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दिल्ली हिंसापर सुप्रीम कोर्टमें याचिका खारिज


दखलसे इनकार,अपना काम कर रही है सरकार- सीजेआई

नयी दिल्ली (आससे)।  गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा की जांच की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दिया। याचिकाओं में मामले की जांच रिटायर्ड जजों से कराने को कहा गया था। चीफ जस्टिस  (सीजेआई) एसए बोबडे ने कहा कि सरकार इस मामले में अपना काम कर रही है। जांच में कोई कमी नहीं है। सीजेआई ने कहा कि सरकार ने इसे काफी गंभीरता से लिया है। हमने प्रधानमंत्री का बयान भी सुना है। उन्होंने कहा है कि कानून अपना काम कर रहा है। इसलिए सरकार को इसकी जांच करने दीजिए। वकील विशाल तिवारी ने दिल्ली में हिंसा मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय आयोग बनाने की मांग की थी। तिवारी का कहना था कि इस आयोग की अगुआई सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज करें। इनके अलावा इसमें हाईकोर्ट के दो रिटायर जज होने चाहिए। आयोग सबूत जुटाए और तय समय में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश करे। तिवारी की याचिका में हिंसा और राष्ट्रध्वज के अपमान के जिम्मेदार व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ एफआईआर  दर्ज करने की मांग भी की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक अर्जी में मीडिया को निर्देश देने की मांग भी की गयी थी। पिटीशनर ने कहा था कि मीडिया को बिना सबूतों के किसानों को आतंकी कहने से रोकना चाहिए। लेकिन, कोर्ट ने इस अर्जी को भी खारिज कर दिया। वकील मनोहर लाल शर्मा ने दायर याचिका में मांग की थी कि अगर कोई बगैर सबूत के किसान संगठनों और आंदोलनकारियों को आतंकी कहता है तो उसके खिलाफ काररवाई की जाये। उन्होंने यह भी दावा किया था कि किसानों के प्रदर्शन के दौरान हिंसा की साजिश रची गयी थी। फेक न्यूज फैलाने और 26 जनवरी को दंगा भड़काने के आरोपों में दर्ज एफआईआर  के खिलाफ कांग्रेस सांसद शशि थरूर, जर्नलिस्ट राजदीप सरदेसाई और मृणाल पांडे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इन तीनों के खिलाफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में कई एफआईआर दर्ज है।

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर गणतंत्र दिवस पर हजारों की संख्या में किसानों ने दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकाली थी। कई जगह उनकी पुलिस से झड़प हुई थी। तोडफ़ोड़ की गई थी। लाल किले पर धार्मिक झंडा लगा दिया गया था। इस हिंसा में करीब 400 पुलिसकर्मी जख्मी हुए थे। किसान संगठन से जुड़े नेताओं का दावा है कि इस हिंसा में आंदोलनकारी किसान शामिल नहीं हैं। यह उन्हें बदनाम करने की साजिश है।