सम्पादकीय

मंत्रिमण्डल विस्तारका औचित्य


डा. दीपकुमार शुक्ल        

मंत्रिमण्डल विस्तारमें चुनावी राज्यों और जातीय समीकरणोंको साधनेकी कोशिश भी स्पष्ट रूपसे दिखाई दे रही है। उत्तर प्रदेशसे सबसे अधिक सात सांसदोंको मंत्रिमण्डलमें शामिल किया गया है। इनमेंसे एक ब्राह्मïण, तीन ओबीसी तथा तीन अनुसूचित जातिके हैं। मंत्रिमण्डल विस्तारसे एक दिन पूर्व चार राज्योंके राज्यपाल भी बदले गये थे। कोरोनाकी पहली लहरमें अचानक लगे लाकडाउनके कारण प्रवासी मजदूरोंकी दुर्दशा तथा दूसरी लहरमें सरकारी आंकड़ोंके अनुसार लगभग चार लाख लोगोंकी मौतसे मोदी सरकारके प्रति आमजनकी नाराजगी जायज है। जिसका खामियाजा भाजपाको अगले साल होनेवाले उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्योंके विधानसभा चुनावोंमें भुगतना पड़ सकता है। हालमें सम्पन्न हुए उत्तर प्रदेशके पंचायत चुनाव परिणामोंमें इसकी झलक भी देखनेको मिल चुकी है। भाजपा शायद इसकी काट सोशल इंजीनियरिंगमें देख रही है। तभी मंत्रिमण्डल विस्तारमें प्रधान मन्त्री और उनके रणनीतिकारोंका पूरा फोकस जातीय समीकरण बनानेपर रहा। मोदीकी नयी टीममें अन्य पिछड़ा वर्गके २७, अनुसूचित जातिके १२, अनुसूचित जनजातिके आठ तथा अल्पसंख्यक वर्गके पांच मंत्री हैं। जबकि महिला मंत्रियोंकी कुल संख्या अब ११ हो गयी है। इस तरहसे नये मंत्रिमण्डलमें प्रधान मन्त्री समेत कुल ७८ मन्त्री हो गये हैं। इसे अबतकका सबसे बड़ा मंत्रिमण्डल बताया जा रहा है, जो कि प्रधान मन्त्रीके उस नारेके सर्वथा विपरीत है, जिसमें उन्होंने मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंसकी बात कही थी। सोशल मीडियाके बढ़ते प्रभावके बाद अब आमजनको नारों, वादों, भ्रामक आंकड़ों तथा लच्छेदार बातोंसे बहुत दिनोंतक भरमाया नहीं जा सकता है।

