सम्पादकीय

आनन्द ताण्डव 


श्रीश्री रविशंकर

शिव कोई व्यक्ति या शरीर नहीं है। शिव वह शाश्वत तत्व है, जो सब तत्वोंका सार है। यह वह मूल तत्व है, जिससे प्रत्येककी उत्पत्ति एवं पालन होता है और इसीमें सब विलीन हो जाता है। इस अति सूक्ष्म एवं अप्रत्यक्ष तत्वको कोई कैसे समझ या समझा सकता है। नटराज अथवा ब्रह्मïांडके नर्तकके रूपमें इस शिव तत्वकी अति सुंदर और अपरिमेय अभिव्यक्ति अपनी संपूर्णताके साथ समाहित है। भौतिक और आध्यात्मिक सृष्टिके मध्य निरन्तर नर्तन करनेवाला अप्रतिम अद्भुत प्रतीक है नटराज। नटराजकी १०८ भंगिमाओंमेंसे सबसे प्रिय और मोहक है, आनन्द तांडव। इसमें अभिव्यक्त शिव तांडवका सौंदर्य, लालित्य एवं गरिमा अद्वितीय है। भौतिक जगतके प्रति वैराग्य तथा गहन साधनाके द्वारा ही इस रहस्यमय जगतमें प्रवेश पा कर आनन्द तांडवके अनुभव योग्य हो सकते हैं। इस सृष्टिकी अनगिनत परते हैं। जो अति सूक्ष्म जगतके भीतर प्रवेश पा जाता है, वह पाता है कि शिवका नर्तन निरंतर सातत्य रूपसे चल रहा है। इस आनन्दपूर्ण नृत्यका अनुभव वही कर सकता है जो शरीर, मन, बुद्धि और अहंकारकी जटिलतासे मुक्त हो गया है। यद्यपि यह एक अवधारणा है कि शिवने देहधारी रूपमें इस ग्रहपर विचरण किया है या शिव तो अनादि और अनंत हैं अर्थात जन्म एवं मृत्युसे भी परे हैं। शिवको किसी आकार, समय और स्थानके साथ सीमित करनेका अर्थ है कि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानीके इस अनंत सिद्धांतको संपूर्णत: नहीं समझ पाना। नर्तक शिवके दाएं ऊपरी हाथमें डमरू विद्यमान है, जो अनन्तताका प्रतीक है। यह ध्वनि और आकाशको और निरंतर विस्तार एवं विलीन होनेवाली बह्मांडकी अबाधित गतिको दर्शाता है। यह परिमित नाद द्वारा ब्रह्मïनादका प्रतीक है। नटराजके ऊपरी बाएं हाथमें अग्नि, इस ब्रह्मïांडकी मौलिक ऊर्जाकी प्रतीक है। आनंद इस ऊर्जाको ऊपर उठाता है, जब कि सांसारिक सुख इस ऊर्जाको नष्ट कर देते हैं। नीचेका दायां हाथ, जो कि अभय मुद्रामें है वह सरंक्षण और सुशासनको सुनिश्चित करता है। नटराजका आनंद तांडव सृष्टिके चक्रका प्रतीक है, जिसमें निरंतर उत्पत्ति और विनाश घटता रहता है। सारा जगत कुछ भी नहीं है केवल ऊर्जाकी एक ताल है, जो कि बार-बार लगातार विस्तृत और संकुचित होती रहती है। माना जाता है कि केवल देवता ही सूक्ष्म जगत या सूक्ष्म क्षेत्रका अनुभव कर सकते हैं। शास्त्रोंमें शिव तत्वको सर्वव्यापीके रूपमें दर्शाया गया है। अपनी दिनचर्याके कार्योंसे ऊपर उठकर सर्वोच्च महिमा एवं अनंत सत्ताके ध्यानमें डूबनेका, भोले और आनन्दपूर्ण शिव तत्वमें समाना जरूरी है। कहा जाता है कि सर्वोत्तम चढ़ावा पुष्प, ज्ञान, समभाव एवं शांति है।