सम्पादकीय

भारत-अमेरिकामें रक्षा सहयोग


अमेरिकी रक्षामंत्री लायड आस्टिन तीन दिवसीय भारत यात्रापर हैं। लायड आस्टिन और भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंहकी बैठक हुई, जिसमें दोनों देशोंके बीच रक्षा सहयोगको आगे बढ़ानेपर सहमति हुई। भारतकी नयी वैदेशिक नीतियोंमें तब्दीलियां हुई हैं। अब भारत वैश्विक पटलपर दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है। यही वजह है कि अमेरिका भारतके साथ रक्षा सहयोगपर व्यापक रूपसे बातचीत कर रहा है। दोनों देश द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अभ्यासोंपर भी वार्ता करेंगे। इस मुलाकातमें भारत-अमेरिकाके रणनीतिक एवं सामरिक रिश्तोंको नयी दिशा देनेपर मंत्रणा हुई। चीनकी बढ़ती आक्रामकतासे न सिर्फ भारत, बल्कि एशियाके सभी देश त्रस्त हैं। अत: अमेरिका भी भारतीय हितोंको अच्छी तरह समझ रहा है। अमेरिकी राष्टï्रपति जो बाइडेनके सत्ता सम्भालनेके बाद पहले वरिष्ठï राजनयिक आस्टिनकी भारत यात्रा महत्वपूर्ण है। इसके बाद आस्टिन  दक्षिण कोरिया और जापान भी जायंगे। इस यात्रासे चीनको स्पष्टï संकेत है कि अमेरिकाकी रणनीति चीनको घेरनेकी है। पूर्वी लद्दाखमें एलएसीपर चीनकी उग्र सैन्य हरकतोंको देखते हुए आस्टिन और भारतीय नेतृत्वके बीच बीजिंगकी आक्रामकता चर्चाका मुख्य बिन्दु है। द्विपक्षीय रिश्तोंको गति देना ही दोनों देशोंकी प्राथमिकता है। भारत-अमेरिका रक्षा सम्बन्ध पिछले कुछ वर्षोंसे नये पायदानपर पहुंचा है। जून, २०१६ में अमेरिकाने भारतको प्रमुख रक्षा साझेदारका दर्जा दिया था। भारतका अमेरिकासे रक्षा समझौता करना आवश्यक भी है क्योंकि भारतके सामने चीन जैसा आक्रामक देश है, जो अक्सर सीमापर तनाव बढ़ाता रहता है। अत: रक्षा पैकेजको गति देना भारतके लिए अत्यावश्यक है। हालांकि दोनों देशोंके बीच सुरक्षा समझौतेके अलावा भी सम्बन्ध अत्यन्त प्रभावोत्पादक रहे हैं। वर्षों पहले जार्ज डब्ल्यू बुश, बिल क्लिंटन एवं ओबामा शासन कालमें अमेरिकाने भारतके साथ सामरिक सम्बन्ध बनानेकी कोशिशें शुरू की थीं। परन्तु पिछले कुछ वर्षोंमें यह अधिक मजबूत हुआ है। दोनों देशोंके बीच द्विपक्षीय व्यापार २०१८ में १४२.८ अरब डालरके स्तरको पार कर चुका था। अब यह उस स्तरतक पहुंच चुका है, जिस स्तरपर अमेरिका अपने पुराने साथियों जैसे दक्षिण कोरिया या फ्रांसके साथ करता है। दोनों देशोंके सम्बन्धोंमें यह प्रगति इसलिए सम्भव हुई है क्योंकि अमेरिका और भारतके बीच कई मुद्दोंपर सहयोगकी कुदरती सम्भावनाएं हैं। इस बार अमेरिकी फाइटर एयरक्राफ्ट और ड्रोन हथियार प्रणालीकी खरीद भी शामिल है। यह जो बाइडेनके कार्यकालकी शुरुआत है। इसलिए प्रतिबद्धता समयके साथ आगे भी बढ़ती रहेगी। रक्षा सम्बन्धी खरीदमें भारत अपना हित तो देखेगा ही वहीं, अमेरिकी प्रशासनसे भारत सहयोगकी भी उम्मीद रखेगा। निश्चित रूपसे भारत-अमेरिकाके बीच द्विपक्षीय सहयोग मजबूत होंगे।