कोरोनाकी दूसरी लहरसे उपजे अनगिनत सवालोंसे यह बात सबको अच्छी तरहसे समझमें भी आ गयी है। अब तो सरकारका काम जमीनपर दिखाई देना चाहिए। कहा जा रहा है कि प्रधान मंत्रीने जूनमें सभी मंत्रालयोंके कामकाजकी समीक्षा की थी। साथ ही यह भी गणित लगाया कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित देशके पांच राज्योंमें होनेवाले चुनावोंमें पार्टी अच्छी छविके साथ मैदानमें कैसे उतरे। इसी कारण उन्होंने न केवल अपने उक्त नारेके विपरीत मंत्रिमण्डलका जमकर विस्तार किया, बल्कि उन दिग्गज चेहरोंको भी दरकिनार कर दिया जिनसे सम्भवत: वह अपने मन मुताबिक काम नहीं करा पा रहे थे। मोदी मंत्रिमण्डलमें अब राजनाथ सिंहके अतिरिक्त कोई ऐसा नेता नहीं बचा है जिसे भारी-भरकम कदवाला कहा जा सके। इसीलिए अब कई विशेषज्ञ यह कहने लगे हैं कि भाजपा अटल-आडवाणी युगसे निकलकर मोदी-शाह युगमें प्रवेश कर चुकी है। बताया तो यहांतक जा रहा है कि निकाले गये कई मन्त्रियोंको आखिरी समयतक यह पता ही नहीं था कि उनसे त्यागपत्र मांगा जा सकता है। कोरोनाकी तीसरी लहरमें आम ही नहीं खास आदमीतक जिस तरहसे बदइन्तजामीका शिकार हुआ उससे सरकारकी चहुंओर किरकिरी हो रही है। इसका ठीकरा डा. हर्षवर्धनके सिर फोड़कर सरकारने देशकी स्वास्थ्य सेवाओंमें आमूल-चूल परिवर्तन करनेका सन्देश देश-दुनियाको देनेकी कोशिश की है। रमेश पोखरियाल निशंककी शिक्षा मन्त्रालयसे छुट्टीका मूल कारण विशेषज्ञगण यह बता रहे हैं कि एक तो वह नयी शिक्षा नीति लागू करनेमें पूरी तरह विफल रहे, दूसरा कोरोना संकटके समय केन्द्रीय बोर्डकी दसवीं और बारहवींकी परीक्षापर वह अन्ततक सही निर्णय नहीं ले पाये। छात्रोंको आखिरीतक नहीं पता चल पाया कि उनकी परीक्षा होगी या नहीं। रविशंकर प्रसादको हटानेके पीछेकी वजह ट्वीटर विवाद बताया जा रहा है। जानकारोंके मुताबिक रविशंकर प्रसाद द्वारा विश्वकी इतनी बड़ी कम्पनीको चुनौती देनेसे वैश्विक स्तरपर भारतकी किरकिरी शुरू हो गयी थी। इस सन्दर्भमें अमेरिकाने तो यहांतक कह दिया था कि भारत गलत कर रहा है। संयुक्त संसदीय समितिकी निगरानीमें भारत सरकार डेटा प्रोटेक्शन लॉ तैयार कर रही है। लेकिन इस कानूनके बननेसे पहले ही रविशंकर प्रसाद ट्वीटरसे दो-दो हाथ करने लगे थे। वहीं न्यायपालिका द्वारा सरकारके कामकाजपर लगातार उठते सवाल भी उनको बाहर करनेके प्रमुख कारणोंमेंसे एक है। भारतकी पर्यावर्णीय चुनौतियोंको सही ढंगसे हैंडल न कर पानेकी कीमत प्रकाश जावड़ेकर जैसे कद्दावर नेताको चुकानी पड़ी। पता चला है कि पिछले एक वर्षसे अधिक समयमें पर्यावरण मन्त्रालयने कोई खास काम ही नहीं किया है। बाबुल सुप्रियो और देबोश्री चौधरीको बंगालमें पार्टीकी हारका खामियाजा भुगतना पड़ा तो सन्तोष गंगवारको योगी सरकारकी आलोचना महंगी पड़ी। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी सिद्धान्तत: कामके पक्षधर हैं।

लगभग हर मन्त्रालयमें उनका सीधा दखल रहता है। मन्त्रीगणोंको हर सप्ताह ह्वïाट्सऐपपर प्रधान मन्त्रीको अपनी प्रगति रिपोर्ट देनी होती है। प्रधान मन्त्रीके साथ कदमसे कदम मिलानेमें जो पीछे रह गया उसे पीछे छोड़कर आगे बढऩेपर वह अधिक विश्वास रखते हैं। किसीको बाहर करनेसे वोट बैंकपर क्या असर पड़ेगा इसका हिसाब-किताब अमित शाहके पास रहता है। इस तरह किसीको हटाने और जोडऩेमें उसकी योग्यता, क्षमता और राजनीतिक नफा-नुकसानका गणित पार्टीके दो ही लोग मिलकर लगा ले लेते हैं। हालाकि कोरोनाकी दूसरी लहरसे उपजे हालातों तथा हालमें सम्पन्न हुए विधानसभा और पंचायत चुनावोंके नतीजोंको लेकर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डाने पार्टीके महासचिवों तथा विभिन्न मोर्चोंके अध्यक्षोंके साथ दो दिनोंतक विचार-विमर्श करनेके बाद अमित शाह तथा नरेन्द्र मोदीको पूरी स्थितिसे अवगत कराया था। उसके बाद ही नये मंत्रिमण्डलकी रूपरेखा बनी और परिणाम सबके सामने है। इतिहास साक्षी है कि जो सत्तामें है वह बने रहनेके लिए और जो नहीं है वह पानेके लिए हर वह तिकड़म लगाता है जिसे वह जरूरी समझता है। शायद इसे ही राजनीतिक धर्म कहा जाता है।