैरकानूनी […]

सम्पादकीय

मानवीय मूल्य

श्रीश्री रवि शंकर हम तत्व और आत्मा दोनोंसे बने हैं। आत्माको आध्यात्मिकताकी आवश्यकता है। शरीर (तत्व) को कुछ भौतिक चीजोंकी आवश्यकता होती है और हमारी आत्माका पोषण अध्यात्मसे होता है। आप जीवनको आध्यात्मिकताके बिना जी नहीं सकते। क्या आप शांति चाहते हैं। क्या आप खुशी चाहते हैं। क्या आप सुख चाहते हैं। हमें लगता है […]

सम्पादकीय

चीनको स्पष्ट संदेश

तजाकिस्तानके दुशाम्बेमें आयोजित संघाई सहयोग संघटन (एससीओ) की विदेश मंत्रिस्तरीय बैठकसे अलग परराष्ट्रमंत्री एस.जयशंकर की चीनके विदेश मंत्री वांग यी से हुई मुलाकात और एक घण्टेतक हुई वार्ता भारत-चीनकी मौजूदा सम्बन्धोंके सन्दर्भमें काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह बैठक पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सम्बन्धित लम्बित मुद्दोंपर केन्द्रित रही। जयशंकर ने दो […]

सम्पादकीय

नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता

अनिल त्रिगुणायत         नेपाल में कई वर्षोंसे राजनीतिक अस्थिरताकी स्थिति है, विशेष रूपसे २०१५ के संविधानके लागू होनेके बादसे। उसके बाद हुए चुनावमें कुछ अन्य पार्टियोंके समर्थनके साथ सबसे बड़ी पार्टीके मुखिया होनेके नाते के.पी. ओली प्रधान मंत्री बने। बादमें प्रचंडकी पार्टीके विलयके समय तय हुआ कि आधे कार्यकालतक ओली और शेष अवधिमें प्रचंड प्रधानमंत्री रहेंगे। […]