सुप्रीमकोर्टका वाजिब प्रश्न

आरक्षणकी तय अधिकतम पचास प्रतिशतकी सीमाको पारकर महाराष्टï्रमें मराठोंको आरक्षण देनेवाली राज्य सरकारने सुप्रीमकोर्टसे आरक्षणकी पचास प्रतिशत सीमा हटाये जानेकी मांग की है। महाराष्टï्र सरकारकी तरफसे पेश वकीलकी दलील थी कि पूर्वमें दी गयी पचास प्रतिशतकी तय सीमा अब व्यावहारिक नहीं है। अत: इसपर न्यायालयको पुनर्विचार करना चाहिए। सुप्रीमकोर्टकी पांच न्यायाधीशोंकी संविधान पीठने तर्कसंगत प्रश्न किया कि यह आरक्षण आखिर कितनी पीढिय़ोंतक जारी रहेगा अत्यन्त प्रासंगिक है, क्योंकि आरक्षणका एक अर्थ योग्यताको नकारना भी है। किसी भी राज्यको अपनी अर्थव्यवस्थासे लेकर अनेक स्रोतोंपर सर्वोच्च उपादेयता बनाये रखनेके लिए मेधावियोंको ही प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे उस प्रदेशके विकासकी धारा अविरल हो। किसी भी आवेदककी जाति, धर्म, प्रदेशके आधारपर अयोग्य लोगोंकी फौजको ढोना तर्कसंगत कदापि नहीं हो सकता। प्रतियोगितामें आवेदकोंका चयन पूर्णत: योग्यताके आधारपर ही होना चाहिए। आरक्षण सामाजिक तौरपर विभेदन पैदा करता है जिससे समाजके प्रत्येक स्तरपर वैमनस्यता ही दिखती है। आरक्षण किसी भी प्रकारका हो, प्रादेशिक या जातिगत अर्थात्ï उध्र्वाधर और क्षैतिज दोनों ही प्रकारसे समाजको तोड़ता है। यह मेधावियोंके मन-मस्तिष्कपर प्रहार करता है। सामाजिक समरसतापर तो प्रतिकूल असर पड़ता ही है देश, प्रदेशका प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध होता है। वोटबैंककी राजनीतिसे अबतक कई पीढिय़ोंने असमानताका दंश झेला है। मात्र दस वर्षके आरक्षणको इस प्रकार विस्तारित किया जा रहा है कि यह बढ़ते-बढ़ते प्रादेशिक स्तरतक पहुंच गया है। उसमें भी पचास प्रतिशतके आंकड़ेको पार करनेकी महाराष्टï्र सरकारकी जिद अस्वीकार्य है। इस प्रकार आरक्षणका निम्नवर्गको ऊंचाईतक पहुंचानेका जो सकारात्मक सिद्धान्त था, वह विभाजित होकर बिखरावकी राहपर चल पड़ा है। देशमें पहले ही समाजमें दो फाड़ हो चुका है। दोनों वर्ग उग्रताकी परिसीमातक चले जाते हैं और अब महाराष्टï्र सरकारका मराठियोंके लिए आरक्षण ‘कोढ़में खाजÓ का काम करेगा। अपनी विधाके जानकारको सर्वोच्चता अवश्य ही मिलनी चाहिए परन्तु सीट आरक्षित करके जनभावनाका अपमान नहीं किया जा सकता है। एक देशके निवासी आजीविकाकी तलाशमें किसी भी प्रदेशमें जा सकते हैं। परन्तु इस प्रकारके आरक्षणसे वैमनस्यता पैदा होगी। आरम्भमें देशको जोडऩेके लिए लाया गया आरक्षण अब विभाजित करनेकी भूमिका निभा रहा है। अब वोटबैंक नहीं, अपितु सौहार्द एवं मेधापर आधारित मुक्ताकाश होना चाहिए।