पटना

नालंदा विश्वविद्यालय में आयोजित अमृत महोत्सव में 32 देशों के छात्रों ने लिया हिस्सा


आजादी के 75 साल पूरा होने पर आयोजित कार्यक्रम में अलग-अलग देशों के छात्रों ने दिखाई अपनी संस्कृति की झलक

बिहारशरीफ। नालंदा विश्वविद्यालय में बीती शाम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ समारोह श्रृंखला के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय में नामांकित 32 देशों के छात्र इस सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा थे। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में भारत के गौरवशाली अतीत और देश में पिछले 75 वर्ष में हुई प्रगति को समर्पित इस आयोजन के माध्यम से नालंदा के छात्र भारत के समृद्ध इतिहास, संस्कृति और उपलब्धियों से रूबरू हुए। समारोह का आयोजन नालंदा विश्वविद्यालय के नवनिर्मित सभागार में हुआ।

इस मौके पर कुलपति प्रो॰ सुनैना ने संभाषण में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की अविच्छिन्न ज्ञान-परंपरा रही है। स्वतंत्रता का यह स्मरणोत्सव पांच हजार वर्षों से भी अधिक पुरानी उस ज्ञान-परंपरा का भी उत्सव है जिससे इस देश को अपनी एक विशिष्ट पहचान मिलती है। समस्त विश्व आज भारत की ओर एक आशा के साथ देखता है। भारत का आध्यात्मिक वैशिष्टड्ढ और वैविद्धयता के सह-अस्तित्व की भावना, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उपजी वैश्विक अस्थिरता और अनिश्चितता से उबरने में समस्त मानवता का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

मौके पर भरतनाटड्ढम नृत्यांगना सुश्री सुदीपा घोष की प्रस्तुति हुई जो प्रसिद्ध गुजराती भजन ‘वैष्णव जन तो’ पर आधारित थी। उन्होंने धनश्री-तिलाना पर लयबद्ध एक कृष्ण-लीला पर भी नृत्य प्रस्तुति दी। इसके उपरांत विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय के छात्रों ने अपने प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रख्यात पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम की एक कविता ‘मेरी मां की कोख मजबूर थी’ पर ‘वर्ड लिटेरचर’ की छात्र द्वारा एकल नाटड्ढ प्रस्तुति से दर्शकों में स्वतंत्रता पूर्व भारत में संघर्ष की स्मृति जागृत हो उठी। बौद्ध धर्म दर्शन संकाय के छात्र द्वारा अहिरी राग में निबद्ध स्वामी त्यागराज की कर्नाटक संगीत शैली पर शास्त्रीय रचना की प्रस्तुति दी गई।

विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे बौद्ध भिक्षुणियों और भिक्षुओं के समूह ने वियतनामी शैली में पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ एक संस्कृत बौद्ध मंत्र का पाठ किया। छात्रों के प्रदर्शन में म्यांमार लोक नृत्य और सांप्रदायिक सद्भाव पर लघु-नाटक भी शामिल थे। इतिहास संकाय में अध्ययनरत थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया और भूटान के छात्रों के प्रदर्शनों से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण 32 देशों के विद्यार्थियों और संस्कृतियों को एक मंच पर शामिल करना था। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया।

कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग टीम ने ‘नेट-जीरो’ पर प्रेजेंटेशन के माध्यम से इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार नालंदा दुनिया के सबसे बड़े नेट जीरो परिसरों में से एक के रूप में उभर रहा है। विगत चार वर्षों से माननीय कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय और अनुसंधान केंद्र की संकल्पना इस तरह की जा रही है ताकि वर्तमान युवा पीढ़ी का समेकित विकास हो और उन्हें भविष्य के ज्ञान-परंपरा के नेतृत्व की ओर प्रेरित किया जा सके। मास्टर्स प्रोग्राम, ग्लोबल डॉक्टरेट और विश्वविद्यालय में विभिन्न अल्पकालिक कार्यक्रमों का समन्वय करते हुए विश्वविद्यालय में एक नवोन्मेषी शैक्षणिक संकल्पना साकार हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में हुए उत्तरोत्तर विकास से ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए अवतार की आधार-शिला दृढ़ता और सुव्यवस्थित रूप से विकसित हो रही है।