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G-23 बढ़ाएगा गांधी परिवार की मुश्किल, क्या जून में बदल जाएगा कांग्रेस पार्टी का मुखिया?


गांधी परिवार (Gandhi Family) के लिए यह एक शुभ संदेश बिल्कुल नहीं हो सकता. चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की घोषणा हो चुकी है और इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी में बागियों का तेवर लगातार उग्र होता जा रहा है. ये बागी कोई और नहीं बल्कि पार्टी के वह बड़े नेता हैं जिनको पार्टी हासिये पर लाने की कोशिश में पिछले छह महीनों से लगी दिख रही थी. इनका कसूर सिर्फ इतना था कि इनलोगों ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से एक पत्र लिख कर जल्द से जल्द आतंरिक चुनाव कराने की मांग करने की जुर्रत की थी. पत्र पर पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने हस्ताक्षर लिए थे जिन्हें अब G-23 या 23 नेताओं के ग्रुप के रूप में जाना जाता है. इनमे से तो कई ऐसे नेता हैं जिनकी गिनती अभी हाल तक गांधी परिवार के करीबी और बड़ी हैसियत वाले नेताओं में होती थी.

कांग्रेस पार्टी (Congress Party) और खास कर गांधी परिवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की यह कह कर आलोचना करता था कि मोदी से कोई सवाल करे यह उन्हें पसंद नहीं है, जो कुछ हद तक सही भी है. लेकिन कहते हैं ना कि जिनके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते.

G-23 के नेताओं ने यह सवाल भी नहीं किया था कि किस तरह अलोकतांत्रिक तरीके से तत्तकालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को हटा कर सोनिया गांधी 1998 में पार्टी अध्यक्ष बन गई थीं, किस तरह सोनिया गांधी ने इस पद पर 2017 तक बने रह कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था, क्यों 19 साल के बाद पद छोड़ने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद सौंप दिया था? क्यों राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था अगर उन्हें दुबारा पार्टी अध्यक्ष बनने की चाहत थी? और क्यों बावजूद अस्वस्थ्य होने के, सोनिया गांधी डेढ़ साल से अंतरिम अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं?

G-23 नेताओं के पर कतरने की शुरुआत हो चुकी है

किसी ने यह भी नहीं पूछा था कि किस हैसियत से राहुल गांधी पार्टी के सारे अहम फैसले ले रहे हैं? G-23 ने तो सिर्फ आतंरिक चुनाव करने की मांग की थी ताकि अनिश्चितता की स्थिति समाप्त हो सके और पार्टी एक जुट हो कर बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में आ जाए.
पार्टी के हित की बात गांधी परिवार को अच्छी नहीं लगी. जिन नेताओं पर बिना नाम लिए गुलाम नबी आजाद ने पांच सितारा राजनीति करने का आरोप लगाया था, उनकी सलाह पर G-23 के नेताओं के पर कतरने की प्रकिया शुरू हो गयी. गुलाम नबी आजाद को पहले महासचिव पद से हटाया गया और उनकी राज्यसभा से भी छुट्टी हो गई.

दुसरे बड़े नेता आनंद शर्मा हैं, वह आजाद के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर थे, अभी भी हैं. एक साल बाद यानि मार्च 2022 में शर्मा का भी छह साल का राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल पूरा हो जाएगा. तरीके से आजाद के बाद शर्मा की बारी बनती है राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने की. लेकिन उनकी जगह मल्लिकार्जुन खड़गे या पी चिदंबरम को यह सम्मान मिलेगा और 2022 के बाद शर्मा राज्यसभा के सदस्य भी नहीं रहेंगे.

जिनके पास जितना मक्खन वह ‘पार्टी’ में उतना बड़ा नेता

तीसरे बड़े नेता हैं कपिल सिब्बल. देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते हैं. मुफ्त में कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के लिए किसी भी अदालत में हाज़िर होते रहे हैं. जुलाई 2022 में उनकी राज्यसभा में छह साल की सदस्यता समाप्त हो जाएगी और शायद उन्हें भी संसद से दूर कर दिया जायेगा. मनीष तिवारी फ़िलहाल लोकसभा के सदस्य हैं, कभी पार्टी के मुख्या प्रवक्ता होते थे, परन्तु उनके पास उतना मक्खन नहीं है जितना की रणदीप सिंह सुरजेवाला के पास है और पार्टी में अब उनकी कोई पूछ नहीं है.

आनंद शर्मा निशाने पर

आनंद शर्मा ने सोमवार को पश्चिम बंगाल चुनाव के मद्देनज़र मुस्लिम संप्रदाय के एक उग्र नेता के साथ चुनावी समझौते की आलोचना की जो कांग्रेस आलाकमान को पसंद नहीं आ रहा है. शर्मा ने वाजिब सवाल किया की क्यों कांग्रेस जैसे सेक्युलर पार्टी को एक उग्र मुस्लिम नेता से हाथ मिलाने के ज़रुरत पड़ी? सवाल का जवाब तो नहीं मिला, उल्टे उनकी अब आलोचना हो रही है. वाजिब भी है, पार्टी में सारे फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं, यानि यह फैसला भी उनका ही था. चूंकि अब G-23 के नेताओं के साथ पार्टी सौतेला व्यवहार कर रही है, उनका सुर कड़वा होता जा रहा है, G-23 के नेताओं को अब बागी कहना गलत नहीं होगा. यह तो साफ़ होता जा रहा है कि उन्हें पार्टी के जीत-हार की फिक्र नहीं है, या यह मान लेना चाहिए कि इन बागी नेताओं को पता है कि चुनाव में परिणाम क्या आने वाला है.

गुलाम नबी आजाद हैं G-23 का चेहरा

जिस तरह चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी का अंत: कलह सामने आता जा रहा है, इसका चुनाव पर कुछ ना कुछ असर तो ज़रूर पड़ेगा. संभव है कि यह कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी का हिस्सा हो. कांग्रेस पार्टी ने अनमने ढंग से जून में अंदरूनी चुनाव कराने के बात की है. इस में तो कोई शक हो ही नहीं सकता कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए मैदान में नहीं होंगे. कोशिश यही होगी कि कोई उनके सामने चुनौती पेश नहीं करे और वह निर्विरोध चुन लिए जाएं. लेकिन शायद ऐसा ना हो. अब जबकि गांधी परिवार के खिलाफ G-23 नेताओं ने मंच खोल ही दिया है तो इसकी प्रबल सम्भावना है कि G-23 की तरफ से गुलाम नबी आजाद को राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतारा जा सकता है.

जून में हो सकते हैं आंतरिक चुनाव

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पार्टी के 23 नेताओं को ही कांग्रेस पार्टी के भविष्य की चिंता है. पार्टी का एक बड़ा तबका अब यह मानने लगा है कि समय आ गया है कि गांधी परिवार किसी और को सामने आने का मौका दे ताकि कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से नए नेता के साथ नए विचार, नए जोश और नई रणनीति के साथ बीजेपी को 2024 के आमचुनाव की चुनौती पेश कर सके. इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी की राह कठिन हो सकती है और वह कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हार भी सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे किसी ने कभी सोचा नहीं था कि गांधी परिवार अमेठी से चुनाव हार सकता है, पर हुआ ऐसा ही. इतना तो तय है कि अगर बागियों को पार्टी ने नहीं निकाला गया तो तो जून के आतंरिक चुनाव में जमकर आतिशबाजी दिखेगी.